कॉन्ग्रेस से अरविंद ने करनाल लोकसभा से 2004 और 2009 में चुनाव लड़ा और यहाँ से उन्होंने दोनों बार जीत हासिल की, तीसरी बार 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के अश्विनी चोपड़ा से हार का मुंह देखना पड़ा। फिर उन्होंने कॉन्ग्रेस छोड़ दी।
ऐसे में सिर्फ एक व्यक्ति बचता है जो अभी प्रधानमंत्री है, और आगे भी हर हाल में प्रधानमंत्री बनना चाहता है। जिसके पास न अब सत्ता और षड्यंत्रों के अनुभवों की कमी है, न संसाधनों की, न समर्थकों की, न ऊर्जा की, न मुद्दों की और न ही दिलेरी की।
ममता ने अपने कार्यकर्ताओं से पोलिंग बूथ पर सतर्क रहने का आदेश दिया है। दरअसल, ममता का तर्क है जब
एक दिन में त्रिपुरा, राजस्थान में चुनाव हो सकते हैं तो बंगाल में क्यों नहीं सकते?
कॉन्ग्रेस प्रवक्ता रह चुके टॉम वडक्कन सोनिया गांधी के क़रीबी भी माने जाते थे। लेकिन, बीजेपी में शामिल होने के साथ ही उन्होंने कॉन्ग्रेस पर जमकर हमला बोला है।
जिन्हे विपक्षी तानाशाह कहते हैं, उन्होंने छोटे से छोटे दलों को भी गले लगाया, गठबंधन बचाया, नया गठबंधन बनाया। जो मंचों से एकता का नारा देते फिरते हैं, वे ही एक-दूसरे के साथ गठबंधन नहीं कर पाए। राजग आज भी समावेशी है।
चुनाव के इस मौसम में भाजपा भी बाहर से आ रहे नेताओं के स्वागत में खड़ी है। जदयू, लोजपा, शिवसेना और अकाली दल जैसे पुराने गठबंधन साथियों का साथ बनाए रख कर भाजपा और उत्साह में नज़र आ रही है।
इस घटना पर उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा, "हमने इस निंदनीय घटना का संज्ञान लिया है और दोनों को लखनऊ तलब किया गया है। सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।"
शाह ने एक ऐसा चक्रव्यूह रचा है, जिसमें उन्हें पता होता है कि विपक्षी नेता किस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरने वाले हैं। उनकी पार्टी तैयार रहती है। वे 'सबूत-सबूत' चिल्लाते रहते हैं, शाह संगठन मज़बूत करने में लगे रहते हैं और एजेंडा सेट करते हैं।