Sunday, December 22, 2024
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120 से ज्यादा स्मारक और धरोहर देश की, लेकिन कब्जे का दावा वक्फ बोर्ड का: संसदीय समिति के सामने ASI ने खोला चिट्ठा

मुस्लिम संगठनों ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने, कलेक्टर को ज्यादा अधिकार देने, वक्फ बाई यूजर को हटाने, वक्फ को संपत्ति दान करने के लिए 5 साल का प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की अनिवार्य शर्त जैसे कई प्रावधानों को पूरी तरह से गलत बताया। इसके बाद भाजपा सांसद ने कहा कि मुस्लिमों की धार्मिक पुस्तक कुरान में वक्फ का कहीं जिक्र नहीं है। इसलिए वक्फ बोर्ड गैर-इस्लामिक संस्था है।

सरकारी जमीनों और यहाँ तक कि हिंदुओं के गाँवों तक को मुस्लिमों की संपत्ति घोषित करने वाले वक्फ बोर्ड पर शिकंजा कसने के लिए केंद्र मोदी सरकार एक बिल लाई थी। इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेजा गया है। अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने JPC को ऐसे 120 स्मारकों से अधिक दावा किया है, जो उसके अधीन है लेकिन वक्फ बोर्ड उस पर दावा करता है।

वक्फ (संशोधन) विधेयक की जाँच कर रही संयुक्त संसदीय समिति को ASI ने शुक्रवार (6 सितंबर 2024) के सामने बताया कि ये सभी स्मारक उसके संरक्षण में हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों के वक्फ बोर्ड इन स्मारकों पर अपना दावा करते हैं। इनमें कुछ स्मारकों को ASI द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित करने के लगभग एक सदी बाद वक्फ की संपत्ति घोषित किया गया है।

इस सूची में महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित निजाम शाही को स्थापित करने वाले अहमद शाह की कब्र को शामिल किया गया है। इसे एएसआई ने 1909 में संरक्षित स्मारक घोषित किया था। वहीं, साल 2006 में इसे वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया गया। वक्फ बोर्ड के इसी असीमित अधिकार को खत्म करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली NDA सरकार संशोधन बिल लेकर आई है।

सूत्रों के मुताबिक, एएसआई के अधिकारियों ने बैठक में बताया कि वक्फ बोर्ड के साथ देश भर में 132 संपत्तियों को लेकर उनका विवाद है। दरअसल, यह सब कुछ वक्फ (संशोधन) कानून पर विचार करने के लिए बनाई गई जेपीसी की चौथी बैठक के दौरान शुक्रवार को हुई। ASI संस्कृति मंत्रालय के अधीन आता है। इसकी ओर से सचिव ने प्रतिनिधित्व किया। 

वहीं, इस बिल पर मुस्लिमों का पक्ष रखने के लिए जकात फाउंडेशन ऑफ इंडिया और इंटरफेथ कोलिशन फॉर पीस का प्रतिनिधित्व सैयद जफर महमूद ने किया। दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल एवं एएमयू के पूर्व कुलपति जमीरुद्दीन शाह तथा पैकियम सैमुअल भी संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष पेश हुए। तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड भी समिति के सामने पेश हुआ।

बैठक के दौरान भाजपा एवं ASI के साथ विपक्षी सदस्यों की जबरदस्त नोंक-झोंक हुई। इसमें ASI ने कहा कि वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर अपना दावा कर सकता है। इसको लेकर विपक्षी सदस्यों ने ASI की आलोचना की। विपक्षी सदस्यों ने संस्कृति मंत्रालय पर समिति के सदस्यों को गुमराह करने और गलत सूचना फैलाने का आरोप लगाया।

सूत्रों ने कहा कि मुस्लिम निकायों ने इस विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह मुस्लिम समुदाय के हितों के खिलाफ है। ASI ने कहा कि विभिन्न वक्फ निकायों ने उसके स्मारकों पर अतिक्रमण किया है और मदरसा-शौचालय जैसे निर्माण किए हैं। इसका कुछ विपक्षी सदस्यों ने विरोध किया कि और कहा कि ये सुविधाएँ मुस्लिमों के इबादत स्थलों में मौजूद होनी चाहिए।

मुस्लिम संगठनों ने वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने, कलेक्टर को ज्यादा अधिकार देने, वक्फ बाई यूजर को हटाने, वक्फ को संपत्ति दान करने के लिए 5 साल का प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की अनिवार्य शर्त जैसे कई प्रावधानों को पूरी तरह से गलत बताया। इसके बाद भाजपा सांसद ने कहा कि मुस्लिमों की धार्मिक पुस्तक कुरान में वक्फ का कहीं जिक्र नहीं है। इसलिए वक्फ बोर्ड गैर-इस्लामिक संस्था है।

भाजपा सांसद के बयान के बैठक में जबरदस्त हंगामा हुआ। भाजपा सांसद और असदुद्दीन ओवैसी के बीच इस पर तीखी नोक-झोंक भी हुई। वहीं, संस्कृति मंत्रालय ने इस दौरान समिति को 53 स्मारकों की प्रस्तुति दी। उसने कहा कि उसकी प्रस्तुति अभी पूरी नहीं हैं, क्योंकि देश भर से कई स्थानों से रिपोर्ट आनी बाक़ी है। इसलिए उसे आगे भी मौक़ा दिया जाए।

भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता में संसद की संयुक्त समिति की बैठक में भाग लेने वाले सांसदों में भाजपा के निशिकांत दुबे, बृजलाल, तेजस्वी सूर्या और संजय जायसवाल शामिल थे। वहीं, कॉन्ग्रेस के गौरव गोगोई, मोहम्मद जावेद, सैयद नसीर हुसैन, इमरान मसूद, तृणमूल कॉन्ग्रेस के कल्याण बनर्जी, AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह मौजूद थे।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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