Sunday, December 22, 2024
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भारतीय सेना को आतंकी बताने वाले लेक्चर की पढ़ाई केरल में, अरुंधति रॉय हैं लेखिका: BJP ने राज्यपाल को लिखा पत्र

"अरुंधति रॉय ने इस लेक्चर में दावा किया है कि भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर में 'आज़ादी के अहिंसक आंदोलनकारियों' के खिलाफ आतंक का रास्ता अपनाया।"

केरल के कालीकट विश्वविद्यालय में अरुंधति रॉय का लेक्चर पढ़ाई जाने के फैसले के बाद वहाँ विवाद खड़ा हो गया है। केरल भाजपा ने इसके खिलाफ विरोध जताया है। बता दें कि ‘Come September’ नामक अरुंधति रॉय का ये लेक्चर 2002 का ही है। अब केरल के कालीकट यूनिवर्सिटी ने निर्णय लिया है कि इसे बीए अंग्रेजी के तीसरे सेमेस्टर के विद्यार्थियों को सिलेबस में पढ़ाया जाएगा।

केरल भाजपा के अध्यक्ष के सुरेंद्रन ने इसे देशद्रोह करार दिया है। उन्होंने माँग की है कि न सिर्फ अरुंधति रॉय के इस लेक्चर को सिलेबस से तुरंत निकाल बाहर किया जाए बल्कि ये निर्णय लेने के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ केस भी दर्ज किया जाए। सिलेबस में अरुंधति रॉय के इंट्रोडक्शन में लिखा है कि उन्होंने जम्मू कश्मीर में सशस्त्र भारतीय सेना के खिलाफ ‘निहत्थे’ कश्मीरियों की ‘आज़ादी के आंदोलन’ का समर्थन किया था।

के सुरेंद्रन ने केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को इस सम्बन्ध में पत्र भेज कर कार्रवाई की माँग की है। उन्होंने कहा कि उक्त लेख को अरुंधति रॉय के एक भाषण से लिया गया है, जिसमें न सिर्फ सरकारी नीतियों को गलत बताया गया है बल्कि भारतीय संविधान तक को भी चुनौती दी गई है। बकौल सुरेंद्रन, अरुंधति रॉय ने इस लेक्चर में दावा किया है कि भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर में ‘आज़ादी के अहिंसक आंदोलनकारियों’ के खिलाफ आतंक का रास्ता अपनाया है।

उन्होंने पूछा कि मासूस विद्यार्थियों को कारगिल युद्ध के सम्बन्ध में ऐसा लेख कैसे पढ़ाया जा सकता है, जिसे भारत-विरोधी श्रोताओं के समक्ष पेश किया गया हो? के सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि इससे कारगिल युद्ध में भारत के लिए बलिदान देने वाले जवानों का अपमान होगा, जो भारत की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने चेताया कि अगर इसे सिलेबस से नहीं हटाया गया तो भाजपा बड़ा आंदोलन करेगी और क़ानूनी रास्ता अपनाएगी।

बता दें कि उक्त लेक्चर को अरुंधति रॉय ने अमेरिका के लानन फाउंडेशन के समक्ष सितम्बर 18, 2002 को सैंटा फे में दिया था। इसमें उन्होंने ‘पॉवर बनाम पॉवरलेस’ के संघर्ष की बात करते हुए दावा किया था कि सरकारी नीतियों की आलोचना करने वालों को देशद्रोही करार दिया जा रहा है। इसे टेक्स्टबुक ‘Appreciating Prose’ में शामिल किया गया है, जिसे मुरुकन बाबू सीआर ने एडिट किया है।

मुरुकन कालीकट यूनिवर्सिटी सिंडिकेट के सदस्य रहे हैं। इसके अलावा इसमें आबिदा फ़ारूक़ी का नाम शामिल है, जो कोन्डोत्ती स्थित गवर्नमेंट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत रही हैं। वो अंग्रेजी के बोर्ड ऑफ स्टडीज की अध्यक्ष भी रही हैं। इस टेक्स्टबुक को एक प्राइवेट प्रकाशन द्वारा लाया गया है। सिंडिकेट सदस्य केके हनीफा ने कहा कि अकादमिक बॉडी, बोर्ड ऑफ स्टडीज, फैकल्टी और अकादमिक काउंसिल ने मिल कर सिलेबस तैयार किया है।

उन्होंने कहा कि इसे एक ‘Prose Paper’ के रूप में जोड़ा गया है, जिसका भाषा के अध्ययन से ज्यादा मतलब है और इसके अंदर क्या कंटेंट है, इससे कम। उन्होंने कहा कि वो लोकतान्त्रिक रूप से शिकायतों को देखेंगे लेकिन सिर्फ अरुंधति रॉय की वजह से इसका विरोध करना गलत है। वहीं मुरुकन ने कहा कि इस पुस्तक में जो भी विचार हैं, वो एडिटर्स के नहीं हैं। साथ ही उन्होंने इसके निरीक्षण की भी माँग की।

इस लेक्चर में अर्बन नक्सल अरुंधति रॉय ने कहा कि भारत में जो कोई परमाणु बम, बड़े बाँधों, उद्योगों का वैश्वीकरण, सांप्रदायिक हिंदू फासीवाद के बढ़ते खतरे पर अपने विचार प्रकट करता है, सरकार उसे राष्ट्र विरोधी करार देती है। सबसे अजीब बात तो ये कि उन्होंने ये तक दावा कर दिया कि 20वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद की अवधारणा के कारण ही आतंकवाद का जन्म हुआ और कई नरसंहार हुए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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