"शरजील के ख़िलाफ़ असम और उत्तर प्रदेश की पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है, वो निंदाजनक है। शरजील सिर्फ़ नागरिकता संशोधन कानून का मौख़िक आलोचक है और AMU में जो उसने असम के बारे में बयान दिया, उसे संघ के लोग और भाजपा प्रवक्ता गलत तरह से पेश कर रहे हैं।"
जानकी ने अपने निबंध में लिखे कुछ वाक्यों को शेयर किया। साथ ही बहार की किताब का स्क्रीनशॉट भी ट्वीट में डाला। हैरानी की बात यह थी कि जानकी के आर्टिकल और बहार की किताब में लिखे शब्दों में कोई फर्क नहीं है।
मीडिया गिरोह ऐसे आंदोलनों की तलाश में रहता है, जहाँ अपना कुछ दाँव पर न लगे और मलाई काटने को खूब मिले। बरखा दत्त का ट्वीट इसकी प्रतिध्वनि है। यूॅं ही नहीं कहते- तू चल मैं आता हूँ, चुपड़ी रोटी खाता हूँ, ठण्डा पानी पीता हूँ, हरी डाल पर बैठा हूँ।
बरखा दत्त ने एक इंटरव्यू में कबूल किया था कि मुंबई हमले के दौरान टीवी चैनलों और उनके पत्रकारों ने जिस तरह की रिपोर्टिंग की उससे सैकड़ों लोगों की जान ख़तरे में आ गई थी। यहॉं तक कि सुरक्षा बलों के जवानों की जान भी ख़तरे में पड़ गई थी।
सिब्बल ने दावा किया था कि यह सब ट्वीट करने के पहले ही बरखा दत्त को चैनल से बर्खास्त किया जा चुका है। इसके पीछे उन्होंने कारण अनुशासनहीनता बताया था। इसके अलावा उन्होंने दत्त को एक भी पैसा देने से साफ़ इनकार कर दिया था।
बरखा ने आरोप लगाया था कि कपिल सिब्बल की पत्नी प्रोमिला सिब्बल तिरंगा टीवी में कार्यरत महिला कर्मचारियों को “कुतिया” या “बिच” कह कर बुलाती थीं। सिब्बल दम्पति के ख़िलाफ़ बरखा ने सिविल सूट दायर कर रखा है।
"चैनल के ठप्प हो जाने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी को वजह बताना बिलकुल झूठ है, भारत सरकार ने कुछ नहीं किया है। इन पति-पत्नी ने तिरंगा TV के स्टाफ़ से मिलने की कोशिश तक नहीं की और चैनल बंद करके लंदन चले गए, जिस कारण मैं इन्हें माल्या बुलाने पर मजबूर हूँ।"