न्यायपालिका को कमजोर करने के लिए उस पर हो रहे हमलों पर बात करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने शनिवार (मई 30, 2020) को एक वेबिनार में उपस्थिति दर्ज कराई। इस दौरान उन्होंने कई मुद्दों पर बात करते हुए बताया कि न्यापालिका की आलोचना में क्या दायरे होने चाहिए और क्या कहा जाना चाहिए और क्या नहीं। इस वेबिनार को ‘कैन फाउंडेशन’ द्वारा होस्ट किया गया था, जिसमें साल्वे ने ये बातें कहीं।
इस दौरान साल्वे ने हर्ष मंदर की जम कर आलोचना की, जो हाल ही में सीएए विरोधी हिंसक प्रदर्शनों में समुदाय विशेष को उकसाते हुए पाया गया था। मंदर दूसरे समुदाय को भारत सरकार के खिलाफ भड़काता रहा है और वो खुद को एक्टिविस्ट भी बताता है। साल्वे ने कहा कि कई ऐसे लोग हैं, जो रोज-रोज कोर्ट को गाली देते हैं। ऐसे लोग सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए कहते हैं कि उन्हें न्याय की उम्मीद नहीं है और अगले ही दिन भागे-भागे कोर्ट में आते हैं।
साल्वे ने पूछा कि क्या सुप्रीम कोर्ट को इन्हें नज़रंदाज़ करना चाहिए? उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा विकल्प यही है कि इन्हें भाव ही न दिया जाए। इसके बावजूद साल्वे ने आत्ममंथन पर जोर दिया। उन्होंने मीडिया के एक लेख के बारे में बात करते हुए कहा कि उसमें भारतीय न्यापालिका को आशाहीन बताते हुए अंतरराष्ट्रीय न्यायपालिका से न्याय की उम्मीद जताई गई है। उन्होंने इसे दायरा लाँघना करार देते हुए कहा कि ये फ्रीडम ऑफ स्पीच और लिबर्टी ऑफ एक्सप्रेशन का उल्लंघन है।
साल्वे ने कहा कि कोर्ट के किसी फैसले के आधार पर आलोचना होना ठीक है लेकिन ये कहना कि अदालत ये करे और ये न करे, सही नहीं है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि आजकल लोग कोर्ट के किसी फैसले की आलोचना की जगह कोर्ट की ही आलोचना करते हैं और अपना एजेंडा पूरा करने के लिए अदालत जाते हैं। साल्वे ने सरकार से व्यक्तिगत मानहानि के लिए एक ट्रिब्यूनल के गठन की माँग की है। उन्होंने यूके का उदाहरण देते हुए कहा कि वहाँ व्यक्तिगत मानहानि के मसलों को फ़ास्ट-ट्रैक आधार पर सुलझाया जाता है जबकि भारत में ऐसे केस सालों चलते रहते हैं।
उन्होंने इस दौरान प्रशांत भूषण के मामले का उदाहरण भी दिया। भूषण ने जस्टिस कपाड़िया के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया था। इस मामले में अटॉर्नी जनरल ने भी कुछ नहीं किया था, जिसके बाद साल्वे इस मुद्दे को लेकर कोर्ट गए थे। हालाँकि, जस्टिस कपाड़िया तो नहीं रहे लेकिन ये केस अभी भी लंबित पड़ा हुआ है। साल्वे ने कहा कि सामान्य ‘ट्रोल्स’ को नजरंदाज किया जा सकता है लेकिन जो लोग जनता को किसी मुद्दे पर प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं, उनसे इन मामलों में सावधानी से निपटा जाना चाहिए। इनमें एक्टिविस्ट और ओपिनियन मेकर वगैरह आते हैं। साल्वे ने कहा:
“कई लोग सरकार को बदनाम करने का एजेंडा लिए कोर्ट में आते हैं। जब निर्णय उनके पक्ष में नहीं आता तो वो जज पर बेईमान होने का आरोप लगा देते हैं। एक जज को बिना डरे काम करने और ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की शपथ लेनी होती है लेकिन आज मीडिया दौर के दौर में एक जज के मन में हमेशा पब्लिक ओपिनियन उसके खिलाफ जाने का भय बना रहता है। अगर सोशल मीडिया में निंदा का ये दौर चलता ही रहा तो फिर आज से 20 साल बाद प्रैक्टिस करने के लिए कोर्ट का अस्तित्व ही न हो, ऐसा हो सकता है।”
लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के मामले में एनडीटीवी के श्रीनिवासन जैन द्वारा किए गए मीडिया ट्रायल की भी साल्वे ने आलोचना की। उन्होंने बताया कि श्रीनिवासन जैन ने उन्हें कॉल कर के पूछा था कि आखिर पुरोहित को जमानत कैसे मिल गई? बकौल साल्वे, उन्होंने जवाब दिया कि आप इतने निश्चित कैसे हो कि बेल मिलना चाहिए था या नहीं? तब तो एडिशनल सोलिसिटर जनरल की जगह आपको ही कोर्ट में दलीलें पेश करनी चाहिए थीं?
Thread: Harish Salve on trial by media. Takes apart media, exposes agenda of the unelected, cites how NDTV handled Col Purohit’s case. pic.twitter.com/y9GxsawgSx
— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) May 31, 2020
उन्होंने बताया कि संचार एजेंसी पीटीआई ने एक बार प्रकाशित कर दिया था कि उन्होंने कोर्ट में कहा कि हाँ, उनके क्लाइंट ने टैक्स की चोरी की है। उन्होंने बताया कि एजेंसी के किसी सदस्य को किसी ने ऐसा बोल दिया कि ये साल्वे के शब्द हैं और उसने छाप दिया। उन्होंने कोर्ट में लगातार जाने वाली जनहित याचिका के बारे में कहा कि यह सरकार के कामकाज पर असर डालने का एक हथियार बन गया है। उन्होंने बताया कि एक समय था, जब जुडीसियरी ही सरकार चला रही थी।
बता दें कि हरीश साल्वे ने ही इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव मामले में भारत का पक्ष रखा था। जाधव का पहरण कर के उन पर भारतीय जासूस होने का आरोप लगाया गया और फाँसी की सजा सुना दी गई। पाकिस्तानी सैन्य अदालत के इस फैसले पर अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय ने रोक लगा दी। हरीश साल्वे जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने का भी समर्थन कर चुके हैं।