Saturday, July 27, 2024
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‘मुस्लिम युवक के प्यार में हिन्दू लड़की’: राजस्थान चुनाव से पहले ‘लव जिहाद’ को नकारती ज़ोया अख्तर की ‘दहाड़’, सीरियल किलर की राजपूत जाति पर जोर

वेब सीरीज में में विजय वर्मा मुख्य विलेन के किरदार में हैं। ये आदमी दर्जनों लड़कियों को फँसा कर उनके साथ बलात्कार करता है और उनकी हत्या कर देता है। जानबूझ कर बार-बार एक सीरियल किलर के परिवार की जाति को हाइलाइट किया गया है।

सोनाक्षी सिन्हा और विजय वर्मा की एक वेब सीरीज आई है ‘दहाड़’, जिसकी निर्देशक रीमा कागती हैं। उनके साथ-साथ ज़ोया अख्तर इस सीरीज की क्रिएटर, प्रोड्यूसर और स्क्रीनप्ले राइटर हैं। जहाँ ज़ोया अख्तर को ‘ज़िन्दगी ना मिलेगी दोबारा (2011)’ और ‘गली बॉय (2019)’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है, रीमा कागती ‘तलाश (2012)’ और ‘गोल्ड (2018)’ जैसी बड़ी फिल्मों का निर्देशक कर चुकी हैं। लेकिन, चूँकि ये बॉलीवुड वेब सीरीज है तो इसमें प्रोपेगंडा न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है।

‘दहाड़’ जब शुरू होती है, तो आपको पहले 5-10 मिनट में ही दिख जाता है कि इसे बनाने वाले लोगों की मंशा क्या हो सकती है। सोनाक्षी सिन्हा बाकी साथियों की तरह अपने कोच के पाँव नहीं छूती, क्योंकि वो कहती हैं कि उनके ‘बाप’ ने ऐसा करने से मना किया है। उन्हें एक दलित पुलिस अधिकारी के किरदार में दिखाया गया है, जिसे हर जगह जातीय भेदभाव का सामना करना पड़ता है। कहानी राजस्थान में सेट की गई है। एक दलित SI, जो बिना हेलमेट बुलेट बाइक दौड़ाती फिरती है।

वैसे भी आजकल चलन है कि ‘थारे-म्हारे’ बोल कर किरदारों को राजस्थान दिखा दिया जाता है, भले ही बाकी के डायलॉग वो बंबइया या फिर पंजाबी एक्सेंट में ही क्यों न बोलें। जैसा कि फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने हाल ही में अपने एक विश्लेषण में पाया है, पुलिस किरदार के लिए भार मेकअप कर के टाइट फिटिंग कपड़े पहना दिए जाते हैं, हो गया। ‘दहाड़’ भी कुछ ऐसी ही है। सोनाक्षी सिन्हा की एक्टिंग इसमें एकदम बोरिंग और चिड़चिड़ा टाइप की है।

इस वेब सीरीज में दिखाया गया है कि एक ‘ठाकुरों की लड़की’ एक मुस्लिम लड़के के साथ भाग जाती है और हिन्दू संगठन पुलिस के कामकाज में बाधा डालते हैं। हिन्दू कार्यकर्ताओं को उपद्रव करने वाला दिखाया गया है। साथ ही एक व्यक्ति झूठ बोल देता है कि उसकी बेटी मुस्लिम लड़के के साथ भागी है, ताकि पुलिस उसके मामले में गंभीरता से कार्रवाई करे। वेब सीरीज के अंत में दिखाया गया है कि एक बड़े ठाकुर खानदान की लड़की स्वेच्छा से एक मुस्लिम युवक के साथ भागती है।

आजकल जब ‘The Kerala Story’ जैसी फिल्मों के माध्यम से ये दिखाया जा रहा है कि कैसे हिन्दू लड़कियों को ‘लव जिहाद’ में फँसा कर उनका इस्लामी धर्मांतरण कर के मानव तस्करी के माध्यम से ISIS के पास सेक्स-स्लेव बनने भेज दिया जाता है, ‘दहाड़’ जैसी वेब सीरीज वास्तविकता को नकारने के लिए वामपंथियों के नैरेटिव को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है। इसमें ये बताने की कोशिश की गई है कि ‘लव जिहाद’ कुछ होता ही नहीं है, मुस्लिम लड़कों के प्यार में हिंदू लड़कियाँ स्वेच्छा से पड़ती हैं।

सबसे बड़ा प्रोपेगंडा है कि हिन्दू कार्यकर्ताओ और हिन्दू संगठनों को उपद्रवियों के रूप में चित्रित करना। कर्नाटक में कॉन्ग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान ‘बजरंग दल’ की तुलना प्रतिबंधित आतंकी संगठन PFI से करते हुए इसे बैन करने का वादा किया था। इसमें दिखाया गया है कि एक हिन्दूवादी विधायक और उसके कार्यकर्ता जहाँ-तहाँ उपद्रव करते हैं, हिंसा करते हैं, मुस्लिमों के विरुद्ध हिंसा करते हैं और पुलिस को काम करने में बाधा पहुँचाते हैं।

वेब सीरीज में में विजय वर्मा मुख्य विलेन के किरदार में हैं। ये आदमी दर्जनों लड़कियों को फँसा कर उनके साथ बलात्कार करता है और उनकी हत्या कर देता है। जानबूझ कर बार-बार एक सीरियल किलर के परिवार की जाति को हाइलाइट किया गया है। विलेन का पिता एक महिला पुलिस अधिकारी को घर में घुसने से रोकता है, क्योंकि वो उसे ‘नीची जाति का’ समझता है। फिर वो संविधान के डायलॉग मारती हुई उसके घर में घुस जाती है रेड मारने के लिए।

क्या आपने वास्तविक ज़िन्दगी में कहीं ऐसे होते हुए देखा है? फिल्म का जो सबसे अच्छा किरदार दिखाया गया है, वो एक मुस्लिम होता है। सोनाक्षी सिन्हा किसी भी समस्या के समाधान और मार्गदर्शन के लिए उसके पास ही जाती हैं, उसने उन्हें पढ़ाया होता है। इस तरह जहाँ मुख्य विलेन को ठाकुर दिखाया गया है, उसे पकड़वाने में मदद करने वाला मुस्लिम और उसे पकड़ने वाली दलित होती है। इसमें कुछ भी बुरा नहीं है, बशर्ते जातियों पर विशेष जोर दिया जाए। इसमें यही किया गया है।

एक और बड़ी बात, जो आजकल सारे सिनेमा वाले साबित करने में लगे रहते हैं। पढ़े-लिखे युवा या अपने जीवन में सफल युवा पूजा-पाठ या हिन्दू धर्म में विश्वास नहीं रखते – ये वो नैरेटिव है जिसे आगे बढ़ाने की भरपूर कोशिश की जाती है। कोई बड़ी नौकरी कर रहा है या फिर मॉडर्न है, तो इसका अर्थ है कि वो हिन्दू धर्म की परंपराओं और रीति-रिवाजों को नीचा दिखाएगा ही। वेब सीरीज में सोनक्षी सिन्हा भी ऐसा ही करती हैं और माँ द्वारा पूजा पर बैठने के लिए कहे जाने पर अपमानजनक तरीके से आगे बढ़ जाती हैं।

हमें इस मिथक को तोड़ने की ज़रूरत है। हाल ही में NASA की महिला भारतीय कर्मचारी की एक तस्वीर सामने आई थी, जिसमें उनकी दशक पर देवी-देवताओं की तस्वीरें रखी हुई थीं। दुनिया के सबसे बड़े गणितज्ञों में से एक श्रीनिवास रामानुजन माँ लक्ष्मी के बड़े भक्त थे। मिसाइल मैन APJ अब्दुल कलाम को हमने संतों के चरणों में बैठे हुए देखा है। फिर आखिर ये दिखाने की बार-बार कोशिश क्यों की जाती है कि जो हिन्दू धर्म से जितना दूर होगा, उतना ही सफल होगा और मॉडर्न कहेगा?

अब इसे ज़रा पलट कर देखिए। क्या किसी मुस्लिम युवती को नमाज या कुरान का अपमान करते हुए कभी भी दिखाया जाता है? ऐसा बिलकुल नहीं होगा। उन्हें बुर्का या हिजाब का विरोध करते हुए बॉलीवुड नहीं दिखा सकता, इस्लाम तो दूर की बात है। फिर हिन्दू धर्म के लिए ही ऐसा क्यों प्रदर्शित किया जाता है? कभी किसी ईसाई युवक को बाइबिल का विरोध करते हुए दिखाया गया? ये चीजें ईशनिंदा में आ जाएँगी, लेकिन हिन्दुओं के लिए सब चलता है।

इस वेब सीरीज में लड़के-लड़की के बीच शादी के बिना अस्थायी रिश्तों पर जोर दिया गया है, मतलब दोनों में से किसी एक ने जगह बदल दिया तो सब खत्म। साथ ही शादी के लिए लड़का-लड़की के परिवारों के मिलने वाले रिवाज का बार-बार मजाक बनाया गया है। एक तरह से ये दिखाने की कोशिश की गई है कि सफल लड़कियों को शादी नहीं करनी चाहिए, सिर्फ ‘Casual Relationships’ में रहना चाहिए। सीरीज ‘जय भीम-जय मीम’ क्र प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाती हुई दिखती है।

कुल मिला कर बात ये है कि वास्तविक तथ्यों और खबरों के आधार पर अगर आप गायब लड़कियों की कहानी दिखाने के लिए ‘The Kerala Story’ बनाते हैं तो वामपंथी और इस्लामी कट्टरपंथी आपको गाली देंगे, लेकिन ‘दहाड़’ में एक हिन्दू सीरियल किलर को दर्जनों लड़कियों की रेप-हत्या करते हुए दिखाया जाएगा तो वाहवाही देंगे। एक रियल लाइफ पर आधारित है, एक फिक्शन है। फिक्शन में जम कर प्रोपेगंडा है, हिन्दू विरोधी और जातिवादी। ये भी याद रखने की ज़रूरत है कि राजस्थान में इस साल चुनाव भी होने हैं।

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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