Friday, September 20, 2024
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गुलाम भारत में अंग्रेज नहीं खिला पाए चर्बी, स्वतंत्र भारत में तिरुपति के बीफ वाले लड्डू खिला दिए: क्या दक्षिण से उठेगी सनातन रक्षा की लहर, क्या हिंदुओं की टूटेगी निद्रा

बड़ी चालाकी से इस मामले को हिंदुओं के खान-पान से जोड़कर हल्का दिखाने का प्रयास हो रहा है जबकि विवाद खान-पान का नहीं आस्था और विश्वास का है।

तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद की शुद्धता से छेड़छाड़ का मामला कोई साधारण मामला नहीं है। सामने आई रिपोर्ट बताती है कि जो प्रसाद भगवान वेंकटेश्वर को चढ़ता था उसमें पिछले कुछ समय से जानवर की चर्बी वाला घी इस्तेमाल होता था। मामला गरमाया तो घी की जाँच रिपोर्ट सामने आई और ये पता चला कि घी में मछली का तेल, गोमांस और सूअर की चर्बी सब डली हुई थी।

समूचा देश इस रिपोर्ट को देख सन्न रह गया। किसी को उम्मीद नहीं थी कि इतने बड़ा आस्था का केंद्र तिरुपति मंदिर साजिश का शिकार होगा। सवाल उठने शुरू हुए, लोगों ने विरोध करना शुरू किया। लेकिन इन सबके बीच एक गैंग और एक्टिव हुई- लिबरल, वामपंथियों और इस्लामी कट्टरपंथियों की।

कुछ ने तो खुलेआम खुशी जताई कि आखिरकार हिंदुओं ने बीफ का सेवन कर ही लिया, लेकिन वहीं दूसरी कुछ लोग तर्क देते दिखे कि जो हो गया वो हो गया अब मामले पर आगे नहीं बोला जाना चाहिए क्योंकि ये कोई बड़ी बात नहीं है। उनके मुताबिक कई मंदिरों में घटिया क्वालिटी के घी का प्रयोग होता है और तमाम हिंदू मांसाहारी भी हैं तो इसलिए इस खुलासे से इतना फर्क नहीं पड़ना चाहिए।

बड़ी चालाकी से इस मामले को हिंदुओं के खान-पान से जोड़कर हल्का दिखाने का प्रयास हो रहा है जबकि विवाद खान-पान का नहीं आस्था और विश्वास का है।

भारत में विभिन्न वर्ग के लोग रहते हैं। सबका अपना खान-पान है। कोई शाकाहारी है कोई मांसाहारी। हिंदू भी ऐसे ही हैं। इनमें कुछ लोग हैं जो प्याज लहसुन को भी हाथ नहीं लगाते, लेकिन वही कुछ हैं जो नॉनवेज चाव से खाते हैं। अब खान-पान के हिसाब से इनकी तुलना की जाए तो इन्हें दो वर्गों में रखा जा सकता है, लेकिन आस्था की बात आते ही ये एक होते हैं।

हिंदू धर्म में गोमांस वर्जित है और सनातन मानने वाले इससे पूरा परहेज करते हैं…। फिर आखिर किस तरीके से ये कहा जा सकता है कि जो मांसाहारी हैं वो इस मुद्दे का बवाल न बनाएँ। खान-पान निजी मामला हो सकता है लेकिन उन्हें धोखे में रखकर ऐसी चीजें उन्हें खिलाना कहाँ तक उचित होता है?

घर में भगवान की पूजा करते समय प्रयास किए जाते हैं कि भगवान को लगने वाला प्रसाद शुद्ध तरीके से निर्मित हो, फिर इतने बड़े मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद के साथ ऐसा खिलवाड़ बर्दाश्त योग्य कैसे योग्य हो सकता है।

इतनी बड़ी घटना के बाद भी हिंदू शांत हैं। उनके लिए शायद विरोध का अर्थ केवल सोशल मीडिया पोस्ट करना है। यदि ज्यादा गंभीर मामला है तो धड़ाधड़ पोस्ट करते हैं और अगर छोटा-मोटा मामला है तो एक दो ट्वीट के बाद भूल जाते हैं। लेकिन क्यायही मखौल अगर किसी अन्य मजहब का उड़ता तो क्या आपको लगता है वो इस प्रकार नाराजगी व्यक्त करते…।

ब्रिटिश भी नहीं खिला पाए थे गोमांस

एक समय ऐसा भी था जब गोमांस के सहारे ब्रिटिशों ने भी हिंदुओं की आस्था भंग करनी चाही थी। हालाँकि उस समय गुलाम देश में होते हुए हिंदुओं का विरोध जमीनी था। नतीजा ये हुआ कि भारतीय हिंदुओं ने ब्रिटिशों के दिए गेहूँ, आटे, रोटी किसी चीज को हाथ लगाना बंद कर दिया। घी में जानवरों की चर्बी की बात आई, दवाओं में गाय और सूअर के मांस के मिलावट की…। हिंदुओं ने सब छोड़ दिया।

कथिततौर पर ये सारी अफवाहें थीं, लेकिन उस समय में भी हिंदुओं ने इनका बहिष्कार करने से परहेज नहीं किया था और आखिर में जब ब्रिटिशों ने गोमांस वाली कारतूस उनके हाथ में थमानी चाही थी तो हिंदू उनके विरुद्ध इतनी मजबूती से खड़े हुए थे कि आज हिंदुओं के उसी विरोध को 1857 का विद्रोह भी कहा जाता है। सोचकर देखिए, जिन हिंदुओं ने एक भनक लगने पर अपने धर्म के लिए अपनी मूलभूत जरूरतों को त्याग दिया उनके लिए धर्म के साथ होने खिलवाड़ कितनी बड़ी बात होगी।

क्या दक्षिण से उठेगी फिर हिंदुत्व की लहर

इस घटना के बाद आज भले ही देश के अन्य हिस्सों में हिंदुओं का आक्रोश न नजर आ रहा हो, लेकिन दक्षिण में सनातन धर्म रक्षा बोर्ड को लागू करने की माँग अब जोरों पर हैं। खुद डिप्टी सीएम पवन कल्याण ने इस बोर्ड की माँग करते हुए हिंदुओं को एकजुट होने की अपील की है जिसके बाद उम्मीद की जा रही है कि शायद तिरुपति की इस घटना के बाद हिंदू के जागृत होने की लहर दक्षिण से ही उठेगी ठीक वैसे जैसे 1200साल पहले हुआ था।

8वीं सदी में जब भारत भूमि पर सनातन पर खतरा धर्म क्षीण होने लगा था, हिंदू पथ से भ्रमित होने लगे थे तब धर्म की पुनर्स्थापना के लिए आदि शंकराचार्य अपनी यात्रा पर निकले। उन्होंने रणनीति बनाई और विभिन्न धर्म केंद्रों की यात्रा के दौरान उपस्थित धर्म गुरुओं को तर्क और शास्त्रार्थ की चुनौती देते रहे। यह आदि शंकराचार्य का चमत्कार ही था कि पूरे भारतवर्ष में उन्हें कोई भी नहीं हरा पाया। धीरे-धीरे धर्म छोड़कर गए धर्म गुरू वापस सनातन में लौटने लगे। उनके द्वारा स्थापित किए गए चार मठ (वर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), श्रंगेरी पीठ (रामेश्वरम्), शारदा मठ (द्वारिका) और ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ धाम)) ही हैं जिन्हें आज चार धाम के नाम से जाना जाता है।

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