कॉन्ग्रेस के बचे-खुचे प्रभुत्व वाले इलाकों और संस्थानों में स्वतंत्रता सेनानी, हिन्दू महासभा के नेता और ‘एसेंशियल्स ऑफ़ हिंदुत्व’ के लेखक विनायक दामोदर सावरकर की विरासत पर हमले जारी हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में वीर सावरकर के नाम से जाने जाने वाले नेता की मूर्ति पर कॉन्ग्रेस की छात्र शाखा एनएसयूआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ़ इंडिया) के नेताओं द्वारा जूतों की माला पहनाई गई, कालिख पोती गई, राजस्थान में (जहाँ कॉन्ग्रेस का शासन है) इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में उनके नाम से ‘वीर’ हटा दिया गया और अब इतिहासकारों की स्वायत्त संस्था आईसीएचआर (इंडिंयन काउंसिल ऑफ़ हिस्टोरिकल रिसर्च) को राजस्थान यूनिवर्सिटी ने कह दिया है कि संस्था का राजस्थान यूनिवर्सिटी के कैम्पस में प्रस्तावित सम्मलेन सावरकर छोड़ कर किसी भी विषय पर हो सकता है।
Watch and learn — Ashok Gehlot has fixed the textbooks and prevented even a ICHR seminar on Savarkar , the 2019 LS Slap has no effect. They go deep when they have a chance. https://t.co/Iu5f8YtUZX
— Reality Check India (@realitycheckind) November 12, 2019
‘Veer’ Erased From His Name In Textbooks, Savarkar Now Denied Space At University Seminar In Congress-Ruled Rajasthanhttps://t.co/NkYCFUH6qJ
— Swarajya (@SwarajyaMag) November 12, 2019
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार कल (सोमवार, 11 नवंबर, 2019 को) आरएसएस के अनुषांगिक संगठन ‘अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना’ ने “द ट्रुथ अबाउट सावरकर” (सावरकर के बारे में सत्य) नामक लेक्चर शृंखला का अनावरण किया था। यह तारीख आज़ाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के नाम पर राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाई जाती है। इस लेक्चर शृंखला को आईसीएचआर का समर्थन प्राप्त बताया जा रहा है। यह लेक्चर राजस्थान के जयपुर के अलावा गुवाहाटी, पोर्ट ब्लेयर, पुणे और कुछ अन्य शहरों में होने हैं।
बकौल आईसीएचआर अधिकारीगण, इस लेक्चर शृंखला का मकसद “सावरकर और 1857 की आज़ादी की लड़ाई से जुड़े लेखन के बारे में फैले झूठ का खंडन” करना है। उनके अनुसार राजस्थान यूनिवर्सिटी के लोगों ने उनसे कहा कि वे कोई और विषय ले लें।
वहीं राजस्थान यूनिवर्सिटी के अधिकारियों के हवाले से इकोनॉमिक टाइम्स ने दावा किया है कि राजस्थान यूनिवर्सिटी ने अनुमति देने से मना नहीं किया है बल्कि ‘केवल’ मामले को ठंडे बस्ते में डाला है। “हमने पूरी तरह से मना नहीं किया बल्कि ये कहा है कि हमें एक महीने का समय चाहिए, और उनसे और जानकारी इस लेक्चर के बारे में माँगी है क्योंकि हमें औरों से इस विषय पर सलाह-मशविरा करना है। सावरकर से जुड़े कई मामले बहुत विवादास्पद हैं और हम कोई समस्या नहीं चाहते थे।”