"जो अभिनेता अब कंटेंट बन गए हैं, वो अब क्यों शिकायत कर रहे हैं कि वो पोस्टर पर नहीं हैं? क्यों कोई अभिनेता किसी खास फिल्म के ना मिलने को लेकर शिकायत कर रहे हैं।"
नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि उनके पास पासपोर्ट, वोटर आईडी और आधार कार्ड जैसे जो कागज़ात हैं, वो उनकी नागरिकता साबित करने के लिए काफ़ी नहीं होंगे। सवाल ये उठता है कि नसीरुद्दीन से नागरिकता साबित करने को कहा किसने है?
“वो हर सुंदर कला को और भी सुंदर बनाती हैं। मर्दों की तरह मेहनत वो रात-दिन करती हैं, मगर फिर भी कुछ ना करने की तोहमत लगाई जाती है। दिल में जो डर का किला है, वो तोड़ दो अंदर से तुम, एक ही झटके में अपने आप ही वो ढह जाएगा। आओ मिलकर हम बढ़ें, अधिकार अपने छीन लें। काफिला अब चल पड़ा है। अब न रोक पाएगा।”
"हीबा 2 बिल्लियों को लेकर नसबंदी के लिए आईं। कर्मचारियों ने उन्होंने 5 मिनट इंतजार करने के लिए कहा, क्योंकि क्लिनिक में सर्जरी चल रही थी। मगर 2-3 मिनट के बाद ही हीबा गुस्से में आ गई और कर्मचारियों को बुरा-भला कहने लगीं। दो महिला स्टाफ सदस्यों के साथ मारपीट की, उन्हें थप्पड़ मारा।"
स्वराज कौशल ने लताड़ लगाते हुए कहा कि जब नसीरुद्दीन प्रलाप करते हैं तो ये उनका विवेकपूर्ण विचार बन जाता है जबकि अनुपम खेर अपने ही देश में शरणार्थी बनाए जाने के बावजूद जब कश्मीरी पंडितों की बात करते हैं तो उन्हें मानसिक रूप से विक्षिप्त कहा जाता है!
नसीर ने कहा कि 'आज के भारत' में उन्हें हर पल मुस्लिम होने का अहसास कराया जा रहा है। इस इंटरव्यू में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कहा कि जो कभी स्कूल नहीं गया, वो शिक्षा को लेकर कैसे कुछ समझेगा? बकौल नसीर, वो डरे हुए नहीं हैं बल्कि क्रोधित हैं।
पत्र में कथित लिबरल हस्तियों ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अदालत का दुरूपयोग कर रहे हैं। नसीरुद्दीन शाह सहित 180 हस्तियों ने लिखा कि वे 49 लोगों द्वारा पीएम को लिखे पत्र के एक-एक शब्द का समर्थन करते हैं।
इस तरह के बयानों का उस समय आना जब लोकसभा के चुनाव नज़दीक हों साफ दर्शाता है कि वो व्यावहारिक स्तर पर एक निश्चित व्यक्ति के ख़िलाफ़ कैम्पेनिंग कर रहे हैं।
नसीरुद्दीन शाह के ऐसे बयानों में नरेंद्र मोदी का विरोध स्पष्ट रूप से दिखता है। लेकिन, ऐसा भी लगता है कि नसीर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भी झूठ का सहारा लेते हैं।
डर तो इस बात से भी लगता है कि हिन्दू-मुस्लिम दंगे/झगड़े मे 'समुदाय विशेष' की जगह 'मुस्लिम समुदाय' लिखने पर मुझे साम्प्रदायिक कह दिया जाएगा। लेकिन क्या करें साहब, मन मारकर जी रहे हैं, क्योंकि यहाँ तो हिन्दू नाम होना ही साम्प्रदायिक हो जाने की निशानी है।