एक घमंड है इन पार्टियों के समर्थकों और मोदी के विरोधियों के भीतर। वो घमंड यह है कि वो जो सोचते हैं, वो जिन्हें चाहते हैं, उन्हें अगर बहुमत नहीं मिल रहा तो जनता पागल है। ये अभिजात्य मानसिकता, ये निम्न स्तर का दंभ, उसी तरीके से दिमाग में चढ़ता है जैसे सत्ता में होने पर पावर का नशा।
सोशल मीडिया से लेकर व्हाट्सएप्प पर चलने वाली फेक ख़बरों का बाजार जमकर बढ़ा है। इसी का फायदा उठाकर ये लोग फैक्ट चेक के नाम पर बेहद हास्यास्पद ख़बरों तक का फैक्ट चेक करते हुए देखे जा रहे हैं। यहाँ तक कि MEME और फोटोशॉप तस्वीरों तक का फैक्ट चेक करने वाले लोग खूब फलते-फूलते देखे जा रहे हैं।
कुछ दिनों पहले इरीना अकबर ने पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, गायकों, अभिनेताओं और क्रिकेटरों पर निशाना साधते हुए कहा था कि इन लोगों ने वर्षों अपने क्षेत्र में काम कर के जो इज्जत कमाई, उन्होंने पिछले पाँच वर्षों में एक 'हत्यारे' का समर्थन करते हुए ये इज्जत गँवा दी।
ऐसी पार्टी, जो सिर्फ़ 20 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है, उसे वाजपेयी ने 35 सीटें दे दी है। ऐसा कैसे संभव है? क्या डीएमके द्वारा जीती गई एक सीट को दो या डेढ़ गिना जाएगा? 20 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली पार्टी 35 सीटें कैसे जीत सकती है?
इससे भी ज्यादा बीबीसी ने प्रियंका की तारीफ़ों के पुल बांधे हैं। प्रियंका ने आज तक अपनी लोकप्रियता साबित नहीं की है, एक भी चुनाव नहीं जीता है, अपनी देखरेख में पार्टी को भी एक भी चुनाव नहीं जितवाया है, फिर भी बीबीसी उन्हें चमत्कारिक और लोकप्रिय बताता है।
नेशनल हेराल्ड ने मोदी की जीत को 'Pyrrhic Victory' कहा है। इसका अर्थ हुआ कि ऐसी जीत, जो हार के बराबर हो (सम्राट अशोक के कलिंग विजय की तुलना इससे कर सकते हैं, इसका अर्थ हुआ कि ऐसी जीत जिसमें विजेता को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा हो)। नेशनल हेराल्ड को उम्मीद है कि...
तैयार रहिए। एग्जिट पोल्स सही साबित हुए तो भाजपा की जीत के लिए तमाम ऐसे अजीबोगरीब कारण गिनाए जाएँगे, जिससे राहुल की इमेज पर आँच न आए और पीएम की लोकप्रियता की बात न हो। ठीकरा कहीं और फोड़ा जाएगा, ईवीएम को गालियाँ पड़ेंगी।
जो लोग रवीश की पिछले पाँच साल की पत्रकारिता टीवी और सोशल मीडिया पर देख रहे हैं, वो भी यह बात आसानी से मान लेंगे कि रवीश जी को पत्रकारिता के कॉलेजों को सिलेबस में केस स्टडी के तौर पर पढ़ाया जाना चाहिए।
अगले 5 साल गुफा में बिताने की चॉइस रखने वालों की अर्जी में एक नाम बेहद चौंकाने वाला था। यह नाम एक मशहूर व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के कुलपति का था। अपने विवरण में इस कुलपति ने स्पष्ट किया है कि पिछले 5 साल वो दर्शकों से TV ना देखने की अपील करते करते थक चुके हैं और अब अगले 5 साल भी वही काम दोबारा नहीं कर पाएँगे।
पद की भी कुछ मर्यादाएँ होती हैं और कुछ चीजें व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करती है, यही तो हिन्दू धर्म की विशेषता है। वरना, कल होकर यह भी पूछा जा सकता है कि जब तक मोदी ख़ुद को बेल्ट से पीटते हुए नहीं घूमेंगे, उनका आध्यात्मिक दौरा अधूरा रहेगा।