इस पूरे खेल में कई बैंक अधिकारी भी मिले हुए थे क्योंकि उन्होंने आरोपित द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों की पुष्टि करने की भी कोशिश नहीं की। अधिकारियों ने लोन ग्रांट करने के लिए नियमों को ताक पर रखा और इसके बाद राथेर ने रुपयों की हेराफेरी की, इसीलिए ये मनी लॉन्ड्रिंग का केस बनता है।
पहले यह बंगला गौतम थापर का था। उन्होंने यस बैंक से इसे गिरवी रख लोन लिया। बाद में लोन चुकाने के लिए बंगला बेचने की बात कही। इसके बाद बिंदु के नाम से एक शेल कंपनी बनाई गई जिसने बंगला खरीद लिया।
अभी इस मामले पर कुछ अन्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई की जा सकती है। इसमें 2012 से 2016 तक बारामुला, राजौरी, उधमपुर, डोडा, और रामबन जिले में डीसी रह चुके अधिकारी प्रमुख रूप से शामिल हैं।
जब यादव सिंह चीफ इंजीनियर थे, तब कुल 116.39 करोड़ का टेंडर 5 प्राइवेट फर्म्स को जारी हआ था। CBI का आरोप है कि गुल इंजीनियरिंग के मालिक जावेद अहमद, यादव सिंह के पुराने और करीबी दोस्त हैं। इस कंपनी को नियमों का उल्लंघन करके टेंडर दिया गया था।
सीबीआई की चार्जशीट में बताया गया है कि रिश्वत की बात पेड़, गमला, समान और प्रसाद जैसे कोड वर्ड के जरिए की गई। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का कोड वर्ड 'मंदिर' था। हवाला लेन-देन के लिए 'दस रुपए का नोट' कोड वर्ड का इस्तेमाल किया गया।
बालिका गृह से गायब दाे किशोरियॉं आखिर कहॉं गईं? जिन दो बच्चियों की हत्या की बात उनके साथियों ने कही थी, उनके शव ब्रजेश ठाकुर एंड कंपनी ने कहॉं ठिकाने लगाया? दो बड़े सवाल जिनका सीबीआई नहीं दे पाई जवाब।
111 पन्नों की उस रिपोर्ट के 6 पन्ने इतने भयावह दास्तानों से भरे पड़े थे कि पूरा देश उबल पड़ा। यौन शोषण, प्रताड़ना, जानवरों से भी बदतर हालात में रहने की मजबूरी। जिम्मेदार बताए गए 71 अधिकारियों पर गाज गिरेगी या फिर होगी लीपापोती?
कारनेशन ने 2009 में पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) से 170 करोड़ रुपए का लोन लिया था। लेकिन साल 2015 में ये लोन एनपीए घोषित हो गया। इससे पीएनबी को 110 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। इस मामले में पीएनबी ने आपराधिक षडयंत्र और धोखाधड़ी का केस दर्ज करवाया।
1991 के बाद यह पहला मामला है जब CJI ने एक CBI को हाई कोर्ट में कार्यरत किसी न्यायमूर्ति के खिलाफ FIR दर्ज करने की अनुमति दी। जस्टिस एस एन शुक्ला पर PIMS के पक्ष में निर्णय देने के लिए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं।
इन सभी पर यह आरोप लगाया गया कि 30 जून 2009 से 06 जुलाई 2017 तक मणिपुर डेवलपमेंट सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में काम करते हुए अभियुक्तों ने अन्य लोगों के साथ षड्यंत्र रचते हुए सरकारी धन क़रीब 518 करोड़ रुपए की कुल राशि में से लगभग 332 करोड़ रुपए का गबन किया है।