कई राजनेताओं ने केंद्र सरकार के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि ये भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता और उसके लोगों के कल्याण के हित में लिया गया फैसला है। हालाँकि, इनमें से सभी नेता अपनी पार्टी के रुख का खुलकर विरोध नहीं कर रहे हैं।
'हमने सिर्फ एक किताब फाड़ा है।' यानी कि उनके अनुसार देश के संविधान की प्रति उनके लिए महज एक किताब है। उनका कहना है कि संविधान उन्होंने नहीं, बल्कि भाजपा ने फाड़ा है।
अनुच्छेद 370 में किए गए बदलाव पर जहाँ पूरा देश जश्न मना रहा है, वहीं पश्चिम बंगाल में लोगोंं को हिरासत में लिया गया। पुलिस ने सिलीगुड़ी में भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष कंचन देबनाथ और महामंत्री समेत 5 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया है।
"आप लोग डरिए मत, ये हम कह रहे हैं... ये जुल्म कश्मीरी बर्दाश्त नहीं करेगा। हिन्दुस्तान तो फासिस्ट है... ये हमारे लिए एक लानत है और मैं इस लानत को स्वीकार नहीं करूँगा।"
”हम समझते हैं कि नेहरू की वजह से कश्मीर हमारे पक्ष में आया। अगर रेडक्लिफ अवॉर्ड न होता और गुरदासपुर हमारे पास न होता और मैजॉरिटी का सिद्धांत माना जाता तो शायद यह राज्य हमारे पक्ष में न आता। उस वक्त सरदार पटेल होम मिनिस्टर थे और वही यहाँ 370 लेकर आए।”
किताबें तो मैंने भी बहुत पढ़ी हैं, और पेज नंबर मुझे भी याद हैं, लेकिन मैं अभी तक इतना धूर्त नहीं बन पाया कि उस ज्ञान का इस्तेमाल अपनी फर्जी विचारधारा और मालिकों के प्रोपेगेंडा की रोटी सेंकने में कर सकूँ। वो तरीके रवीश को ही मुबारक हों।
जहाँ कॉन्ग्रेस के आलाकमान अनुच्छेद-370 का 'पावर' खत्म होने का विरोध कर रहे हैं, वहीं पार्टी के दो धुरंधर युवा नेता मोदी सरकार के फैसले से न सिर्फ खुश हैं बल्कि अपनी बात रख भी रहे हैं। इनके अलावा वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेता जनार्दन द्विवेदी ने भी...
जेएनयू में आर्टिकल 370 पर सरकार के फैसले के ख़िलाफ़ 'आजादी-आजादी' के नारों की गूँज सुनाई दी। भीड़ ने रात के अँधेरे में यहाँ जमकर नारेबाजी की और अनुच्छेद 370 को वापस लेने की माँग की। इन लोगों ने सेना को लेकर भी काफ़ी अपशब्द बोले।
मौलाना अब्बास ने यह भी कहा कि हिन्दुस्तान एक है, संविधान एक है तो सब कुछ एक होना चाहिए। आगे भी ऐसे काम होते रहने चाहिए जिससे भेदभाव ख़त्म किया जा सके जिससे देश में एकता नज़र आए।
पाकिस्तान ने भारत के इस फ़ैसले पर कहा है कि कश्मीर का मुद्दा एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। इसलिए भारत सरकार इस मसले पर एकतरफ़ा फ़ैसला नहीं कर सकता। ऐसा करने से कश्मीर का मुद्दा हल नहीं होगा, इसलिए यह फ़ैसला न तो पाकिस्तान को स्वीकार्य है और न ही जम्मू-कश्मीर के लोगों को स्वीकार्य है।