"अगर मस्जिद को (1992 में) ध्वस्त नहीं किया जाता, तब भी क्या यही फ़ैसला आता? हमारी लड़ाई ज़मीन के टुकड़े के लिए नहीं थी। यह सुनिश्चित करना था कि मेरे क़ानूनी अधिकारों का ध्यान रखा जाए। SC ने यह भी स्पष्ट कहा कि मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को नहीं गिराया गया। मुझे अपनी मस्जिद वापस चाहिए।"
लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट में माना गया है कि भगवान राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ था। इस रिपोर्ट में हिन्दू धर्म ग्रन्थ रामायण के आधार पर कमीशन ने राम और अयोध्या दोनों के अस्तित्व को स्वीकार किया है। ऐसे में इन वामपंथी इतिहासकारों से पूछा जाना चाहिए कि...
रामजन्मभूमि से करीब 4 किलोमीटर दूरी पर स्थित सहनवा को अयोध्या नगर निगम में शामिल करने के लिए 2017 में ही प्रस्ताव भेजा जा चुका है। अब सहनवा समेत 40 गाँवों को अयोध्या नगर निगम में शामिल होने की मंजूरी मिल सकती है।
चिंता का विषय यह है कि इन लोगों ने उन छात्रों को भी शिक्षित किया जो भविष्य में सैकड़ों लोगों को शिक्षित करेंगे। यह हमारी शिक्षा की स्थिति की एक भयानक तस्वीर को उजागर करता है। इससे यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि वर्तमान सरकार को प्राथमिकता के आधार पर छात्रों को पढ़ाए जाने वाले इतिहास के पाठ्यक्रम में संशोधन की आवश्यकता क्यों है?
पटकथा लेखक सलीम ख़ान के अलावा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर) जमीरउद्दीन शाह ने अयोध्या फ़ैसले पर आधारित टीवी पर एक चर्चा के कार्यक्रम में कहा था कि मुस्लिमों को दी जाने वाली ज़मीन पर स्कूल या अस्पताल का निर्माण क्यों नहीं कर लेना चाहिए? अयोध्या में पहले से ही पर्याप्त मस्जिदें हैं।
"हमें मस्जिद की ज़रूरत नहीं, नमाज तो हम कहीं भी पढ़ लेंगे..ट्रेन में, प्लेन में ज़मीन पर, कहीं भी पढ़ लेंगे। लेकिन हमें बेहतर स्कूल की ज़रूरत है। तालीम अच्छी मिलेगी 22 करोड़ मुस्लिमों को, तो इस देश की बहुत सी कमियाँ ख़त्म हो जाएँगी।"
"मुझे लगता है कि अदालत का फैसला हिन्दुओं के पक्ष में आएगा। यह सिर्फ हिन्दू या हिंदुस्तान का नहीं, बल्कि आस्था का मुद्दा है। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर विचार करेगा, क्योंकि भगवान राम सिर्फ हिन्दुओं के नहीं बल्कि पूरे संसार के भगवान हैं।"
"बाबरी मस्जिद, कानून और न्याय की नजर में एक मस्जिद थी। करीब 400 साल तक मस्जिद थी। शरीयत के हिसाब से वो आज भी मस्जिद है। सत्ता और ताकत के दम पर उसे कोई भी रूप दे दिया जाए कयामत तक वह मस्जिद ही रहेगी।"
प्रशासन ने कहा है कि अफ़वाह फैलाने वाले की सूचना देने वाले का नाम व पता गोपनीय रखा जाएगा। दोषी पाए जाने पर अफ़वाह फैलाने वालों को दंडित किया जाएगा। जनजीवन को सामान्य रखने में ज़िला प्रशासन के सभी अधिकारियों का सहयोग करें।
आदेश में कहा गया है कि सोशल मीडिया में देवी-देवताओं पर कोई भी अपमानजनक टिप्पणी करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा, ज़िला प्रशासन की अनुमति के बिना किसी भी देवता की मूर्ति की स्थापना नहीं होगी।