Friday, October 18, 2024
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‘झूठ फैला रहा जमीयत, कठमुल्लों के बहकावे में न आएँ’: बाल आयोग के अध्यक्ष ने याद दिलाई मदरसे में हिन्दू बच्चे के खतना की घटना, कहा – स्कूलों में भर्ती किए जाएँ छात्र

सरकार की कोशिश है कि मुस्लिम बच्चों को धार्मिक शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी दी जाए, ताकि उनका समग्र विकास हो सके। लेकिन जमीयत जैसे संगठन मुस्लिम बच्चों की अलग पहचान और उनमें मजहबी कट्टरता भरने की कोशिश में लगे रहते हैं।

मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी जरूरी है। मदरसों में सिर्फ मुस्लिम बच्चों को ही नहीं, बल्कि हिंदू व अन्य गैर मुस्लिम बच्चों को भी शिक्षा मिलनी चाहिए, इसके लिए जरूरी है कि मदरसों को शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे में लाया जाए। ऐसा कहना है राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) का, जिसने यूपी सरकार के उस आदेश का समर्थन किया है, जिसमें राज्य के सभी मदरसों को शिक्षा के अधिकार कानून के दायरे में लाए जाने की बात कही है। हालाँकि यूपी सरकार के इस आदेश का जमीयत उलमा-ए-हिंद विरोध कर रहा है, जिस पर अब राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पलटवार किया है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने कहा कि उन्होंने मदरसों को अपग्रेड करने की बात कही है, जहाँ मजहबी शिक्षा के साथ आधुनिक पढ़ाई भी होनी चाहिए, साथ ही अन्य धर्मों के बच्चों को भी शिक्षा मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मुस्लिम बच्चों को भी स्कूलों में दाखिल कराया जाना चाहिए। NCPCR के अध्यक्ष ने दारुल उलूम देवबंद के साथ ही जमीयत उलमा-ए-हिंद को भी निशाने पर लिया है, जिसने सरकारी स्कूलों में बच्चों को गैर-मजहबी प्रार्थनाओं में शामिल होने के खिलाफ उन्हें भड़काने की कोशिश की है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने एक्स पर लिखा, “मदरसा, इस्लामिक मज़हबी शिक्षा सिखाने का केंद्र होता है और शिक्षा अधिकार क़ानून के दायरे के बाहर होता है। ऐसे में मदरसों में हिंदू व अन्य ग़ैर मुस्लिम बच्चों को रखना न केवल उनके संवैधानिक मूल अधिकार का हनन है बल्कि समाज में धार्मिक वैमनस्य फैलने का कारण भी बन सकता है। इसलिए NCPCR ने देश की सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया था कि संविधान के अनुरूप मदरसों के हिंदू बच्चों को बुनियादी शिक्षा का अधिकार मिले इसलिए उन्हें स्कूल में भर्ती करें और मुस्लिम बच्चों को भी धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ शिक्षा का अधिकार देने के लिए प्रबंध करें। तत्संबंध में उत्तरप्रदेश की राज्य सरकार के मुख्यसचिव महोदय ने आयोग की अनुशंसा के अनुरूप आदेश जारी किया था।”

प्रियंक कानूनगो ने आगे लिखा, “समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला है कि जमीयत ए उलेमा ए हिन्द नामक इस्लामिक संगठन इस आदेश बारे में झूठी अफ़वाह फैला कर लोगों को गुमराह कर सरकार की ख़िलाफ़त में जन सामान्य की भावनाएँ भड़काने का काम कर रहा है, ये मौलवियों का एक संगठन है जो कि मदरसा दारुल उलूम देवबंद की एक शाखा ही है जो कि जिसके द्वारा गजवा ए हिन्द का समर्थन करने पर आयोग ने कार्रवाई की है। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष उत्तरप्रदेश के देवबंद से सटे हुए एक गाँव में चल रहे एक मदरसे में एक गुमशुदा हिंदू बच्चे की पहचान बदलने और ख़तना कर धर्मांतरण करने की घटना से सांप्रदायिक सामंजस्य बिगड़ा था। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए भी ये कार्रवाई ज़रूरी है।”

उन्होंने आगे लिखा, “उत्तरप्रदेश में धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम भी लागू है, किसी को भी बच्चों की धार्मिक स्वतंत्रता उल्लंघन नहीं करना चाहिए। मेरी जनसामान्य से यह हाथ जोड़कर विनती है कि ये मामला बच्चों के अधिकार का है किसी भी कट्टरपंथी कठमुल्ले के बहकावे में न आयें और बच्चों के एक बेहतर भविष्य का निर्माण करने में सहभागी बनें। अफ़वाह फैलाने वालों पर कार्रवाई हेतु सरकार से पृथक निवेदन किया जा रहा है।”

बता दें कि मदरसों से जुड़े अवैध धर्म परिवर्तन के भी मामले सामने आते रहे हैं। वहीं, मदरसों के माध्यम से मुस्लिम बच्चों को सिर्फ धार्मिक शिक्षा दी जाती है। ऐसे में सरकार की कोशिश है कि मुस्लिम बच्चों को धार्मिक शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी दी जाए, ताकि उनका समग्र विकास हो सके। लेकिन जमीयत जैसे संगठन मुस्लिम बच्चों की अलग पहचान और उनमें मजहबी कट्टरता भरने की कोशिश में लगे रहते हैं। हालाँकि यूपी सरकार ने साफ कर दिया है कि राज्य के 4 हजार से ज्यादा मदरसों को शिक्षा के अधिकार के तहत एक-समान शिक्षण नीति लागू करनी पड़ेगी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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