Sunday, May 5, 2024
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केजरीवाल सपोर्ट देने के लिए घूम रहे हैं, राहुल गाँधी लेना ही नहीं चाहते! दुःखद!

केजरीवाल कल को भले ही कह दें कि ट्वीट उनका भतीजा लिख रहा था और मोदी ने उनके क्लोन से सभाओं में कॉन्ग्रेस से सपोर्ट की बात कहलवाई है, लेकिन आज का सच यही है कि केजरीवाल 'मेरे हस्बैंड मुझसे प्यार नहीं करते' का रोना हर जगह रो रहे हैं।

केजरीवाल जी दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, सम्मानित व्यक्ति हैं। ये उनको वोट देने वाला हर व्यक्ति कसम खाकर कह सकता है। आजकल वो लेन-देन की बात कर रहे हैं, जो हो सकता है व्यापारियों का समर्थन लेना चाह रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में उन्होंने लगातार ट्वीट, भाषण और जनसभाओं को संबोधित करते हुए बोला कि वो तो कॉन्ग्रेस को सपोर्ट देने के लिए लालायित हैं, वो लेना ही नहीं चाहते। 

ये स्थिति बहुत खराब है। खासकर कॉन्ग्रेस को यह समझना चाहिए कि यही वो समय है जब वो चुपके से केजरीवाल जी के रजिस्टर में अपने आप को सच्ची और अच्छी पार्टी वाले कॉलम में जगह बनवा ले। लेकिन दिनकर जी ने कहा था कि ‘जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है’। राहुल गाँधी और शीला दीक्षित समेत पूरे कॉन्ग्रेस का विवेक मर चुका है क्योंकि वो इस सुनहरे मौक़े को छोड़ रहे हैं।

केजरीवाल की पूरी राजनीति कॉन्ग्रेस और शीला दीक्षित के खिलाफ काग़ज़ों के बंडल की आधारशिला पर खड़ी हुई है। जब उन्हें कोई नहीं जानता था, तब वो जनसामान्य की भावनाओं पर खेलते हुए, ‘सारे नेता चोर हैं’ का कोरस गाकर सुपरहिट हो गए थे। लोग मेट्रो ट्रेन से लेकर सड़कों पर ‘या तो आप अन्ना-केजरीवाल के साथ हैं, या आप भ्रष्ट हैं’ की बातों करते हुए लड़ जाते थे। 

और आज, केजरीवाल मुँह से, शरीर से, ट्वीट से, और हर उस तरीके से कॉन्ग्रेस से समर्थन के लिए डेस्पेरेट हुए जा रहे हैं, जिससे लगता है कि इस व्यक्ति के लिए सत्ता का लालच कितना प्रबल है। ये आदमी आपको ‘नई राजनीति’ के सपने दिखाया करता था। ये आदमी आपको कहता था कि तिजोरी में सबूत हैं, और उसकी चाभी उसके पास है। ये आदमी हवा में पन्ने लहराकर कहता था कि भ्रष्टाचारियों को जेल में डाल देगा।

और आज, खुद ही उन्हीं लोगों से समर्थन ऐसे माँग रहा है… ऐसे-ऐसे माँग रहा है कि उसके स्वघोषित आलोचक तक स्तब्ध हैं कि ये किस हद तक गिरेगा! केजरीवाल कल को भले ही कह दें कि ट्वीट उनका भतीजा लिख रहा था और मोदी ने उनके क्लोन से सभाओं में कॉन्ग्रेस से सपोर्ट की बात कहलवाई है, लेकिन आज का सच यही है कि केजरीवाल ‘मेरे हस्बैंड मुझसे प्यार नहीं करते’ का रोना हर जगह रो रहे हैं।

कुछ दिन पहले शीला दीक्षित की उपस्थिति में इस बात पर चर्चा हुई थी, और दिल्ली में गठबंधन को कॉन्ग्रेस ने पूरी तरह से नकार दिया था। ये बात और है कि महागठबंधन के मंचों पर राहुल और केजरीवाल साथ-साथ देखे गए हैं। शीला दीक्षित को ये बात तो याद होगी ही कि दिल्ली में इतना काम करने के बाद भी केजरीवाल ने एक हवा बनाकर उन्हें सत्ता से ऐसा पटका कि कॉन्ग्रेस का पूरा सूपड़ा साफ हो गया। 

अब शायद केजरीवाल को अपने अस्तित्व की चिंता हो रही होगी। लगातार घटते जनाधार, निगम चुनावों में हुई हार, हर दिन अपने आप को जनता की नज़रों में गिराते रहने के बाद, आंतरिक सर्वे बाहर में जो भी इन्होंने दिखाया हो, भीतर की हवा तो टाइट ही दिखती है। केजरीवाल को पहले की तरह न तो चंदा मिल रहा है, न ही लोग इसके पक्ष में हैं। चंदा जुटाने के लिए टिकटों की बिक्री से लेकर, विधायकों से वसूली तक की बातें सामने आती रही हैं। इसमें सच कितना है, वो केजरीवाल ही जानते होंगे, लेकिन टिपिकल रवीश कुमार टाइप शब्दों को इस्तेमाल करूँ तो ‘जाँच करा लेनी चाहिए’। 

केजरीवाल के गिरने का स्तर अभी तक निम्नतम पर नहीं पहुँचा है। क्योंकि ये अभी बेक़रारी का दौर है, यहाँ हताशा दिखनी शुरु हुई है। निम्नतम स्तर पर ये तब पहुँचेगा जब केजरीवाल अपने असली रंग में आकर राहुल गाँधी और कॉन्ग्रेस को गालियाँ देना शुरु करेंगे। ये होगा, और ज़रूर होगा। केजरीवाल एक महीने के भीतर, जब कॉन्ग्रेस की तरफ से सारे उम्मीदवारों के नामांकन की ख़बर सुन लेंगे, तो कॉन्ग्रेस को चोर, लुटेरा और भ्रष्ट कहने लगेंगे। 

उसके बाद फिर से आम आदमी पार्टी के समर्थकों को चरमसुख मिलने लगेगा। फ़िलहाल तो केजरीवाल चरमसुख की तलाश में हैं जो कि कॉन्ग्रेस से गठबंधन करने के बाद, थ्योरेटिकली मोदी-शाह को हर जगह से उखाड़ फेंकने के बाद, सत्ता पाने के बाद, अपने आप इन तक चल कर आएगा। 

यही कारण है कि अरविन्द केजरीवाल सपोर्ट देना चाह रहे हैं, आगे पीछे घूम रहे हैं, मीटिंग कर रहे हैं, पब्लिक जगहों से आवाज लगा रहे हैं, और एक बेवफ़ा सनम राहुल हैं कि लेना ही नहीं चाह रहे सपोर्ट। 

किसको पता था क्यूट डिम्पलधारी राहुल गाँधी एक दिन केजरीवाल जैसे दूध के धुले, सर्टिफ़िकेट वितरक केजरीवाल जी के सपोर्ट को लेने से मना कर देगा! लेकिन दुनिया है, ये सब भी देखना पड़ता है। देखते रहिए, पता नहीं कल क्या दिख जाए।  

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अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

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