चूँकि भाषाई बाध्यता है कि इस नृशंस हत्या का जश्न मनाने वाले जिहादी मानसिकता के मुसलमानों को आप एक स्तर तक ही कुछ कह सकते हैं वरना इनकी परवरिश तो नाली के कीचड़ में मिली विष्ठा में लोटते उस जीव की तरह ही है जिसका नाम लेना मैं चाहता नहीं।
दिन में 5 बार लाउडस्पीकर से अजान देने वालों को मंदिर में 2 बार भजन बजाने से आपत्ति कैसे हो जाती है? ये किस तरह की सोच है कि तुम्हारे लाउडस्पीकर से आती आवाज़ इलाके का हर कान, चाहे या न चाहे सुनेगा ही, लेकिन दूसरे समुदाय ने भजन बजाया तो तुम मंदिर में घुस कर मूर्ति उखाड़ कर ले जाते हो!
एक तरफ बरखा दत्त को अश्लील तस्वीर भेजने वाला शब्बीर है, वहीं दूसरी ओर 'द वायर' की पत्रकार आरफ़ा खानम हैं जिन्होंने होली मुबारक कहते हुए 'बिस्मिल्ला' शब्द लिखा तो 'सच्चे' मजहबी भड़क उठे।