उनकी नज़र में हनुमान चालीसा का पाठ कर शांतिपूर्ण तरीके से विरोध जताने वाले छात्र 'धब्बा' हैं। लेकिन, स्टेशन पर लोगों को बंधक बना कर ट्रेन परिचालन ठप्प करने वालों से शांति की अपील करना भी उन्हें गॅंवारा नहीं। शायद इसलिए क्योंकि दंगाई अपने ही कौम के हैं।
हिंसक प्रदर्शन को लेकर जामिया प्रशासन ने कहा है कि इसमें शामिल ज्यादातर लोग बाहरी थे। उल्लेखनीय है कि यूनिवर्सिटी के आसपास के इलाकों में समुदाय विशेष के लोगों की घनी आबादी है। तो क्या इस प्रदर्शन के पीछे कोई साजिश रची गई थी?
“ये अमित शाह या मोदी के बाप का मुल्क नहीं है। 800 वर्षों तक हमने देश पर राज किया, लेकिन हमारी हड्डी में उबाल नहीं आया। अगर हम अपने पर आ गए तो भागने का रास्ता नहीं रहेगा।”
सना अमजद ने इस पाकिस्तानी युवक का इंटरव्यू लिया है। सोशल मीडिया में यह वायरल हो रहा है। उसकी समझदारी की तारीफ कर लोग कह रहे- करोड़ों में एक मिला है, जो जाहिल नहीं हैं।
मौजूदा क़ानून के मुताबिक किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल यहाँ रहना अनिवार्य था। नए कानून में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह अवधि घटाकर 6 साल कर दी गई है।
पश्चिम बंगाल में एम्बुलेंस और गाड़ियों पर भी पथराव किया गया। हिंसक विरोध-प्रदर्शन में एक पुलिसकर्मी भी घायल हो गया। शुक्रवार को, प्रदर्शनकारियों ने पश्चिम बंगाल के हावड़ा ज़िले में भी उग्र प्रदर्शन किए। उन्होंने उलुबेरिया रेलवे स्टेशन पर हिंसात्मक गतिविधियों को अंजाम दिया।
भारत दौरे पर आए मालदीव के स्पीकर मोहम्मद नशीद नागरिकता संशोधन क़ानून पर अपनी राय देते हुए कहा, "नागरिकता संशोधन बिल की पूरी प्रक्रिया को संसद के दोनों सदनों से मंज़ूरी मिली है और मैं उस दौरान ख़ुद भारत की संसद में मौजूद था।"
उस समय बजरंग दल व अन्य हिन्दू संगठनों ने उनकी मदद की। उपायुक्त ने भी उन्हें वहाँ रहने की छूट दे दी। इसके बाद वे वर्ष 2006 में रोहतक से फतेहाबाद के रतिया क़स्बे के निकट गाँव रतनगढ़ में आकर रहने लगे। यहाँ वो पिछले 13 सालों से रह रहे हैं।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही यह कानून बन गया है। इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता मिलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।