लोहरदगा में हुई हिंसा में घायल होने के बाद उन्हें राँची के ऑर्किड अस्पताल में भर्ती किया गया था। यहाँ से 2 दिन के इलाज के बाद ब्रेन हेमरेज व स्थिति गंभीर बताकर उसे रिम्स रेफर कर दिया गया था। CAA के समर्थन में निकाले गए तिरंगा यात्रा के दौरान पत्थरबाजी में नीरज घायल हो गए थे।
घटना 14 जनवरी की है। इस मामले को लेकर गॉंव में चार-पॉंच दिन तक पंचायत चलती रही। पीड़ित परिवार पर दबाव बनाया गया कि वे मामला दर्ज नहीं कराएँ, क्योंकि इससे कौम और मस्जिद की बदनामी होगी।
“कोई भी धर्म यह आदेश या उपदेश नहीं देता है कि ध्वनि विस्तारक यंत्रों के जरिए प्रार्थना की जाए या प्रार्थना के लिए ड्रम बजाए जाएँ और यदि ऐसी कोई परंपरा है, तो उससे दूसरों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए, न किसी को परेशान किया जाना चाहिए।”
ये पहली बार नहीं है जब प्रवेश वर्मा ने इस मुद्दे को सार्वजनिक तौर पर उठाया। इससे पहले वे इस संबंध में 18 जून को दिल्ली के उपराज्यपाल को पत्र लिख चुके हैं। उस पत्र में उन्होंने आरोप लगाया था कि देश की राजधानी में कई मस्जिदों का निर्माण सरकारी जमीन पर अवैध रूप से किया गया है।
BJP राज्य सचिव एके नजीर पर एक मस्जिद के अंदर घातक हमला किया गया। वह 'जन जागृति’ रैली में शामिल होकर CAA पर लोगों को जागरुक कर रहे थे। इस रैली के तुरंत बाद वो मस्जिद में नमाज़ के लिए गए। यहीं पर घात लगाए लोगों ने...
एक होटल को भी जला डाला गया क्योंकि उसका मालिक मुस्लिम था। दरअसल, इस घटना से पहले सोशल मीडिया में एक वीडियो काफ़ी सर्कुलेट हुआ था। उन वीडियोज में ईसाईयों के साथ ग़लत व्यवहार करने के लिए मुस्लिमों व इस्लाम की निंदा की गई थी।
अधिकारियों ने बताया कि रामपोरा में झेलम नदी पर प्रस्तावित 166 मीटर लंबे दो लेन वाले पुल को बनाने के लिए वर्ष 2002 में 10 करोड़ रुपये की परियोजना तैयार की गई थी। लेकिन, रास्ते में मस्जिद के आने की वजह से काम अटका पड़ा था। मुस्लिम समुदाय की सहमति से इसे हटाने का काम शुरू हो गया है।
डॉ अशफाक पूर्व आर्मी मेजर है। वो विस्फोटक को मस्जिद तक पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभाया था। अशफाक इस विस्फोट मामले के मुख्य आरोपित हाजी कुतुबुद्दीन का पोता है, और मस्जिद में अक्सर नमाज अदा करता था।
वसीम रिजवी ने कहा कि ओवैसी जैसे नेता समाज में नफरत फैलाने का काम करते हैं। ओवैसी जैसे नेताओं के ऐसे बयानों का मतलब सिर्फ नफरत को बढ़ावा देना और देश के मुस्लिमों को इस देश में अलग-थलग करने की साजिश है।
जमीयत उलेमा ए हिंद के अध्यक्ष और अयोध्या मामले में मुस्लिम पक्षकार अरशद मदनी ने अयोध्या मसले पर फैसला आने से पहले कहा था कि सर्वोच्च अदालत जो भी फैसला देगी, वह उन्हें स्वीकार होगा। यह अलग बात है कि फैसला आने के पाँच दिनों के बाद ही उन्हें...