भारतीय लिबरलों का आचरण इस बात को बल देता है कि आज इस्लामिक आतंकवाद के साथ वैचारिक कन्धा मिलाकर खड़ा होने में जिन्हें शर्म नहीं, वे भविष्य में सामरिक कंधा देने के लिए खड़े हो जाएँ तो आश्चर्य न होगा।
जब राष्ट्रपति भाग चुके हैं, फौज घुटने टेक चुकी है, अफगान नागरिक किसी भी तरह मुल्क से निकलना चाहते हैं, सालेह ने तालिबान के आगे झुकने से इनकार कर दिया है। पर क्या वे खुद को 'पंजशीर का नया शेर' साबित कर सकेंगे?
अफगानिस्तान में तालिबान ने बुर्का नहीं पहनने पर महिला को गोली मार दी। काबुल एयरपोर्ट से लोगों को खदेड़ने के लिए धारदार हथियारों, गोली का इस्तेमाल कर रहा है।
ये सभी ट्विटर के ब्लू टिक धारी एक्टिविस्ट हैं, जो रहते तो भारत में हैं लेकिन गुणगान तालिबान का करते हैं। तालिबान के प्रेस कॉन्फ्रेंस की PR मंडली से मिलिए।