Sunday, November 24, 2024
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महाराष्ट्र में वोट जिहाद की थी तैयारी, पर RSS ने हिंदुओं को बँटने नहीं दिया: जमीन पर अतुल लिमये ने सबको रखा ‘एक’, नतीजों में महायुति रही ‘सेफ’

महाराष्ट्र में जीत के पीछे अतुल लिमये की रणनीति भी शामिल है। लिमये को उनके सहयोगी फोकस और जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता के रूप में जानते हैं। महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण समाज से आने वाले 54 वर्षीय अतुल लिमये ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर रहे हैं। वे साल 2000 के शुरुआत में नौकरी छोड़कर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए।

महाराष्ट्र में भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति गठबंधन ने जो ऐतिहासिक जीत हासिल की है, उसकी चौतरफा चर्चा हो रही है। इसमें सबसे अधिक चर्चा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ‘बँटेंगे तो कटेंगे’, ‘एक रहेंगे तो नेक रहेंगे’ और उनकी महाराष्ट्र में 11 रैलियों की चर्चा हो रही है। महाराष्ट्र में उन्होंने 17 उम्मीदवारों के लिए प्रचार किया। इनमें से 15 उम्मीदवारों की जीत हुई। इनमें से एक सीट अकोला पश्चिम पर भाजपा सिर्फ 1283 वोटों से हारी है। वहीं, झारखंड में सीएम योगी ने कुल 18 सीटों पर चुनाव प्रचार किया। इनमें से 8 सीटों पर जीत मिलीं। वहीं, कई ऐसी सीटें रहीं, जहाँ विपक्षी सिर्फ कुछ हजार वोटों से जीते।

इसके अलावा, पीएम मोदी की ताबड़-तोड़ रैली और ‘एक हैं तो सेफ हैं’ जैसे नारे, ‘लाडली बहना योजना’, भाजपा सरकार की विकासवादी नीति और विपक्ष की तुष्टिकरण की राजनीति महायुति के जीत के प्रमुख कारक रहे। अगर इन सबको प्रमुख कारकों को एक तरफ रख दें और महाराष्ट्र चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों की रणनीति पर गहन नजर डालें तो इसके पीछे एक प्रमुख कारण विपक्ष का ‘वोट जिहाद’ को समर्थन और इसके खिलाफ बना माहौल भी था। वोट जिहाद के असर को कम करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बड़ी भूमिका निभाई।

हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में महाविकास अघाड़ी (MVA) को बड़ी सफलता मिली थी। राज्य की कुल 48 सीटों में से 14 पर इनके उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। भाजपा ने इसे वोट जिहाद बताया था। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया था कि लोकसभा में इन 14 हिंदू उम्मीदवारों को हराने के लिए विशेष समुदाय (मुस्लिम) के लोगों ने एकजुट होकर वोट दिया था। अक्टूबर में देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि कुछ लोग सोचते हैं कि वे संगठित होकर हिंदुत्व को नीचे गिरा सकते हैं। इसके बाद राज्य में ‘वोट जिहाद बनाम धर्मयुद्ध’ का नारा निकल चला पड़ा।

दरअसल, भाजपा ने वोट जिहाद की जिस बात को उठाया था, वो अकारण नहीं था। इसकी सत्यता की पुष्टि करने चुनाव के दौरान कई तरह घटनाएँ सामने आईं। महाराष्ट्र के मालेगाँव में 12 लड़कों के खातों में 90 करोड़ रुपए आ गए। ये खाते धोखे से खुलवाए गए थे। भाजपा ने कहा कि इन पैसों को वोट जिहाद में इस्तेमाल में करने कि लिए भेजा गया था। मामले की जाँच हुई तो पैसे भेजने वाला व्यक्ति महाराष्ट्र का एक मुस्लिम व्यापारी सिराज अहमद निकला। बाद में ED ने उसके यहाँ छापेमारी की और 125 करोड़ रुपए की गड़बड़ी सामने आई।

भाजपा नेताओं ने आरोप लगाए कि वोट जिहाद के बड़े पैमाने पर पैसों का इस्तेमाल किया गया। इसके अलावा, अवैध रूप से महाराष्ट्र में रहने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिमों को वोटर कार्ड बनवाए गए और उन्हें महायुति के खिलाफ वोट डालने के लिए कहा गया। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों से पहले मुस्लिम वोटों को बीजेपी के खिलाफ लामबंद करने के लिए 180 से ज्यादा एनजीओ काम कर रहे थे। इन एनजीओ ने केवल मुंबई में 9 लाख मुस्लिम मतदाताओं को जोड़ा।

ये एनजीओ के लोग मुस्लिम समुदाय के बीच जाते हैं, उन्हें समझाते हैं और फिर इनका इस्तेमाल वोटिंग टर्नआउट बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस्लामी संगठनों ने पिछले कुछ महीनों में मुस्लिम समुदाय के लोगों के बीच पहुँच बनाने के लिए कई अभियान चलाए हैं। इस दौरान इन्होंने सैंकड़ों बैठकें की, सूचना सत्र आयोजित किए और सामुदायिक कार्यक्रम किए…। हाल ही में सामने आई TISS की रिपोर्ट में कहा गया कि अवैध आप्रवासियों झुग्गी क्षेत्रों में बसाया जा रहा है। इनका राजनीतिक इस्तेमाल करने के लिए वोटर कार्ड दिलाए जा रहे हैं

रिपोर्ट में कहा गया है कि मुंबई में अवैध मुस्लिम आप्रवासियों की संख्या तेजी से बढ़ी है। मुंबई में 1961 में हिंदुओं की आबादी 88% थी, जो 2011 में घटकर 66% रह गई। इस दौरान मुस्लिम जनसंख्या 8% से बढ़कर 21% तक पहुँच गई। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो अनुमान है कि 2051 तक हिंदू आबादी 54% से कम हो जाएगी और मुस्लिम आबादी लगभग 30% तक बढ़ सकती है। ये सब कुछ वोट जिहाद के तहत एक सोची-समझी साजिश के तहत जनसांख्यिकीय बदलाव के लिए किया जा रहा है। ये काम कमोबेश पूरे देश में जारी है।

लोकसभा की तरह ही इस बार भी विधानसभा चुनाव से पहले फतवे निकाले गए। विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने क़ॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली MVA को वोट देने की अपील की। इस फतवे को मुस्लिमों के घर-घर तक पहुँचाने के लिए जगह-जगह बैठक की गई। रैलियाँ निकाली गईं। एनजीओ को लगाया गया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना खलीलुर रहमान सज्जाद नोमानी ने तो यहाँ तक कहा था कि ‘जो बीजेपी का साथ दे, ऐसे लोगों का हुक्का-पानी बंद होना चाहिए।’

इसके पहले मौलाना सज्जाद नोमानी ने तो एक कार्यक्रम में कहा था कि आज वोट देने वाले हर मुसलमान को अपने समुदाय के पक्ष में अपने अधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने मुसलमानों के मन में यह डर भी भर दिया कि अगर मोदी सत्ता में आए तो सभी मज़ार और मदरसे जमींदोज कर दिए जाएँगे। मुंबई में शिवसेना (यूबीटी) द्वारा आयोजित रैली में इस्लामी झंडे भी लहराए गए। इन सब कारणों से महाराष्ट्र के मुस्लिम बहुल इलाकों में मुस्लिमों ने भारी वोटिंग की और परिणाम सामने रहा।

हालाँकि, लोकसभा चुनाव वाला खेल ही विपक्षी दलों ने विधानसभा चुनावों में भी खेलने की कोशिश की। मुस्लिमों के हक में समर्थन लेने के बाद ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड ने अपना समर्थन कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में बने महाविकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन को दिया था। अपने आधिकारिक पत्र में उलेमा बोर्ड ने 17 शर्तों के साथ ये समर्थन देने की बात ही है। इनमें वक्फ बोर्ड को 1000 करोड़ रुपए देने, आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने जैसी माँग की गई थी, पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ बोलने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानून लागू करने जैसी बातें शामिल हैं।

इनके अलावा, जो अन्य माँगें थीं वो हैं- वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध करने और इसे निरस्त करना, वक्फ संपत्तियों से अतिक्रमण हटाने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा में कानून बनाना, महाराष्ट्र बोर्ड में मुसलमानों के लिए 10% आरक्षण, राज्य में पुलिस भर्ती में शिक्षित मुसलमानों को प्राथमिकता, भाजपा नेता नीतेश राणे और रामगिरी महाराज को जेल में डालना, मौलवी सलमान अझेरी को रिहा करना, राज्य के मस्जिदों के मौलानाओं और इमामों को 15,000 रुपए प्रति माह देना।

महाविकास विकास अघाड़ी ने उलेमा बोर्ड की माँगें मान लीं और इसके आधार पर महायुति गठबंधन के लिए वोट जिहाद की रणनीति पर काम शुरू हो गया। हालाँकि, बँटेेंगे तो कटेंगे नारे के साथ राजनीति आक्रामक होती गई तो अंदर ही अंदर आरएसएस ने मोहरे बिछाने शुरू कर दिए। वोट जिहाद को लेकर किए जा रहे सारे कामों को छोटी-छोटी बैठकों के जरिए लोगों तक पहुँचाया जाने लगा। इनमें जमीनी स्तर के RSS वर्कर ने अपने काम को अद्भुत तरीके से अंजाम दिया। इसका नेतृत्व किया RSS के पश्चिम प्रांत के प्रमुख एवं सह सरकार्यवाह अतुल लिमये ने।

मुस्लिम संगठनों और नेताओं द्वारा हिंदुओं के खिलाफ दिए जाने भड़काऊ नारों का काट तैयार किया जाने लगा। इस चुनाव को वोट जिहाद बनाम धर्मयुद्ध बना दिया गया। इसे कुछ ऐसे पेश किया गया कि अगर विधानसभा चुनावों में विपक्ष की जीत के बाद हिंदुओं के मुश्किलों के पहाड़ टूट पड़ेंगे। TISS की रिपोर्ट की चर्चा की गई। जमीनी स्तर पर स्वयंसेवकों ने बताया कि विपक्षी सरकार बनते ही बांग्लादेश-रोहिंग्या की देश में आमद बढ़ जाएगी। सोशल मीडिया से लेकर अखबारों में लेख, पार्टी नेताओं के बयान और मीडिया में बहस के जरिए इन बातों को आम जनमानस तक पहुँचाया गया।

अतुल लिमये ने दीर्घकालिक पहलों में शोध दल, शोध समूह और थिंक टैंक की स्थापना की। इनमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के जनसांख्यिकीय अध्ययन और उसके कारण नीति-निर्धारण में पड़ने वाले असर जैसे विषयों के बारे में बताया गया। उन्होंने मराठा आंदोलन जैसे मुद्दों को बेअसर कर दिया। उन्होंने मराठा समुदाय के नेताओं को विश्वास में लिया, ओबीसी मतदाताओं को पार्टी से फिर जोड़ा। इसके लिए उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे को आधार बनाया। सीएम योगी के ‘बँटेंगे तो कटेंगे’ का जीतना विरोध MVA के नेता करते, उतना ही जमीनी स्तर पर हिंदुओं को अपने पाले में खिंचने में RSS को सफलता मिलती।

इसका परिणाम ये हुआ कि खुद को प्रगतिशील होने का स्वांग रचने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री स्वरा भास्कर के शौहर और शरद पवार की एनसीपी के उम्मीदवार फहाद अहमद तक चुनाव हार गए। AIMIM मालेगाँव सेंट्रल जैसी मुस्लिम बहुल सीट तक सिमट कर रह गई। यहाँ से AIMIM के मुफ्ती इस्माइल सिर्फ 162 वोटों से जीते। पार्टी ने 16 जगहों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इस बार खड़े 420 मुस्लिम उम्मीदवारों में सिर्फ 13 मुस्लिम विधायक बने हैं। हारने वालों में कई बड़े चेहरे शामिल हैं। ये सब भाजपा की रणनीति का कमाल है।

अतुल लिमये को उनके सहयोगी फोकस और जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता के रूप में जानते हैं। महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण समाज से आने वाले 54 वर्षीय अतुल लिमये ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंजीनियर रहे हैं। वे साल 2000 के शुरुआत में नौकरी छोड़कर संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गए। इस तरह उन्होंने रणनीति एवं समाजसेवा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम रखा। मूल रूप से नासिक के रहने वाले लिमये ‘पश्चिमी महाराष्ट्र के प्रांत प्रचारक रहे और जल्दी ही क्षेत्र प्रचारक बन गए। उनके क्षेत्र में महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा शामिल हैं। वे संघ में सह सरकार्यवाह हैं।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

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