Monday, October 7, 2024
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अब फैक्टचेक नहीं कर सकती केंद्र सरकार: जानिए क्या है IT संशोधन नियम 2023 जिसे बॉम्बे हाई कोर्ट ने बताया ‘असंवैधानिक’, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ

केंद्र सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि फैक्ट चेकिंग यूनिट आलोचना या व्यंग्य को रोकने का प्रयास नहीं करते हैं, बल्कि केवल सरकार से संबंधित सामग्री पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जोर देकर कहा कि विवादित नियम केवल आधिकारिक सरकारी फाइलों में पाई जाने वाली जानकारी पर लागू होता है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार (20 सितंबर 2024) को सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम 2023 के नियम 3 को रद्द कर दिया। यह धारा केंद्र सरकार को सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सरकार के खिलाफ झूठी या फर्जी खबरों की पहचान करने के लिए तथ्य-जाँच इकाइयों (Fact Check Unit) के गठन का अधिकार देता है।

इस साल जनवरी में एक खंडपीठ द्वारा विभाजित फैसला देने के बाद यह मामला उनके पास भेजे जाने के बाद टाईब्रेकर न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर ने आज अपनी राय दी है। एकल पीठ न्यायाधीश ने यह फैसला पढ़ते हुए कहा, “मेरा मानना ​​है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करता है।”

आईटी संशोधन नियम 2023 के तहत सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021, जिसे आईटी नियम 2021 भी कहा जाता है, में संशोधन किया गया था। इस नियम के खिलाफ कोर्ट में कई याचिकाएँ दायर की गई थीं। इनमें एक याचिका स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा द्वारा दायर याचिका भी शामिल है।

इस नियम के तहत सरकार को फैक्ट चेक यूनिट बनाने के अधिकार को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह संशोधन सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसके साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(ए)(जी) (कोई भी पेशा या व्यवसाय करने की स्वतंत्रता) का भी उल्लंघन करता है।

इस मामले में 31 जनवरी 2024 को न्यायमूर्ति जीएस पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले ने इस मामले पर विभाजित फैसला सुनाया था। न्यायमूर्ति पटेल ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया और नियम 3 को खारिज कर दिया। इसमें यूजर की सामग्री की सेंसरशिप की आशंका और सामग्री की सटीकता की जिम्मेदारी रचनाकारों से बिचौलियों पर स्थानांतरित होने की चिंताओं का हवाला दिया गया था।

जस्टिस पटेल ने अनुच्छेद 14 से संबंधित मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अन्य संस्थाओं की तुलना में केंद्र सरकार से संबंधित सूचना को ‘उच्च मूल्य’ का पहचान प्रदान करने का कोई औचित्य नहीं है। इसके विपरीत, जस्टिस गोखले ने संशोधित नियमों की वैधता को बरकरार रखा था और कहा था कि इसमें दुर्भावनापूर्ण इरादे से गलत सूचना को लक्षित करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा किया गया है।

जस्टिस गोखले ने यह भी कहा कि किसी नियम को केवल संभावित दुरुपयोग की चिंताओं के आधार पर उसे अमान्य नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, उन्होंने इसकी भी पुष्टि की कि यदि X, फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे कोई मध्यस्थ की कार्रवाई उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है तो याचिकाकर्ता और यूजर अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं।

इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने मामले पर टाई-ब्रेकिंग राय देने के लिए न्यायमूर्ति चंदुरकर को नियुक्त किया। इसके बाद एकल पीठ न्यायाधीश चंदुरकर ने यह फैसला पढ़ते हुए कहा, “मेरा मानना ​​है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करता है।” इस तरह दो न्यायाधीशों ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला सुनाया।

याचिकाकर्ताओं का वरिष्ठ अधिवक्ता नवरोज सीरवाई और अरविंद दातार ने प्रतिनिधित्व किया। इन अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि फैक्ट चेकिंग यूनिट का उद्देश्य उन चर्चाओं पर पूर्ण सेंसरशिप लगाना है, जिन्हें सरकार दबाना चाहती है। उन्होंने नागरिकों को सूचित रखने के अपने घोषित उद्देश्य को पूरा करने के लिए फैक्ट चेंकिंग यूनिट के लिए प्रावधानों की कमी की ओर भी इशारा किया।

दूसरी तरफ, केंद्र सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि फैक्ट चेकिंग यूनिट आलोचना या व्यंग्य को रोकने का प्रयास नहीं करते हैं, बल्कि केवल सरकार से संबंधित सामग्री पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जोर देकर कहा कि विवादित नियम केवल आधिकारिक सरकारी फाइलों में पाई जाने वाली जानकारी पर लागू होता है।

नियम 3 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले दावों के जवाब में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसी भी तरह का नकारात्मक प्रभाव केवल फर्जी और झूठी खबरों से संबंधित होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि सभी को भ्रामक जानकारी प्रसारित करने के बारे में सतर्क रहना चाहिए।

इस पर याचिकाकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि सटीक जानकारी का अधिकार नागरिकों का है, राज्य का नहीं। इसकी साथ ही उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि सरकार पहले से ही यह घोषित कर सकती है कि क्या सच है या झूठ। उन्होंने मध्यस्थों को सुरक्षा से वंचित करने की सरकार की क्षमता पर भी सवाल उठाया। नियम 3 ऑनलाइन और प्रिंट से संबंधित कंटेंट को लेकर है।

दरअसल, केंद्र सरकार ने 6 अप्रैल 2023 को सोशल मीडिया या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर सरकार से संबंधित झूठे या भ्रामक सामग्री की जाँच के लिए फैक्ट चेक यूनिट बनाने का फैसला लिया था। इसके तहत एक्स, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्‍लेटफॉर्म को अपने प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की पहचान करने के बाद या तो सामग्री को हटाना था या एक अस्वीकरण जोड़ना था। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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