वह सावरकर ही थे जिन्होंने पहले मराठी और फिर अंग्रेजी में प्रकाशित ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’/The Indian War of Independence के ज़रिए इस लड़ाई के असली रूप को जनचेतना में पुनर्जीवित किया।
संत तिरुमानकई अलवार की 15वीं शताब्दी की यह कांस्य प्रतिमा वर्ष 1967 के साउथबेई की नीलामी में नीलाम की गई और इस तरह आखिरकार यह प्रतिमा ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एश्मोलीन संग्रहालय पहुँची।
शिवाजी महाराज की तलवार पर 10 हीरे जड़े हुए थे, जो इस वक्त लंदन में हैं। उनकी तलवार प्रिंस ऑफ वेल्स एडवर्ड सप्तम को नवंबर 1875 में उनकी भारत यात्रा के दौरान कोल्हापुर के महाराज ने उपहार स्वरूप भेंट की थी। लेकिन कभी भी इस तलवार को वापस लाने के कोशिश नहीं की गई।
"1700 -1707 के बीच महाराष्ट्र में सर्वप्रमुख प्रेरक शक्ति कोई मंत्री न होकर महारानी ताराबाई ही थीं जिन्होंने अपनी कुशल प्रशासनिक दक्षता तथा मजबूत चारित्रिक क्षमता के बल पर उस कठिन समय पर राष्ट्र की रक्षा की।"
इस युद्ध के 350 साल पूरे होने पर हमें ध्यान रखने की आवश्यकता है कि तानाजी द्वारा लड़ा गया ये युद्ध आम युद्ध नहीं था। क्योंकि ये किला लगभग 4,304 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। जिस तक पहुँचने के लिए तानाजी ने यशवंती नामक गोह प्रजाति की छिपकली का प्रयोग किया था।
कई लोग मानते हैं कि 8वीं या 9वीं शताब्दी में माँ सरस्वती को जापान में बेंजाइटन के रूप में पूजा जाने लगा। लेकिन, पाँचवीं-छठी शताब्दी में लिखी गई बौद्ध पुस्तकों में बेंजाइटन का जिक्र है। उनकी प्रतिमाएँ सफ़ेद होती हैं और उनके हाथ में वीणा होता है।
उस सरकार को कई देशों की मान्यता प्राप्त थी। बैंक था, सेना थी। महिलाओं की भागीदारी थी। अफ़सोस कि भारत की उस सरकार को भुला दिया गया, जिसकी देश ने 2018 में 75वीं वर्षगाँठ मनाई। नेताजी ने देश-विदेश में घूम कर भारतीय समुदाय के भीतर आज़ादी का मन्त्र फूँका।
1981 का एक ऐसा समय था, जब जेएनयू को 46 दिनों के लिए बंद किया गया था। आज फ़र्ज़ी 'स्टिंग ऑपरेशन' कर के वामपंथियों को बचाने वाले 'इंडिया टुडे' ने तब JNU को वामपंथी अराजकता का गढ़ बताया था, जहाँ छात्र फालतू वाद-विवाद में लगे रहते हैं। पत्रिका ने कहा था कि जेएनयू केवल रुपए डकारता है।
आप राम नाम बोलते हुए शवयात्रा तक नहीं निकाल सकते। हिन्दुओं की बहू-बेटियाँ घरों से नहीं निकल सकतीं। उस काल की कल्पना कीजिए और उसे 'तानाजी' में देखिए। गद्दार तब भी थे और अब भी हैं- ये आपको पता चलेगा। भगवा का क्या महत्व है, यह भी जान पाएँगे।
गाय और भेंड़ का माँस खाने वाला उदयभान। उसके 12 ताक़तवर बेटे। उसका सेनापति हिल्लाल। 1800 पठान। अरबों की सेना। इन सबके बावजूद तानाजी ने माँ को किया वादा निभाने के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। कहानी मराठा योद्धा और छत्रपति शिवाजी के विश्वस्त मित्र की।