क्या BBC इतना मासूम है कि वह कोरोना के संक्रमण के इस बड़े माध्यम (तबलीगी जमात) से अभी तक अनजान है? कि इस मरकज से निकले हुए लोग आखिर किन-किन जगहों पर नहीं गए होंगे?
चाइनीज वायरस के इस आपदा काल में कुछ पार्ट टाइम भोजपुरी पत्रकार पत्रकारिता के नाम पर हिन्दू घृणा से डिस्टर्ब हो गए हैं। ऐसे डिस्टर्ब लोगों का लक्ष्य चाइनीज कोरोना वायरस से लगातार सफलतापूर्वक लड़ रहे भारत की बड़ाई करना नहीं बल्कि हिन्दुओं और भाजपा सरकार को नीचा दिखाना है।
बीबीसी कहता है कि रंजन गोगोई ने 'अलिखित सिद्धांतों' का पालन नहीं किया। वही बीबीसी, जो मीडिया के लिखित व अलिखित, सभी सिद्धांतों की रोज अनगिनत बार धज्जियाँ उड़ाता है। बीबीसी के इस लेख से पता चलता है कि असली घाव तो राम मंदिर से हुआ है।
सर्वेक्षण में पाँच हजार से अधिक पाठकों ने हिस्सा लिया। 38% से ज्यादा मत पाने वाले रणजीत सिंह की सहिष्णु साम्राज्य बनाने के लिए प्रशंसा की गई। दूसरे स्थान पर अफ्रीकी स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी अमिलकार काबराल रहे।
वेम्पती ने बीबीसी की योगिता लिमये की उस रिपोर्ट का भी हवाला दिया है जिसमें दिल्ली पुलिस को एकपक्षीय बताया गया है। लेकिन, उस दंगाई भीड़ का जिक्र नहीं है जिसने हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल की जान ली।
यह पहली बार नहीं है, या फिर इस प्रकार की रिपोर्टिंग करने वालों में बीबीसी ही अकेला नहीं है। बीबीसी की ही तर्ज पर दी लल्लनटॉप एक साल पहले इस तरह की रिपोर्ट शेयर कर चुका है। वैसे लल्लनटॉप एक बार हिटलर का लिंग भी नाप चुका है।
बीबीसी का कहना था कि शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों के पूर्वजों ने पाकिस्तान को ठुकराया था और भारत को अपनाया था। इसके जवाब में भाजपा के फायरब्रांड नेता योगी ने कहा कि उन लोगों ने पाकिस्तान न जाकर भारत पर कोई एहसान नहीं किया है।
"कन्हैया कुमार सिर्फ मीडिया वालों के लिए लोकप्रिय है, आम जनता कन्हैया कुमार का नाम भी सुनना नही चाहती है, लोगों का खून खोल उठता है, लोग उसे देशद्रोही और गद्दार, टुकड़े टुकड़े गैंग का आदमी बुलाते हैं, और यह भी कहते हैं लोग जो देश का नहीं वह किसी का नहीं हो सकता है।"
बीबीसी की रिपोर्ट्स में हिंदू बनाम मुस्लिम ध्यान रखते हुए एकतरफा पत्रकारिता का फर्क़ पहली बार नहीं झलक रहा। बल्कि यदि बीबीसी की वेबसाइट पर जाकर सर्च बॉक्स में इन दोनों (घूँघट और बुर्का ) शब्दों को टाइप किया जाए तो इनके इस पूरे अजेंडे का खुलासा होता है।