शाहीन बाग़ के मुख्य साज़िशकर्ता शरजील इमाम का एएमयू का एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उसने महात्मा गाँधी को बीसवीं सदी का सबसे फासिस्ट नेता बताया था क्योंकि वो ‘राम राज्य’ की बातें करते थे। शरजील ने पूरे उत्तर-पूर्व को शेष भारत से अलग कर के ‘टुकड़े-टुकड़े’ की मंशा जाहिर की थी। शरजील ने वामपंथी संगठनों को लताड़ते हुए सीपीएम को एक हिंसक पार्टी करार दिया था। असम को लेकर दिए गए उसके भड़काऊ बयान के कारण उसके ख़िलाफ़ कई केस दर्ज हुए। जहानाबाद स्थित उसके पैतृक निवास पर केंद्रीय एजेंसियों ने छापेमारी की, जिसके बाद पता चला कि वो फरार हो गया है।
शरजील ने एएमयू में बोलते हुए कहा था कि मुस्लिमों ने मुस्लिम लीग के अभ्युदय से पहले कभी भी कॉन्ग्रेस ने वोट नहीं किया। उसने कई इस्लामी दलों के नाम गिनाते हुए कहा कि आज़ादी से पहले भी मुस्लिम कॉन्ग्रेस को वोट नहीं देते थे। शरजील ने आरोप लगाया कि मुस्लिमों के कत्लेआम आज़ादी से पहले ही चालू हो गए थे। उसने कॉन्ग्रेस पर आरोप लगाया कि जो उलेमा पार्टी के ख़िलाफ़ थे, उन्हें बदनाम किया गया और अंग्रेजों का एजेंट ठहरा दिया गया।
शरजील इमाम ने इस दौरान गोरक्षा पर भी बात की। उसने दावा किया कि गोरक्षा का मुद्दा 1890 से काफ़ी हिंसक तरीके से चल रहा है। शरजील का मानना है कि आजमगढ़ क्षेत्र में गोरक्षा के नाम पर पहला हमला किया गया और बाद में पंजाब के शहरी इलाक़ों से होते हुए ये ट्रेंड कई ग्रामीण क्षेत्रों में फैला। शरजील के आँकड़ों की मानें तो भारत में अधिकतर मुस्लिम शहरी क्षेत्रों में रहते हैं और अकेले यूपी में 30% से अधिक मुस्लिम अर्बन इलाक़ों में रहते हैं।
शरजील ने कहा कि जिन ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिमों की जनसंख्या ज़्यादा है, वहाँ गोरक्षा जैसी चीजें आसानी से नहीं चल पातीं। उसने दावा किया कि जहाँ आमने-सामने की लड़ाई हो, वहाँ गोरक्षा वाले हमला नहीं कर पाते हैं। शरजील ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा:
“आज़ादी से पहले हमले उन्हीं इलाक़ों में हुए, जहाँ मुस्लिमों की जनसंख्या कम थी। जहाँ ज्यादा आबादी थी, वहाँ हमले नहीं हुए। गोरक्षा का असली खतरनाक चेहरा ईस्टर्न यूपी के देहातों में नज़र आया है, क्योंकि यहाँ मुस्लिमों की आबादी कम है। बिहार में भी ऐसा ही हुआ। गोरक्षा की एंट्री भारत में खिलाफत से है, जब मौलानाओं ने कहा कि तुम खिलाफत में हमारी मदद करो, हम गोरक्षा में करेंगे। मुशरिक के दबाव में बोला जा रहा है कि वो गोकशी न करें। अहमद रज़ा ख़ान बरेलवी ने ऐसा ही कहा था।”
शरजील इमाम का इशारा मुशरिक से हिन्दुओं की तरफ था, जो एक अल्लाह की पूजा नहीं करते। गोरक्षा को लेकर शरजील ने कहा कि इस पर किसी भी प्रकार के समझौते की ज़रूरत नहीं है। उसने कहा कि मौलाना आज़ाद जैसे लोगों ने गोरक्षा का समर्थन किया, जो आज हमारे लिए ज़हर बन गया है। उसने मौलाना अहमद रज़ा ख़ान के हवाले से कहा कि मुस्लिम एक खाना ज्यादा दिन तक नहीं खा सकता और कई दिनों तक लगातार खिलाया जाए तो वो उस भोजन से नफरत करने लगता है। उसने आगे कहा कि गाय का गोश्त ही एक ऐसा है, जिसे मुस्लिम कितना भी खाए, बोर नहीं होता।
शरजील कहता है कि हिन्दू लोग मुस्लिमों के घरों में और डाइनिंग रूम में घुस चुके हैं। वो इसके लिए भी महात्मा गाँधी को जिम्मेदार ठहरता है और उन मौलानाओं को भी, जिन्होंने गाँधी जी का समर्थन किया। शरजील इतिहास को फिर से लिखने की बात करता है, ताकि मुस्लिमों का अपना इतिहास हो। उसने बताया कि इतिहास की किताबों से उसका भरोसा कब का उठ चुका है। शरजील ने आरोप लगाया कि जामिया में सड़क पर नमाज पढ़ने से मुस्लिमों को रोका गया। साथ ही उसने पूछा कि क्या एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नमाज़ भी नहीं पढ़ सकते?
उसने साथ ही पंडितों को भी निशाना बनाया। शरजील का कहना था कि नमाज़ मुस्लिमों के लिए आवाम का मामला है जबकि हिन्दुओं में किसी पंडित को बैठा कर पूजा करा दिया जाता है। शरजील ने कहा, “हिन्दुओं में तो होगा कोई पंडित जो बैठ कर उनके लिए पूजा कर रहा होता है।” उसे पूछा कि किस हिन्दू को दिन में 5 बार पूजा करनी होती है? उसने नामज़ को डेली रूटीन बताते हुए कहा कि मस्जिद दूर हो तो मुस्लमान कहीं भी खड़े होकर नमाज पढ़ेगा।
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