अयोध्या में निर्माणाधीन रामजन्मभूमि के गर्भगृह में 22 जनवरी, 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में रामलला की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस अवसर पर पूरे देश में दीपावली जैसा माहौल होगा। ऑपइंडिया की टीम दिसंबर 2023 के अंतिम हफ्ते से अयोध्या में है। अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में हम लोगों को न सिर्फ गुमनाम बलिदानी बल्कि विस्मृत किए गए उन स्थलों के बारे में भी बताने का प्रयास कर रहे हैं जो भगवान राम से कहीं न कहीं संबंधित हैं। इन्हीं में से एक स्थान है राजा दशरथ समाधि स्थल।
यहीं पर वनवास गए राम के वियोग में प्राण त्यागने के बाद उनके पिता दशरथ का अंतिम संस्कार हुआ था। शनिवार (30 दिसंबर, 2023) को ऑपइंडिया की टीम ने दशरथ समाधि और उसके आसपास के क्षेत्रों का दौरा किया।
राजा दशरथ अंत्येष्टि स्थल अयोध्या-आज़मगढ़ रोड पर पूरा बाजार क्षेत्र में स्थित है। अयोध्या से इस जगह की लगभग दूरी 12 किलोमीटर है। पुराणों में इस जगह का नाम बिल्वहरि घाट बताया गया है। मुख्य हाइवे से लगभग डेढ़ किलोमीटर अंदर उत्तर दिशा की तरफ बना यह स्थान एक घनी मिश्रित आबादी से गुजरता है। इसी मंदिर के बाद माझा क्षेत्र शुरू हो जाता है। माझा क्षेत्र वह इलाका कहा जाता है जो नदी के बढ़ने पर उसके दायरे में आ जाता है और यहाँ की जमीन रेतीली होती है। मंदिर से सटा हुआ सरयू नदी का विस्तार क्षेत्र है।
जहाँ रखा गया दशरथ का पार्थिव शरीर वहाँ बना है स्मारक
ऑपइंडिया ने पाया कि भगवा रंग में रंगी इस जगह की बाउंड्री की गई है। अंदर एक मंदिर है जिसमें बाकायदा विधि-विधान से पूजा-पाठ होता है। ऊँचाई पर चढ़ कर एक चबूतरानुमा स्मारक बना है। मंदिर के पुजारी व उत्तराधिकारी संदीप दास ने बताया कि जहाँ स्मारक है वहीं राजा दशरथ का पार्थिव शव रखा गया था और उनको मुखाग्नि दी गई थी। संदीप दास ने ऑपइंडिया को यह भी बताया कि तब सरयू नदी की मुख्य धारा मंदिर के ठीक बगल से गुजरती थी। हालाँकि, समय के साथ वह थोड़ी उत्तर दिशा में चली गई। अभी भी बरसात के मौसम में सरयू नदी मंदिर के बगल आ कर बहती है।
स्मारक के आसपास कई प्राचीन कालीन अस्त्र-शस्त्र रखे हुए हैं। संदीप दास का दावा है कि उन शस्त्रों पर सदियों से जंग नहीं लगा है। स्मारक के ऊपर प्रतीकत्मक तौर पर राम, लक्ष्मण, भारत द्वारा किया गया पिंडदान रखा हुआ है। इसी पर एक शिवलिंग भी बना हुआ है। बकौल पुजारी, राम ही नहीं उनके पूर्वज भी महादेव के भक्त रहे थे। संदीप दास के मुताबिक, अंतिम संस्कार के दौरान राजा दशरथ के पार्थिव शरीर में सिर का हिस्सा उत्तर नदी की तरफ और पैर दक्षिण की तरफ था। पैर की दिशा में स्मारक पर राजा दशरथ के चारों बेटों की चरण पादुकाएँ प्रतीकत्मक तौर पर बनी हुईं हैं।
यहाँ पहले किसी का नहीं हुआ था दाह संस्कार
राजा दशरथ का अंतिम संस्कार वहीं क्यों हुआ ? यह सवाल जब हमने पुजारी संदीप दास से पूछा तो उन्होंने इसकी कथा बताई। उन्होंने बताया कि पिता के देहांत के दौरान राम और लक्ष्मण माँ सीता वनवास काट रहे थे जबकि भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल में थे। पिता के देहांत की खबर सुन कर भरत और शत्रुघ्न अयोध्या आए। तब राजा के रूप में काम कर रहे भरत ने अपने मंत्रिमंडल की सभा बुलाई। उन्होंने अपने पिता के दाह संस्कार के लिए ऐसी जगह तलाशने के लिए कहा जहाँ उस से पहले इतिहास में किसी और का अंतिम संस्कार न हुआ हो।
पुजारी संदीप दास के मुताबिक राजा भरत और उनके मंत्रिमंडल को ऐसी जगह तलाशने में काफी समय लगा। इस दौरान राजा दशरथ के पार्थिव शरीर को सुरक्षित रखा गया। आखिरकार लम्बी खोजबीन के बाद बिल्वहरि घाट पर वो जगह मिल ही गई जहाँ पहले इतिहास में किसी का भी अंतिम संस्कार नहीं हुआ था। आज जहाँ दशरथ समाधि है वह वही जगह है जहाँ इतिहास और वर्तमान मिला कर सिर्फ राजा दशरथ की ही अंत्येष्टि हुई है। संदीप दास का यह भी दावा है कि वनवास काट कर लंका विजय के बाद भगवान राम भी अपने पिता के अंत्येष्टि स्थल पर गए थे और उन्होंने वहाँ वैदिक विधि-विधान से आवश्यक क्रिया-कलाप किए थे।
मंदिर में मौजूद है भगवान राम की वंशावली
ऑपइंडिया की टीम ने जब मंदिर का भ्रमण किया तो पाया कि परिसर में शनिदेव का एक अन्य मंदिर भी मौजूद है। मंदिर की दीवालों पर रामचरितमानस और रामायण के साथ विभिन्न देवी-देवताओं के चालीसा की पट्टिकाएँ मौजूद हैं। इन्ही पट्टिकाओं में भगवान राम की वंशावली भी दिखी। यह वंशावली भगवान ब्रह्मा से शुरू हुई है और राम पर खत्म हुई है। भगवान राम की वंशावली में उनके पहले क्रमशः दशरथ, अज, रघु, दीर्घवाहु, खष्ट्रवाड, विश्वास, विश्वसह, लिविल, दशरथ, मूलक, अश्मक, सौदास, सुदास, सर्वकाम, ऋतुपर्ण, अयुतायु, सिधुदीप, अम्बरीश, नाभाग, श्रुति, सुहोत्र, भगीरथ, दिलीप, अंशुमान, असमंजस, सगर, बाहु, वृक, रुरुक, विजय, चच्चू, हरीता, रोहिताश्व, हरिश्चंद्र, सत्यव्रत, त्र्यारुणि, त्रिधन्वा, सुमन, हरतस्य, हयश्व, पृषदश्व, अनरष्य, त्रसददस्यु, पुरुकुत्स्य, अमित, निकुम्भ, हर्यश्व, दद्धाश्व, कुवलयाश्व, वृहदश्व, शाश्वत, युवनाश्व, चांद्र, विष्टराश्व, पृथु, अनेनाः, कुकुत्स्थ, पुरंजय, विकुक्षि, ईक्षयाकु, वैवस्वत, विवस्वान, कश्यप मरीचि और भगवान ब्रह्मा के नाम हैं।
इस पट्टिका के मुताबिक सूर्यवंश का आरम्भ शुरू से क्रम नंबर (पीढ़ी संख्या) 5 पर मौजूद राजा वैवस्वत के समय में हुआ। वहीं इसी सूची के मुताबिक रघुकुल की शुरुआत क्रम संख्या (पीढ़ी नंबर) 60 पर मौजूद राजा रघु के काल से हुई। राजा रघु को सूर्यवंश का सबसे प्रतापी राजा माना गया है। उनके ही नाम का जिक्र कई बार ग्रंथों में भी आया है। इसी नाम के आधार पर ‘रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई’ चौपाई बनाई गई है।
जो काम योगी सरकार ने किया वो पहले कभी नहीं हुआ
मंदिर के पुजारी संदीप दास ने हमें बताया कि उनकी कई पीढ़ियाँ राजा दशरथ की अंत्येष्टि स्थल की रखरखाव और पूजा-पाठ करती आ रहीं है। स्थान को पवित्र और पौराणिक बताते हुए उन्होंने पिछली सरकारों द्वारा इसकी उपेक्षा का आरोप लगाया। संदीप दास का कहना है कि दशरथ समाधि के लिए जो काम मोदी और योगी सरकार ने कर दिया वो पहले करना तो दूर किसी ने सोचा भी नहीं था। पहले मंदिर में न सिर्फ पर्याप्त उजाले और पानी की दिक्कत थी बल्कि आने और जाने के लिए सड़क बेहद जर्जर हालत में थी।
अब मंदिर परिसर में एक छोटी सी धर्मशाला आदि बनवाई गई है। यह जगह मांगलिक आयोजनों के साथ धार्मिक सभा और कोई विकल्प न होने पर यात्रियों के ठहरने में काम आ रही है। फिलहाल दशरथ समाधि के बगल से गुजर रही सड़क जल्द ही चौड़ी की जाएगी। संदीप का कहना है कि वर्तमान सरकार मंदिर का जीर्णोद्धार करवाएगी और इसे भव्यता देगी। संदीप दास ने भावुक हो कर मंदिर परिसर से मोदी और योगी को आशीर्वाद भी दिया।
बताते चलें कि ऑपइंडिया की टीम दिसंबर 2023 के अंतिम सप्ताह से अयोध्या में है। यहाँ से हम आपको न सिर्फ रामजन्मभूमि आंदोलन के गुमनाम बलिदानी, विस्मृत घटनाएँ बल्कि अयोध्या के कई अनसुने लेकिन पवित्र स्थानों के बारे में विस्तार से बताएँगे। पिछली 2 रिपोर्ट में हमने पाठकों को रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के गुमनाम बलिदानियों के परिवार से परिचित करवाया है। इस कड़ी की अगली खबर जल्द ही प्रकाशित होगी।