जो गोरखनाथ मंदिर को लेकर झूठ फैलाती है। जो आज़म ख़ान के महिलाविरोधी बयान का बचाव करती है। जो 'जय श्री राम' से नफरत करती है और 'ला इलाहा' का महिमामंडन करती है। जो हलाला का विरोध करने वालों से लड़ाई करती है। वो 'द वायर' की आरफा खानम शेरवानी है।
शरजील इमाम वामपंथियों के प्रोपेगंडा पोर्टल 'द वायर' में कॉलम भी लिखता है। प्रोपेगंडा पोर्टल न्यूजलॉन्ड्री के शरजील उस्मानी ने इमाम का समर्थन किया है। जेएनयू छात्र संघ की काउंसलर आफरीन फातिमा ने भी इमाम का समर्थन करते हुए लिखा कि सरकार उससे डर गई है।
वो संविधान से इस हद तक घृणा करता है कि उसे 'भारत' नाम से भी नफरत है। जेएनयू के ऐसे पूर्व छात्र के बारे में जानिए, जो कहता है कि उसका बस चले तो हैदराबाद को भी लाहौर में ले जाकर रख दे। उसकी साज़िश है कि पूरे अखंड भारत में 'खलीफा राज' स्थापित हो जाए।
"ग़ैर-मुस्लिम मुस्लिमों की शर्तों पर प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े हों और नारा-ए-तक़बीर लगाएँ। अगर ग़ैर-मुस्लिम ऐसा नहीं करते हैं तो इसका अर्थ है कि वो मुस्लिमों के हमदर्द नहीं हैं, उनका इस्तेमाल कर रहे हैं।"
"हम तुम्हें असली तस्वीर दिखाएँगे। इंशाल्लाह। हिंदुस्तान के झंडे तिरंगे में मौजूद तीन अलग-अलग रंग हैं। जो देश में अलग-अलग धर्मों (हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई) को दर्शाता है। उसमें से ये लोग मुस्लिम को निकालने के चक्कर में हैं। लेकिन, जरा अमित शाह, मोदी, योगी नीचे झाँक कर देखें....."
जिस महिला के अब्बा 'बाबा-ए-क़ौम' हो वह अपने परिवार के साथ पाकिस्तान नहीं जाती। क्यों? जानने के लिए 'जिन्ना की आज़ादी' का नारा लगाने वालों को जानना चाहिए कि अपने ही बनाए पाकिस्तान में 'कायदे आजम' कौन सी मौत मरे थे।
महिला का अपहरण जबरन इस्लामी धर्मान्तरण कराने के मकसद से किया गया। ये घटना तब हुई, जब वह अपने पिता के घर गई थी। उसका अपहरण करने वाले तीनों आरोपित हैं- मोहम्मद नाहिद हसन, मोहम्मद नसीर हैदर और मोहम्मद सबुज।।
फायदे के लिए कंट्रोवर्सी पैदा करना बॉलीवुड का पुराना ट्रेंड है। दीपिका का जेएनयू जाना भी इससे अलग नहीं है। 'उनलोगों' को नाराज़ करने का रिस्क नहीं लेने वाला बॉलीवुड पब्लिसिटी के लिए बहुसंख्यकों की भावना से भी खेलता रहता है।
थरूर का कहना है कि हिंदुइज्म बहुलतावाद में विश्वास करता है जबकि हिंदुत्व समावेशी नहीं है। ऐसा कहते हुए उन्होंने इस्लाम और ईसाइयत को भी नीचा दिखा दिया। जाहिर है लिबरलों को यह पसंद न आया।
यौन शोषण के आरोपित असदुल सलाम की मौत के बाद मजहबी भीड़ ने हिंदुओं के घरों और संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया। रेल पटरी को जाम कर दिया। बावजूद बंगाल पुलिस तमाशबीन बनी रही। वह हरकत में तब आई जब उत्पातियों ने बम फेंके और पुलिस भी उसके निशाने पर आ गई।