मायावती ने आगे कहा कि इस स्थिति में, कॉन्ग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए कश्मीर जाना और स्थिति का राजनीतिकरण करने का प्रयास करना उचित नहीं था। उन्होंने आगे कहा कि पार्टियों को कश्मीर जाने से पहले थोड़ा इंतज़ार करना चाहिए।
“राजस्थान कॉन्ग्रेस सरकार की घोर लापरवाही व निष्क्रियता के कारण बहुचर्चित पहलू खान माब लिंचिंग मामले में सभी 6 आरोपित वहाँ की निचली अदालत से बरी हो गए, यह अतिदुर्भाग्यपूर्ण है।”
मायावती ने पूरी बसपा की ओर से आखिर में प्रदेश की भाजपा सरकार से गुहार लगाई है कि वो इस मामले के संबंध में सपा और कॉन्ग्रेस नेताओं के ख़िलाफ़ सख्त कदम उठाएँ और आदिवासियों को उनकी जमीनें वापस दिलवाएँ।
मायावती के भाई की संपत्ति में 2007 से लेकर 2014 तक 7 वर्षों में 18,000% की वृद्धि दर्ज की गई। मायावती के सत्ता संभालने के बाद आनंद ने एक के बाद एक कुल 49 नई कम्पनियाँ खोलीं। 2014 में उनकी संपत्ति 1316 करोड़ रुपए आँकी गई थी।
हाजी इक़बाल के बारे में कहा जाता है कि वह पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का क़रीबी है। उसका नाम खनन घोटाले में भी आ चुका है। हाजी इक़बाल को 2010 में बसपा से विधान पार्षद बनाया गया था। उसके भाई महमूद अली को भी विधान पार्षद बनाया गया है। जानिए यूपी के चीनी मिल घोटाले के बारे में।
"मेरी नजर में अखिलेश यादव की कोई अहमियत नहीं रह गई है। राम गोविंद चौधरी ने सपा के वोट भाजपा को ट्रांसफर करवा दिए लेकिन फिर भी अखिलेश ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की।"
बसपा सुप्रीमो मायावती की अहम बैठक में उनके भाई आनंद कुमार को पार्टी ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया। वहीं उनके भतीजे आकाश को नेशनल कोऑर्डिनेटर की जिम्मेदारी दी गई। साथ ही 'बुआ-बबुआ' पर लगाम लगाते हुए आगामी उपचुनाव में पार्टी नेताओं को सपा से अलग चुनाव लड़ने की तैयारी करने को कहा गया।
पीड़िता ने इस बात का भी ख़ुलासा किया था कि अतुल राय ने उसे जान से मारने की धमकी भी दी थी। अतुल राय लोकसभा चुनाव प्रचार के समय से ही लापता था। पिछले दिनों संसद में शपथ ग्रहण के दौरान भी अतुल राय वहाँ मौजूद नहीं था, इसलिए भी वो चर्चा का विषय बना हुआ था।
लोकसभा चुनाव 2019 थम गए हैं लेकिन इसके नतीजे और रुझान थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। चुनाव में बहन मायावती की पार्टी BSP को मिली करारी हार के बाद पार्टी में असंतोष खुलकर सामने आ गया है।
इस घोटाले के बारे में उन्हें तब मालूम चला था जब बीज निगम ने भुगतान के लिए अपना बिल कृषि विभाग के पास भेजा था। इस दौरान 99 लाख का फर्जी बिल पाया गया, जिसके बाद ही घोटाले की विभागीय जाँच शुरू हुई।