फारूक अब्दुल्ला को जिस पीएसए एक्ट तहत हिरासत में लिया गया है उसमें किसी व्यक्ति को बिना मुक़दमा चलाए 2 वर्षों तक हिरासत में रखा जा सकता है। अप्रैल 8, 1978 को जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल से इसे मंजूरी मिली थी। यह क़ानून लकड़ी की तस्करी रोकने के लिए लाया गया था।
आलिया अब्दुल्ला ने बोलने के संवैधानिक अधिकार को रेखांकित करते हुए कहा कि सरकार को घाटी के राजनेताओं से अपनी भाषा बोलने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और उनके (घाटी के नेताओं) विचारों का सम्मान करना चाहिए।
साल 2015 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने इस केस की कमान CBI को सौंप दी थी। ऐसा करने के पीछे तर्क यह दिया गया था कि फारूक अब्दुल्ला का राज्य में काफ़ी दबदबा था और ऐसी संभावना थी कि राज्य पुलिस को इस मामले की जाँच में परेशानी हो सकती थी।
मामला 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को सौंपा था। CBI ने गत वर्ष जुलाई में फारूक के अलावा तीन और लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर की थी। जिस वक़्त यह घोटाला हुआ फारूक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और राज्य क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष थे।
इस अनुच्छेद की वजह से कश्मीर में आरटीआई भी लागू नहीं है। इसके अलावा शहरी भूमि क़ानून भी वहाँ लागू नहीं होता। जम्मू कश्मीर का अपना अलग ध्वज है और वहाँ के निवासियों के पास दोहरी नागरिकता होती है। यहाँ विधानसभा का कार्यकाल भी 6 वर्षों का होता है।
"अगर मैं उन्हें कभी मिलूँगा तो उन्हें ये बात ज़रूर बोलूँगा कि वह काफी अच्छा काम कर रही थीं। ये उनकी पर्सनल च्वाइस है। बॉलीवुड में काम करने से कोई गैरमुस्लिम नहीं बन जाता है।"
फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने मोदी के बयान की प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "तुम ये कहते हो कि अब्दुल्ला हिंदुस्तान को तोड़ना चाहता है। अरे, अगर हम हिंदुस्तान को तोड़ना चाहते तो हिन्दुस्तान आज होता ही नहीं।" अब्दुल्ला ने हाल ही में अनुच्छेद 370 को लेकर भी धमकी दी थी।
घाटी के सारे नेताओं के देशविरोधी बयान।महबूबा मुफ़्ती ने भी धारा 370 को लेकर कहा कि पूरा देश जल उठेगा। फ़ारूक़ के बेटे उमर ने जम्मू कश्मीर के लिए अलग पीएम-राष्ट्रपति की माँग की थी। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने जम्मू कश्मीर पुलिस को दुश्मन बताया था।
देश के जवानों की मौत और प्रधानमंत्री के कार्यों पर सवाल उठाने वाले फारूक का नाम उन नेताओं की सूची में रह चुका हैं जिन्हें जान का खतरा होने पर सरकार द्वारा जेड प्लस सिक्योरिटी तक मुहैया कराई गई।