Saturday, April 20, 2024
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मगर वो 40 लोग CRPF के शहीद हो गए… उसपर भी मुझे शक है – फारूक अब्दुल्ला का शर्मनाक बयान

अगर सीमा पार से आत्मघाती हमले का इरादा लेकर आए आतंकी आतंकवाद का प्रत्यक्ष चेहरा हैं, तो फारुख जैसे नेता भी अघोषित रूप से उनका ही चेहरा हैं। फर्क़ सिर्फ़ इतना है कि उन लोगों के इरादे भयंकर विस्फोट में दिख जाते हैं और इनके हमले अभिव्यक्ति की आजादी और अधिकारों की आड़ में छिप जाते हैं।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता फारूक अब्दुल्ला समय-समय पर बयानों के जरिए अपना असली चेहरा दिखाते रहे हैं। कभी सीजफायर के उल्लंघन पर भारत को बराबर का दोषी बताकर तो कभी पाकिस्तान के जवानों के प्रति सहानुभूति दिखाकर। इतना ही नहीं फारूक ने नई पीढ़ी के आतंकियों को आजादी के लिए लड़ाई लड़ने वाला तक भी बताया हुआ है। लेकिन इस बार उन्होंने हद कर दी है।

एएनआई द्वारा जारी वीडियों में फारूक अब्दुल्ला ने आज मीडिया से बात करते हुए उन 40 जवानों की वीरगति पर संदेह जताया जो पुलवामा हमले का शिकार हुए है। ज़रा सोचिए! जिन फारूक अब्दुल्ला की जान की सुरक्षा में भारत सरकार ने हमेशा सुरक्षाबलों को तैनात रखा। आज उनके ऐसे सुर वो भी पुलवामा के उन जवानों के लिए जो भयावह हमले का शिकार हुए कितने शर्मसार करने वाले हैं।

फारूक के ज़हन से ये बात उस समय निकली जब वह प्रधानमंत्री क ख़िलाफ़ बयान दे रहे थे। इस बयान में उन्होंने कहा,  “कितने सिपाही हिंदुस्तान के छत्तीसगढ़ में शहीद हुए, क्या कभी मोदी जी वहाँ गए, उनपर फूल चढ़ाने के लिए , या उनके खानदान वालों से हमदर्दी की? या जितने जवान यहाँ मरे उसपर कुछ कहा… मगर वो 40 लोग सीआरपीएफ के शहीद हो गए… उसपर भी मुझे शक है।”

फारूक की इस वीडियो में प्रधानमंत्री मोदी पर लगाए इल्जामों पर शायद कोई इतना गौर न भी करता, क्योंकि अलूल-जलूल बातें करने की उनकी आदत रही है। लेकिन जो उन्होंने पुलवामा में जवानों की मौत पर सवाल खड़ा किया, वो न केवल निंदनीय है बल्कि फारूक की हक़ीकत और नीयत को बयान करने के लिए भी काफ़ी है।

यह पहला मौका नहीं हैं कि उनकी बातों में द्वेष भावना दिखी हो। समय-समय पर फारूक जनता को भड़काने का काम अच्छे से करते रहे हैं। फारुक ही वह शख्स है जिन्होंने केंद्र सरकार को खुलेआम चुनौती दी थी कि ‘सरकार pok पर तो भूल जाएं, पहले श्रीनगर में ही तिरंगा को फहराकर दिखाएँ।’

हैरानी होती है, जब लोग ऐसे भड़काऊ लोगों को समर्थन देने में अपना वक्त और ताकत जाया करते हैं, जिनके खुद के अस्तित्व का कोई औचित्य न रह गया हो।

देश के जवानों की मौत और प्रधानमंत्री के कार्यों पर सवाल उठाने वाले फारूक का नाम उन नेताओं की सूची में रह चुका हैं जिन्हें जान का खतरा होने पर सरकार द्वारा जेड प्लस सिक्योरिटी तक मुहैया कराई गई। आज वही फारूक और उनके बयान देश के लिए नासूर बनते जा रहे हैं। जो समय-समय पर देश की उदारता को उसकी कमजोरी समझ लेते हैं और खुलेआम देश विरोधी बयानबाजी करते हैं।

अगर सीमा पार से आत्मघाती हमले का इरादा लेकर आए आतंकी आतंकवाद का प्रत्यक्ष चेहरा हैं। तो फारुख जैसे नेता भी अघोषित रूप से उन्हीं उनका ही रूप हैं। फर्क़ सिर्फ़ इतना है कि उन लोगों के इरादे भयंकर विस्फोट में दिख जाते हैं और इनके हमले अभिव्यक्ति की आजादी और अधिकारों की आड़ में छिप जाते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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