होली का माहौल हो और जोगीरा न हो तो कैसे चलेगा। जोगीरा को बनारस में कबीरा भी कहते हैं। जोगीरा अवधी, भोजपुरी, बनारसी काव्य नाटक की एक मिश्रित विधा होती है, इसमें हास्य और व्यंग्य का ज़बरदस्त पुट होता है।
जोगीरा आमतौर पर भारतीय काव्य विधा का अव्यवसायिक संकलन है। इसमें हिंदी, उर्दू, भोजपुरी, अवधी, राजस्थानी आदि पचास से अधिक भाषाओं का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। यह मुख्यतः चैत्र मास में होली के अवसर पर ही गाया जाता है। असल में होली खुलकर और खिलकर खेलने और कहने की परंपरा भी है। यही कारण है जोगीरे की तान में आपको सामाजिक विडम्बनाओं और विद्रूपताओं पर तंज देखने को मिल जाता है। चुनावी माहौल में तो राजनीति भी अछूती नहीं रहती। होली की मस्ती के साथ जोगीरा अपने आसपास के समाज पर भी चोट करता हुआ नज़र आता है।
जोगीरा की शुरुआत कब हुई, इसका ठीक-ठीक कोई इतिहास नहीं मिलता। फिर भी ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति जोगियों की हट साधना, वैराग्य और उलटबासियों का मजाक उड़ाने से शुरू होकर सामाजिक विद्रूपताओं पर चोट करने तक पहुँचा। ढोलक और मजीरे की तान पर अब तो ताशे भी खूब बजने लगे हैं जिसकी ताल पर मूलतः इसे ग्रुप में गाया जाता है।
आमतौर पर वसंत पंचमी से शुरू होकर चैत माह के आगमन तक ढोलक, झाल, झांझ, करताल जैसे वाद्य यंत्रों की सुमधुर धुन पर कभी हर शाम गाँवों के मंदिरों पर ग्रामीण टोली बनाकर होली के गीतों की तान छेड़ देते थे। देर रात तक चलने वाले इस आयोजन में धीरे-धीरे गाँव के और लोग जुड़ते जाते थे। वाद्य यंत्रों को बजाने और गाने वाले भी बीच में बदलते जाते थे। लेकिन यह सुर लहरी मध्य रात्रि के बाद तक जारी रहती थी। फागुन के गीत, जोगीरा, चैतावर, धमार इत्यादि के माध्यम से रात परवान चढ़ती थी। होली वाले दिन तो इस तरह की महफ़िल पूरे परवान पर रहती थी।
इसमें प्रश्नोत्तर शैली भी पाई जाती है, जिसके माध्यम से निर्गुण को समझाने के लिए गूढ़ अर्थयुक्त उलटबासियों का सहारा लेने वाले काव्य की प्रतिक्रिया में उन्हें रोजमर्रा की घटनाओं से जोड़कर रचा जाता है। वैसे परंपरागत जोगीरा काम-कुंठा के विरेचन का साधन भी है। इसमें एक तरह से काम अंगों और प्रतीकों का भरमार है। संभ्रांत और प्रभुत्व वर्ग को जोगीरा के बहाने गरियाने और उन पर गुस्सा निकालने का यह निराला ही तरीका होता है। यह एक तरह का विरेचन ही है। जिसके बाद गदगद हो, मनुहार करते हुए कह भी दिया जाता है बुरा न मानो होली है।
होली का जोगीरा हो या सामान्य बातचीत। यह काशीवासियों को ख़ास बनाता है। कबीरा और जोगीरा कहे जाने का जिन्हें इतिहास पता होगा, वे लोग स्वाभाविक रूप से ज्यादा मजा ले सकेंगे। सामान्य जोगीरा में सीधे-सादे रूप में बात कही जाती है। तीसरे लाइन में सम्पुट या मुखड़े के रूप में सा रा रा कहा जाता है।
होली है और होली में अगर कुछ मस्ती ना हो तो रंग कुछ फीका लगने लगेगा तो आइए, पढ़िए कुछ खास जोगिरा… लेकिन हाँ, बुरा न मानिएगा, होली है।
सा रा रा रा रा रा रा रा रा, जोगीरा सा रा रा रा, बा भाई बा, बा खिलाड़ी बा…..
सामान्य जोगीरा —
हिंदुस्तानी सेना को जब आ जाता है तैश,
उड़े हवा में हाफिज वाफिज, पानी माँगे जैश…
जोगीरा सा रा रा रा रा।
जब-जब भारत पर मंडराए पाकिस्तानी बाज
घर में घुस कर ठोंके उनको अभिनंदन जाँबाज़…
जोगीरा सा रा रा रा रा।
ट्वीट-ट्वीट कर सबको घेरें, करते सबको तंग
देख नतीजे गठबंधन के फिर खुद भी रह गए दंग
जोगीरा सा रा रा रा रा।
पप्पू हारे, माया हारी, हार गए अखिलेश,
साहब अब तो नाचो गाओ, गायब हुआ कलेश
जोगीरा सा रा रा रा रा।
कहीं रंग है, कहीं भंग है, कहीं मचा हुड़दंग
मफलर वाले सीएम साहब, झेल रहे हैं व्यंग्य
जोगीरा सा रा रा रा रा।
रुक गया हाथी, भटका पंजा, साइकल चकनाचूर
खिला कमल है, हो गई होली, वोट मिला भरपूर
जोगीरा सा रा रा रा रा।
मोदी जी ने अलग ही ढंग से, ऐसा किया कमाल
अबकी होली, भगवा होली, नहीं चली कोई चाल
जोगीरा सा रा रा रा रा।
रोए मुलायम, आजम रोए, बचा ना कोई काम
अब तो भगवा राज हो गया, बोलो जय श्रीराम…
जोगीरा सा रा रा रा रा।
नतीजों के बाद पीएम मोदी के खास भाषण पर जोगीरा…
साहब बोले जीत है सबकी, खेलो होली संग
नहीं रहा अब कोई पराया, पंजा हो गया तंग
जोगीरा सा रा रा रा रा।
एक जोगीरा कुछ ‘भटके’ हुए नौजवानों के नाम…
इधर चीन है, उधर पाक और अंदर नक्सलवाद
भारत माँ को गाली देकर ये करते बकवास
जोगीरा सा रा रा रा रा।
पूँछ पटक कर कुक्कुर खाए, चाट-चाट बिलार
सफाचट्कर माल्या खाया, खोज रही सरकार
जोगीरा सा रा रा रा।
सावन मास लुगइया चमके, कातिक मास में कुक्कूर
फागुन मास मनइया चमके, करे हुकुर-हुकुर
जोगीरा सा रा रा रा रा।
बनवा बीच कोइलिया बोले, पपीहा नदी के तीर
अँगना में भउजइया डोले, जैसे झलके नीर
जोगीरा सा रा रा रा रा।
बुआ रोए भतीजा रोए, रोए केजरीवाल
चौराहे पर पाकेट फाड़कर, राहुल करे बवाल
जोगीरा सा रा रा रा।
हाथी भटका पंजा भटका साइकिल चकना चूर
खिला कमल है शान निराली, ख़ुशी मिले भरपूर
जोगीरा सा रा रा रा।
सवाल-जवाब के फॉर्म में जोगीरा
चुनावी माहौल हो और बनारस का बात हो तो देखिए जोगीरा में भी बनारसी क्या-क्या कह जाते हैं। एक से बढ़ कर एक चुनावी तंज, सवाल-जवाब की श्रृंखला में नीचे वीडिओ में पूरा आनन्द उठाइए जोगीरा का, बस ध्यान रहे बम-बम भोले की काशी में रंग-अबीर लगा के कहते- बुरा न मानो होली है।
ताल द भइया, मोदी का चल रहा भौकाल रे, विपक्षी का चेहरा हुआ लाल लाल रे…..
सवाल- कोई कहत बा आलू से सोना बनाइब
कोई कहत बा 15 लाख ले आइब
जवाब-
आलू से सोना तू जईहा बनइबा
वही दिन पी एम क कुर्सी तू पइबा
15 लाख जबले सबके न दिआइब
पीएम के पद से न उनके हटाइब