'द वायर' ने गुरुग्राम की फेक दावों वाली ख़बर का सच सामने आने के बावजूद उसे लेकर 'डर का माहौल' वाला प्रोपेगैंडा फैलाना जारी रखा। न मुस्लिम की टोपी फेंकी गई, न शर्ट फाड़ी गई और न 'जय श्री राम' बोलने को कहा गया, फिर भी 'द वायर' झूठ फैला रहा है।
"नोटबंदी के लॉन्ग-टर्म फायदे हुए हैं। लोगों पर टैक्स का भार कम हुआ है लेकिन टैक्स कलेक्शन दोगुना से भी अधिक हो चुका है। जनहित के कार्यों को ज्यादा फंडिंग मिली और इससे बिजली एवं स्वच्छता के क्षेत्र में काफ़ी अच्छे काम हुए। ग़रीबों के 20 करोड़ नए बैंक खाते खुले।"
फैक्ट चेक के लिए बाजार जब कोई खबर ना हो तो लल्लनटॉप और उन्हीं की तरह की एक विचाधारा रखने वाले स्टाकर से फैक्ट चेकर बने ऑल्ट न्यूज़ ने यह सबसे आसान तरीका बना लिया है कि फेकिंग न्यूज़ का ही फैक्ट चेक कर के जीवनयापन किया जाए।
यह महज़ संयोग है या फिर साज़िशन ऐसा किया गया? क्या 'द वायर' की पोलिटिकल रिपोर्टिंग वाक़ई बकवास और अनुभवहीन है, या जान-बूझ कर चुनावों को प्रभावित करने के लिए ऐसे लेख लिखे गए?
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि राहुल गाँधी हमेशा इसी फ़िराक में रहे कि मोदी कब कोई चूक करें और फिर उन्हें मुद्दा बनाकर जनता के समक्ष उनकी छवि को धूमिल किया जा सके।
पाकिस्तानी मीडिया ने स्क्रॉल के इस लेख को हाथोंहाथ लिया। इसमें मोदी की जीत के पाँच कारण गिनाए गए हैं लेकिन काफ़ी ज़हरीले तरीके से। लिखा गया है कि इलीट लोग मोदी के बेअदबी भरे भाषणों से नाराज़गी जताते हैं। इनमें अशुद्धियाँ और नाटकीयता होती है।
लेखक ने आरोप लगाया कि अगले कुछ वर्षों में भारत पर वैष्णव शाकाहार थोप दिया जाएगा। हालाँकि, इसके लिए उन्होंने कोई बैकग्राउंड नहीं दिया। रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों के भाजपा में शामिल होने को लेकर भी इस लेख में नाराज़गी जताई गई है। कहा गया है कि सैन्य अधिकारी समझते हैं कि एक ही पार्टी उनके लिए काम कर रही है और उनका भाजपा में शामिल होना अशुभ है।
रवीश अब अपने दर्शकों से लगभग ब्रेकअप को उतारू प्रेमिका की तरह ब्लॉक करने लगे हैं, वो कहने लगे हैं कि तुम्हारी ही सब गलती थी, तुमने मुझे TRP नहीं दी, तुमने मेरे एजेंडा को प्राथमिकता नहीं माना। जब मुझे तुम्हारी जरूरत थी, तब तुम देशभक्त हो गए।
एंकर स्टूडियो के भीतर इस तरह का चेहरा लेकर आने लगा कि उसे स्टूडियो के बाहर कुछ हिंदुओं ने थप्पड़ मार कर चेहरा सुजा दिया है। एंकर इस तरह से मरा हुआ मुँह लेकर बैठने लगा, और भद्दे ग्राफ़िक्स की मदद से आपको बताने लगा कि हत्या तो बस समुदाय विशेष की ही हो रही है, और कैसे डर फैलाया जा रहा है।