आज जब दिवगंत शीला दीक्षित के मत्थे हार का दोष मढने की कोशिश हो रही यह जानना जरूरी है कि इस बार दिल्ली की सत्ता में वापसी के लिए सोनिया गॉंधी ने हर उस शख्स को गले लगाया था जिससे पूर्व मुख्यमंत्री के मतभेद थे, जो उनसे कभी बदला लेना चाहते थे।
इसी मामले को लेकर पार्टी के कुछ नेताओं ने आनन-फानन में प्रेस कांफ्रेंस कर पीसी चाको के इस्तीफे की भी माँग की है, मगर इस पूरे मामले की जड़ यानी जिस चिट्ठी के चलते पूरा विवाद शुरू हुआ है उसमें ऐसा क्या लिखा है इस मुद्दे पर दोनों में से किसी ने भी अभी तक खुलकर कोई बात नहीं कही है।
81 वर्षीय शीला दीक्षित लंबे समय से बीमार चल रही थी। कॉन्ग्रेस की दिग्गज नेता दीक्षित दिल्ली में सबसे लम्बे समय तक काम करने वाली मुख्यमंत्री रही थीं। उन्होंने 1998 से 2013 तक दिल्ली में मुख्यमंत्री पद सम्भाला था।
पीसी चाको ने शीला दीक्षित को पत्र लिखकर कहा कि पार्टी संगठन का फैसला वो अकेले नहीं कर सकती हैं। इसलिए शुक्रवार (जुलाई 12, 2019) को जो उन्होंने ब्लॉक पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी, उसे महासचिव प्रभारी के तौर पर वे (पीसी चाको) अयोग्य करार देते हैं।
वायरल हो रही इस पोस्ट में दावा किया गया है कि केजरीवाल वोट हासिल करने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते हैं। इसमें यह सन्देश दिया जा रहा है कि शीला दीक्षित ने केजरीवाल के बारे में ये कहा है कि ‘केजरीवाल वोट के लिए अपनी माँ तक को बेच सकते हैं’।
दिल्ली में महिला सुरक्षा की स्थिति पर उनकी राय के प्रश्न पर उन्होंने कहा कि जहाँ तक पुलिस के दखल की बात है, उसमें पूरा रोल केंद्र सरकार का रहता है क्योंकि दिल्ली सरकार एक पुलिसकर्मी की ड्यूटी तक नहीं लगा सकती है।
कॉन्ग्रेस ने भीष्म शर्मा को नज़रअंदाज़ करते हुए शीला दीक्षित को उतार दिया। शीला और भीष्म में पुरानी प्रतिद्वंद्विता है और इसीलिए शीला ने प्रदेश अध्यक्ष का कार्यभार संभालते ही सबसे पहले भीष्म शर्मा पर गाज गिराई। उन्हें 6 वर्षों के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
इस पूरे प्रकरण में एक ओर शीला दीक्षित तो दूसरी ओर राहुल गाँधी, पीसी चाको, अजय माकन और आम आदमी पार्टी दिख रही है।
शीला दीक्षित का कहना है कि उन्हें सर्वे के दौरान जानकारी नहीं दी गई।