अफवाहों को चारों तरफ़ से नकारे जाने के बाद भी सोशल मीडिया पर पुलिस की गोली से जामिया के छात्रों के मारे जाने की ख़बरें लगातार सर्कुलेट होती रहीं। न सिर्फ़ प्रोपेगेंडा पोर्टलों ने बल्कि कुछ पत्रकारों ने भी छात्रों को भड़काने के लिए झूठी ख़बरें शेयर की।
दिल्ली के जामिया नगर में जहॉं यह यूनिवर्सिटी स्थित है जिहादी नारे लगाए गए। कथित प्रदर्शनकारी 'हिंदुओ से लेंगे आजादी, छीन के लेंगे आजादी और लड़ के लेंगे आजादी' जैसे नारे लगा रहे थे। हिंसा भी हुई। इसके बाद पुलिस ने कार्रवाई करते हुए करीब 50 छात्रों को हिरासत में लिया। हालॉंकि देर रात उन्हें छोड़ दिया गया।
सिसोदिया ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस ने बसों में आग लगाई है। लेकिन जो फोटो शेयर की उसमें पुलिस आग बुझाती हुई दिख रही है। जहाँ यह घटना हुई वहाँ जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र प्रदर्शन कर रहे थे और आप विधायक अमनतुल्लाह ख़ान भी वहाँ देखे गए थे।
पिछले महीने फ़ीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ जेएनयू कैम्पस के अंदर हुआ प्रदर्शन काफ़ी हिंसक हो गया था, इसलिए पुलिस ने सार्वजनिक स्थल पर प्रदर्शन को लेकर पूरी मुस्तैदी दिखाई। जेएनयू की तरफ जाने वाली सड़कों पर आवागमन रोक दिया गया था।
"आग शॉर्ट सर्किट के कारण लगी। आग लगने के बाद उठे धुएँ के कारण परिसर में बहुत सारा प्लास्टिक था। अधिकतर मौतें धुएँ के कारण श्वासावरोध के कारण हुईं। हमने अधिकांश घायलों को एलएनजेपी अस्पताल और लेडी हार्डिंग अस्पताल में ट्रांसफर कर दिया है।"
सेंधमारी के लिए ऐसे घरों का चयन किया जाता था, जो काफ़ी समय से बंद हों और वहाँ कोई रहता न हो। इसके बाद आरोपित उस घर में सेंधमारी करने जाते थे तो अच्छे कपड़े पहनकर जाते थे, जिससे पड़ोसियों को लगे कि वो उस घर के सदस्यों के कोई रिश्तेदार हों।
दिल्ली के रानी झाँसी रोड पर रविवार (दिसंबर 8, 2019) सुबह अनाज मंडी में भीषण आग लग गई। ताजा जानकारी के अनुसार आग में झुलसने से 43 लोगों की मौत हो चुकी है। दिल्ली पुलिस ने इसकी जानकारी दी है।
अदालत ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि FIR शिकायतकर्ता के शब्दों में होनी चाहिए। भारी-भरकम शब्द की जगह आसान भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए। लोगों को ये पता होना चाहिए कि क्या लिखा गया है।