Friday, November 15, 2024
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बीवी 18 साल से कम हो तो सहमति से सेक्स भी रेप: बॉम्बे हाई कोर्ट, शरीयत वाले ’15 साल की जवानी में निकाह’ पर भी पड़ सकता है असर

मुस्लिम पर्सनल लॉ में बाल विवाह को सही ठहराया गया है। सितंबर 2022 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई मुस्लिम लड़की 15 साल की हो जाती है यानी प्यूबर्टी हासिल कर लेती है तो मान लिया जाता है कि वह निकाह के काबिल हो गई है। ऐसा निकाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मान्य होगी। इसी तरह का एक फैसला दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सुनाया था। 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई पुरुष 18 साल से कम उम्र की अपनी पत्नी के साथ सहमति से भी यौन संबंध बनाता है तो उस पर बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है। कोर्ट ने रेप के आरोपित एक व्यक्ति के उस तर्क को खारिज करते हुए सजा को बरकरार रखा, उसमें उसने कहा था कि पीड़िता उसकी पत्नी और उसकी सहमति से यौन संबंध बनाया गया था।

बॉम्बे हाई कोर्ट के नागपुर पीठ के सिंगल बेंच जज गोविंद सनप ने 12 नवंबर को पारित आदेश में कहा, “सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून कि पत्नी होने के नाते संभोग को बलात्कार नहीं माना जाएगा, स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस मामले में यह कहने की जरूरत है कि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ यौन संबंध बलात्कार है, भले ही वह शादीशुदा हो या नहीं।”

कोर्ट ने कहा, “18 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ संभोग बलात्कार है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर मौजूदा मामले में पत्नी के साथ सहमति से यौन संबंध बनाने के बचाव को स्वीकार नहीं किया जा सकता। यहाँ तक ​​कि अगर उनके बीच तथाकथित विवाह हुआ था, फिर भी पीड़िता द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर कि यह उसकी सहमति के खिलाफ यौन संबंध बनाया गया था, बलात्कार होगा।”

बता दें कि कोर्ट एक व्यक्ति द्वारा दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे बलात्कार और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था। वर्धा जिले की एक निचली अदालत द्वारा 9 सितंबर 2021 को सुनाए गए फैसले को उसने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। हालाँकि, कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

दरअसल, अपीलकर्ता पुरुष को पुलिस ने 25 मई 2019 को गिरफ्तार किया था। उसके खिलाफ एक नाबालिग लड़की ने मामला दर्ज कराया। उस दौरान नाबालिग 31 सप्ताह की गर्भवती थी। लड़की और लड़के बीच प्रेम संबंध थे। इस दौरान अपीलकर्ता ने उसके साथ जबरन यौन संबंध बनाए। बाद में शादी के झूठे वादे के आधार पर ऐसा करना जारी रखा।

लड़की जब गर्भवती हुई तो उसने अपीलकर्ता से विवाह के लिए अनुरोध किया। इसके बाद लड़के ने किराए पर एक मकान लिया और वहाँ पड़ोसियों की उपस्थिति में एक-दूसरे के गले में फूलों की माला डाला। उसने लड़की को बताया कि अब वह उसकी पत्नी हो गई है। इसके बाद लड़का लड़की पर गर्भपात कराने का दबाव डालना शुरू कर दिया, लेकिन उसने ऐसा करने से मना कर दिया।

लड़की के इनकार करने पर लड़के ने उसके साथ मारपीट की। इसके बाद लड़की अपने माता-पिता के घर वापस चली गई। लड़का वहाँ भी पहुँचकर हंगामा किया और उसके साथ दो बार मारपीट की। तब पीड़िता को एहसास हुआ कि लड़के ने उसके साथ केवल शादी का दिखावा किया है, क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे वह जन्म देने को तैयार नहीं था।

सुप्रीम कोर्ट का नजरिया

अक्टूबर 2017 के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अगर पत्नी नाबालिग है और उसके साथ सहमति से भी सेक्स किया गया है, तब भी वह बलात्कार की श्रेणी में आएगा। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मदन लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने दिया था। हालाँकि, मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट के जज संजय करोल एवं जज बीआर गवई की पीठ ने ऐसे ही मामले में सेक्स संबंध को रेप मानने से इनकार कर दिया था।

मुस्लिमों में 15 साल की लड़की की निकाह की अनुमति

नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा जाए या नहीं, इसको लेकर बहस जारी है, उसी तरह की बहस मुस्लिमों में 15 साल की लड़की के निकाह को लेकर भी है। विभिन्न हाई कोर्ट ने शरीयत एवं मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए 15 साल की नाबालिग लड़की के निकाह और यौन संबंध को जायज माना है। वहीं, कुछ हाई कोर्ट ने अपराध की श्रेणी में शामिल किया है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ में बाल विवाह को सही ठहराया गया है। सितंबर 2022 में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा था कि अगर कोई मुस्लिम लड़की 15 साल की हो जाती है यानी प्यूबर्टी हासिल कर लेती है तो मान लिया जाता है कि वह निकाह के काबिल हो गई है। ऐसा निकाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मान्य होगी। इसी तरह का एक फैसला दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सुनाया था। 

इस विषय पर सुनवाई करते हुए अक्टूबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर किसी के पास अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है और बाल विवाह इसका उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि बाल विवाह को रोकने वाला कानून पर्सनल लॉ के नियमों से ऊपर है। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने 15 साल की उम्र में निकाह को एक तरह से खारिज कर दिया था।

कोर्ट ने अपने फैसले में बाल विवाह पर गाइडलाइन जारी कर कहा था कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम को किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत परंपराओं से बाधित नहीं किया जा सकता है। कोर्ट के इस फैसले के बाद नाबालिग की सगाई कराने पर भी प्रतिबंध होगा। प्यूबर्टी की उम्र और वयस्कता को लेकर कोर्ट में मामला है।

भारत के कानून के अनुसार, शादी के समय महिला की आयु कम-से-कम 18 वर्ष और पुरुष की आयु कम-से-कम 21 साल होनी चाहिए। इससे नीचे की शादी को गैर-कानूनी माना गया है। बाल विवाह को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 को लागू किया। इससे पहले इसकी जगह बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 लागू था।

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 में नाबालिग लड़की के निकाह की अनुमति है। इसमें कहा गया है कि प्यूबर्टी की उम्र (जिसे 15 साल मानी जाती है) और वयस्कता की उम्र एक समान है। इस कानून की धारा 2 में कहा गया है कि सभी विवाह शरीयत के तहत आएँगे, भले ही इसमें कोई भी रीति-रिवाज और परंपरा अपनाई गई हो। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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