खुफिया एजेंसियों ने ऐसे तमाम संगठन और मशहूर लोगों के नाम की सूची बनाकर उनके नंबर जुटाने शुरू कर दिए हैं, जिनसे पूछताछ होनी है कि बरेली में हत्यारों को हर मुमकिन मदद किस किस ने दी।
"क्या मुसलमान, मुसलमान की तरह बोल सकता है?" - वायर के इस वीडियो में कमलेश तिवारी की हत्या को मुसलमानों के लिए 'परेशानी का सबब' बताया जाता है। क्यों? क्योंकि इस्लाम में पैगंबर माने जाने वाले मोहम्मद के खिलाफ...
अब इस मामले में आरोपितों के अलावा उनसे जुड़े संदिग्ध लोगों की भी जाँच जारी है। जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का एक पूर्व छात्र भी शामिल है। जो गुजरात का ही निवासी है।
पुलिस ने अशफाक और मोइनुद्दीन का आमना-सामना आसिम से करवाया। देखते ही दोनों ने आसिम को पहचान लिया। अशफाक ने उससे कहा, "ये काम मैंने कर दिखाया।" आसिम ने ही दोनों को हत्या के लिए उकसाया था।
एक के सामने जाति की चादर ओढ़े प्रभावशाली राजनीतिक बिरादरी था, तो दूसरे के सामने धर्म की खाल में लिपटे दरिंदे हैं। बावजूद इसके इन्होंने जो जज्बा दिखाया वो बताता है कि हमें विरासत के नाम पर उड़ान भरती महिलाओं से ज्यादा इनके हौसले की दरकार है।
"कमलेश सर, मेरा नाम संजय है। मेरी बहन को एक मुस्लिम लड़के ने अपने प्यार में फँसा लिया है।" - संजय बने मोइनुद्दीन ने कमलेश तिवारी को यही फर्जी कहानी सुना कर बातचीत को आगे बढ़ाया। उसकी कहानी सुलकर कमलेश आवेश में आ गए और...
इस मामले में सभी साज़िशकर्ता और दोनों हत्यारे पकड़े जा चुके हैं। सूरत से मौलाना शेख, फैजान और रशीद पठान को गिरफ़्तार किया गया था। संदिग्ध हत्यारे अशफ़ाक़ और मोईनुद्दीन राजस्थान और गुजरात की सीमा से दबोचे गए थे।
नृशंस हत्या का विरोध करने और हत्यारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की बात करने के बजाय जमीयत-उलेमा-ए-हिंद हत्यारों के बचाव में सामने आया है। जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने कहा है कि हत्यारों को बचाने में जो भी कानूनी खर्च आएगा, उसे वो वहन करेंगे।
सबके अंत में एक ही मकसद: कमलेश तिवारी की गर्दन काटनी है। ये किसी व्यक्ति की सोच नहीं है, ये सामूहिक सोच है जो किसी व्यक्ति के माध्यम से फलित होती है। कमलेश तिवारी की हत्या अशफाक और मोइनुद्दीन ने ही नहीं, एक मजहब ने की है जो ऐसे लोगों को रोकना तो छोड़िए, उनकी निंदा तक नहीं कर पाता।