CJI रंजन गोगोई ने पीठ का नेतृत्व करते हुए कहा कि 16 सितंबर को जम्मू कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत अब्दुल्ला के खिलाफ हिरासत का आदेश जारी होने के बाद इस याचिका पर विचार करने लायक कुछ भी नहीं बचा है।
फारुक अब्दुल्ला पर आरोप है कि वो अपने भाषणों के ज़रिए अलगाववादी नेताओं और आतंकवादियों का महिमा मंडन कर रहे थे। इसके अलावा उन पर आरोप है कि वो अनुच्छेद-370 और 35-A के नाम पर लोगों को देश के ख़िलाफ़ भड़का...
जब इलाके में कश्मीरियत का बोलबाला हुआ तबसे ये एक्ट अलगाववादी, आतंकी, दहशतगर्द जेहादी, कश्मीरियत दिखाने वाले सभी पर लगने लगा। हिजबुल मुजाहिद्दीन के बुरहान वानी के मारे जाने के बाद इसी कानून से पाँच सौ से ज्यादा अलगाववादी कैद किए गए थे।
"मोदी सरकार के इस कदम से साफ हो गया है कि राष्ट्र विरोधी और अलगाववादी गतिविधियों के लिए देश में कोई जगह नहीं है। जन संघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जम्मू- कश्मीर में एक संविधान और एक विधान को लेकर जो संघर्ष किया उनका पक्ष आखिरकार सही साबित हुआ है और नेहरू और शेख अब्दुल्ला गलत साबित हुए हैं।"
फारूक अब्दुल्ला को जिस पीएसए एक्ट तहत हिरासत में लिया गया है उसमें किसी व्यक्ति को बिना मुक़दमा चलाए 2 वर्षों तक हिरासत में रखा जा सकता है। अप्रैल 8, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से इसे मंजूरी मिली थी। यह क़ानून लकड़ी की तस्करी रोकने के लिए लाया गया था।
राज्य के एडवोकेट डीसी रैना ने कोर्ट को इस इस बात से अवगत कराया था कि साफ़िया ख़ान को न तो किसी हिरासत में रखा गया है और न ही उन्हें नज़रबंद किया गया है। घाटी में जान-माल की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कुछ नितांत आवश्यक प्रतिबंध लगाए गए हैं।
आलिया अब्दुल्ला ने बोलने के संवैधानिक अधिकार को रेखांकित करते हुए कहा कि सरकार को घाटी के राजनेताओं से अपनी भाषा बोलने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और उनके (घाटी के नेताओं) विचारों का सम्मान करना चाहिए।
साल 2015 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने इस केस की कमान CBI को सौंप दी थी। ऐसा करने के पीछे तर्क यह दिया गया था कि फारूक अब्दुल्ला का राज्य में काफ़ी दबदबा था और ऐसी संभावना थी कि राज्य पुलिस को इस मामले की जाँच में परेशानी हो सकती थी।
मामला 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंपा था। CBI ने गत वर्ष जुलाई में फारूक के अलावा तीन और लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की थी। जिस वक़्त यह घोटाला हुआ फारूक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष थे।
"अगर मैं उन्हें कभी मिलूँगा तो उन्हें ये बात ज़रूर बोलूँगा कि वह काफी अच्छा काम कर रही थीं। ये उनकी पर्सनल च्वाइस है। बॉलीवुड में काम करने से कोई गैरमुस्लिम नहीं बन जाता है।"