यह बिल भाजपा और मोदी का संदेश था- समर्थकों और विरोधियों दोनों के लिए। दोनों को ही समान संदेश- सरकार राज्यसभा में बहुमत में भले न हो, लेकिन जो उसे करना है, जिसे वह उचित समझती है, उसे वह करके रहेगी।
इस बिल के पास होने के बाद उमर अब्दुल्ला ने अपने ही राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती पर निशाना साधते हुए कहा कि महबूबा मुफ़्ती की पार्टी की गैरमौजूदगी ने राज्यसभा में बिल पास कराने में सरकार की मदद की।
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पैगम्बर साहब ने हजारों साल पहले तीन तलाक़ को गलत बता दिया था लेकिन हम इस पर 2019 में बहस कर रहे हैं। विपक्ष के लोग 'लेकिन' के साथ तीन तलाक को गलत बता रहे हैं क्योंकि ये लोग इसे चलने देना चाहते हैं।
मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाने के मकसद से राज्यसभा में पेश विधेयक पर हुई चर्चा में भाग लेते हुए विभिन्न दलों के सदस्यों ने इसे अपराध की श्रेणी में डालने के प्रावधान पर आपत्ति भी जताई और कहा कि इससे पूरा परिवार प्रभावित होगा।
"मेरे शौहर मुदस्सिर बेग ने मुझे 17 जुलाई को 100 रुपए का स्टाम्प पेपर भिजवाया। जिस पर तलाक-ए-बाईन छपा है। उस पर लिखा था कि मैं तंग आ चुका हूँ। अपना रिश्ता यहीं खत्म करता हूँ। तुम भी आगे की जिंदगी अपने तरीके से जी सकती हो। यह पहला तलाक है। दो और भेज दूँगा।"
अभी तक इस शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पीड़िता इंसाफ़ के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि पुलिस द्वारा उनके मामले को दहेज प्रताड़ना में दर्ज किया गया है जबकि कार्रवाई तीन तलाक पर होनी चाहिए।
बिल के मुताबिक, मुकदमे का फैसला होने तक बच्चा माँ के संरक्षण में ही रहेगा। आरोपित को उसका भी गुजारा देना होगा। तीन तलाक का अपराध सिर्फ तभी संज्ञेय होगा जब पीड़ित पत्नी या उसके परिवार (मायके या ससुराल) के सदस्य एफआईआर दर्ज कराएँ।
गुलशनजहाँ को जब तीसरी बेटी पैदा हुई, तो बौखलाए ससुराल वालों ने उसके साथ मारपीट करनी शुरू कर दी। फिर 20 जुलाई को उसके शौहर ने तीन तलाक देकर उससे सारे संबंध खत्म करते हुए दूधमुँही बच्ची के साथ घर से निकाल दिया।