अगर पहले और अभी के फी की बात करें तो मेस बिल और इस्टैब्लिशमेंट चार्ज में कोई बदलाव नहीं किया गया है। छात्रों को बस बिजली और सफाई का बिल देने कहा गया। इसके विरोध में शुरू हुए प्रदर्शन को वामपंथी छात्र नेता हिंसक रूप देने की कोशिश कर रहे हैं।
"जेएनयू में एक महिला प्रोफेसर के साथ इतनी बदसलूकी? यह कोई छात्र आन्दोलन नहीं हो सकता। ताज्जुब नहीं होगा यदि यह कपड़े फाड़ने का प्रयास करने वाली वामपंथी विचारधारा की समर्थक छात्रा, कल महिला अधिकारों पर भाषणबाजी करते हुए दिखे। शर्मनाक!"
फीस वृद्धि के अलावा छात्रों की माँग है कि हॉस्टल में किसी छात्र से सर्विस चार्ज नहीं लिया जाए, हॉस्टल में आने-जाने के लिए समय सीमा को खत्म किया जाए, हॉस्टल में ड्रेस कोड नहीं लागू किया जाए, साथ ही नए हॉस्टल मैन्यू पूरी तरह रद्द किया जाए।
हास्यास्पद यह है कि जितनी भीड़ वामपंथियों ने विरोध के लिए जुटाई थी और जितनी ऊँची आवाज में वो विरोध कर रहे थे, उससे कहीं अधिक जय श्री राम के नारे की गूँज सुनाई दे रही थी। वीडियो में वामपंथी विरोध की दम तोड़ती आवाज को सुनिए और मजे लीजिए।
कैम्पस नक्सलियों की हरकतों से ट्विटर पर कई प्रबुद्ध व्यक्तित्व बिफर उठे हैं। आदित्य राज कौल ने कहा है कि अवैध रूप से किसी को बंदी बनाना कानून के खिलाफ है। एएनआई सम्पादक स्मिता प्रकाश ने भी घटना की आलोचना की है। वरिष्ठ पत्रकार कंचन गुप्ता ने जेएनयू को 'रिपब्लिक ऑफ़ जेएनयू' बताते हुए बेबस देश की......
वामपंथी छात्र नेता साकेत मून के आरोपों का जवाब देते हुए जेएनयू प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि जेएनयू कैंपस में सीआरपीएफ की तैनाती नहीं की गई है, कोई भी आकर देख सकता है। उन्होंने कहा कि छात्रों को गुमराह करने के लिए ऐसे दावे किए जा रहे हैं।
प्रोफ़ेसर कदम की पत्नी और छोटे बच्चे भी उस समय हेल्थ सेंटर में ही मौजूद थे, जब छात्र उन्हें इलाज के लिए बाहर नहीं ले जाने दे रहे थे। उनकी तबियत बिगड़ती ही जा रही थी और पत्नी लगातार तनाव में थीं। छात्र बीमार प्रोफेसर को ले जा रही एम्बुलेंस के सामने खड़े हो गए।
सरकारी वकील ने बताया कि दिल्ली सरकार से अब भी जेएनयू मामले में देशद्रोह का मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं मिली है। जबकि दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 1200 पन्नों की चार्जशीट दायर कर रखी है।