निरुपम और तंवर दोनों टिकट बॅंटवारे में उपेक्षा से नाराज हैं। तंवर राहुल के काफी करीबी माने जाते हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की चेतावनियों के बावजूद राहुल ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाया था। सोनिया के कमान सॅंभालने के बाद तंवर की अनदेखी कर हुड्डा को आगे किया गया।
पार्टी छोड़ने वाले नेताओं ने कहा कि वो जल्द ही एक नया राजनीतिक दल बनाएँगे। इन नेताओं ने कहा कि उन्होंने राज्य में NRC लागू करने का माँग की थी और भ्रष्ट नेताओं के साथ किसी भी तरह का समझौता करने से इनकार कर दिया था। लेकिन कॉन्ग्रेस ने...
हाल ही में कई कॉन्ग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने के संदर्भ में सोनिया ने कहा- "लोग समय आने पर अपना रंग दिखा ही देते हैं, यह अवसरवादी चरित्र को दर्शाता है। हम जल्द ही तीन राज्यों में चुनावों का सामना करने जा रहे हैं। हालात चुनौतीपूर्ण हैं और अगर हम सिर्फ पार्टी हित को ऊपर रखें तो....."
एक ओर दिग्विजय सिंह ने सिंघर के साथ किसी सीधे संघर्ष से इंकार किया है। प्रदेश कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता मानक अग्रवाल ने सिंघर पर भाजपा एजेंट होने का आरोप लगाया और छवि धूमिल करने के लिए उनके निलंबन की माँग की है।
बठिंडा निवासी और सिविल लाइन क्लब के पूर्व प्रधान जगजीत सिंह धालीवाल एवं शिवदेव सिंह ने इस संबंध में कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने कॉन्ग्रेस द्वारा एक निजी क्लब में मालवा कॉन्ग्रेस भवन खोले जाने के खिलाफ स्थाई रोक लगाने की माँग की थी।
प्रदेश कॉन्ग्रेस अध्यक्ष मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने कहा है कि 5 साल तक मोदी का विरोध करने वाले थरूर बताएँ कि अचानक से उनके सुर क्यों बदल गए हैं। वहीं केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नितला ने कहा है कि मोदी का गुणगान करने की जरूरत नहीं है।
1984 में अपनी माँ इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुए आम चुनावों में राजीव गाँधी के नेतृत्व में कॉन्ग्रेस को 404 सीटें मिलीं थीं, और जनसंघ को पुनर्जीवित कर बनी भाजपा महज़ 2 सीटों पर सिमट गई थी। सोनिया गाँधी ने उन्हीं चुनावों को याद कराते हुए कहा कि......
‘‘गाँधी परिवार से बाहर किसी व्यक्ति का पार्टी का नेतृत्व करना वास्तव में मुश्किल होगा। राजनीति में भी ‘ब्रांड इक्विटी’ होती है। अगर आप अभी भाजपा को देखेंगे तो क्या मोदी और शाह के बिना वह सुचारू रूप से चल सकती है? जवाब है नहीं। इसी तरह...”
"कॉन्ग्रेस ने इतिहास की गलतियों से सीखने की तैयारी नहीं दिखाई। कॉन्ग्रेस के पतन के लिए मोदी-शाह जिम्मेदार न होकर वे खुद ही जिम्मेदार हैं। 73 साल की सोनिया गाँधी के कंधों पर भार सौंपकर कॉन्ग्रेस ने बचा-खुचा सत्व भी गँवा दिया है।''
राहुल ने बरसों पहले कहा था, "कॉन्ग्रेस एक परिवार है जिसमें तेजी से बदलाव की जरूरत है। सोच-समझकर, प्यार से और सबकी सुनकर बदलाव करना है।" इसलिए राहुल का उत्तराधिकारी चुनने के लिए कॉन्ग्रेसियों ने तेजी से बदलाव करते हुए उनकी मॉं को चुन लिया है।