"उन लोगों (माँ, दादी, परदादी) ने मुझे उदाहरण देकर मुझे सिखाया है कि जिंदगी में कोई भी मायने नहीं रखता। तुम्हारी जिंदगी तुम्हारी खुद की जिम्मेदारी है और उसमें किसी और की राय मायने नहीं रखती।"
जो सफल युवा होते हैं, वो हिन्दू धर्म से नफरत करते हैं - ज़ोया अख्तर की 'दहाड़' इस नैरेटिव को आगे बढ़ाती है। विलेन की राजपूत जाति पर जोर दिया गया है। 'लव जिहाद' को नकारा गया है।