एजेंडा तैयार। सरकार में हिस्सेदारी का फॉर्मूला फाइनल। बावजूद इसके महाराष्ट्र में अब तक कॉन्ग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर शिवसेना सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। इसकी सबसे बड़ी वजह कॉन्ग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गॉंधी की दुविधा है। ऐसे में अब नजरें सोमवार को दिल्ली में सोनिया और एनसीपी के मुखिया शरद पवार के बैठक पर टिकी है।
कॉन्ग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा है कि इस बैठक के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि कॉन्ग्रेस शिवसेना के साथ सरकार गठन के लिए आगे बढ़ेगी या नहीं। इससे पहले रविवार को एनसीपी की एक बैठक हुई थी। इस बैठक के बाद पार्टी प्रवक्ता नवाब मलिक ने बताया कि एनसीपी चाहती है कि राज्य में जल्द से जल्द राष्ट्रपति शासन खत्म हो। लेकिन, सरकार गठन को लेकर आखिरी फैसला सोनिया गॉंधी और शरद पवार के बीच होने वाली बैठक के बाद ही होगा।
सोनिया की दुविधा की सबसे बड़ी वजह उत्तर भारतीयों और कथित अल्पसंख्यकों को लेकर शिवसेना का स्टैंड है। हालॉंकि जो कॉमन मिनिमम प्रोग्राम तैयार किया गया है उससे जाहिर है कि शिवसेना अपने हिन्दुत्व के एजेंडे से पीछे हटने को तैयार है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार शिवसेना मजहब विशेष को 5 फीसदी अतिरिक्त आरक्षण देने और वीर सावरकर को भारत रत्न देने की मॉंग से पीछे हटने को तैयार हो गई। शिवसेना पहले चाहती थी कि पार्टी संस्थापक बाल ठाकरे की पुण्यतिथि 17 नवंबर को नई सरकार का गठन हो जाए। लेकिन, सोनिया के पत्ते नहीं खोलने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। सोनिया के असमंजस में होने की दूसरी वजह शिवसेना को समर्थन देने पर कॉन्ग्रेस के भीतर का मतभेद भी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुशील शिंदे और मुंबई कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष रहे संजय निरुपम जैसे नेता शिवसेना के साथ जाने के पक्ष में नहीं है।
NCP leader Nawab Malik: Today, there is a meeting between NCP President Pawar ji and Congress President Sonia ji. Once it is decided in the meeting today on how to go ahead, definitely everything will speed up and there will be an alternate government in Maharashtra. pic.twitter.com/VUxQpUPczK
— ANI (@ANI) November 18, 2019
दूसरी तरफ, केंद्र में भाजपा की सहयोगी पार्टी रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया (RPI) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले के एक बयान ने भी राज्य की राजनीतिक तस्वीर को लेकर कयासों को बल दे दिया है। अठावले ने रविवार को कहा था, “मैंने अमित भाई (भाजपा अध्यक्ष अमित शाह) से कहा कि अगर वह मध्यस्थता करते हैं तो एक रास्ता निकाला जा सकता है, जिस पर उन्होंने (अमित शाह) जवाब दिया कि चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा। भाजपा और शिवसेना मिलकर सरकार बनाएँगे।” इससे पहले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी संकेतों में इशारा किया था कि भाजपा अब भी राज्य में सरकार बना सकती है। महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने भी कहा था कि पार्टी के पास 119 विधायकों का समर्थन है।
288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों का समर्थन जरूरी है। विधानसभा चुनाव में भाजपा को 105, शिवसेना को 56, कॉन्ग्रेस को 44 और एनसीपी को 54 सीटों पर जीत मिली थी। शिवसेना ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। लेकिन, ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मॉंग पर उसके अड़ने के बाद भाजपा ने सरकार बनाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद राज्यपाल ने सरकार गठन को लेकर शिवसेना और एनसीपी की राय जानी थी। लेकिन, दोनों ही दल समर्थन पेश करने में विफल रहे थे जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।
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