Friday, November 22, 2024
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कोलकाता की झुग्गियों से भोजपुरी के फलक तक, असाधारण है मृदुभाषी निरहुआ का सफर और व्यक्तित्व

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास जताने वाले निरहुआ को आजमगढ़ से उतारा है। अब देखना यह है कि भोजपुरी सिनेमा के फलक पर चमक रहे निरहुआ राजनीति में कहाँ तक पहुँचते हैं।

दिनेश लाल यादव निरहुआ- एक ऐसा नाम जिसके इर्द-गिर्द पिछले एक दशक से पूरी भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री घूमती है। उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में जिन्होंने निरहुआ की फ़िल्म नहीं देखी है, उन्हें भी उनका नाम पता है। निरहुआ के स्टारडम का आलम यह है कि अगर यूपी-बिहार में वो कहीं निकल जाते हैं तो वहाँ उतनी ही भीड़ जमा होती है, जितनी अजय देवगन जैसे बड़े बॉलीवुड अभिनेताओं को देखने के लिए आमतौर पर जुटा करती है। अगर हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री में ख़ान तिकड़ी और अक्षय, अजय हैं, मलयालम में मोहनलाल, मामूट्टी और जयराम हैं, तमिल में रजनीकांत, कमल हासन और विजय हैं, पंजाबी में जिमि शेरगिल और दिलजीत दोसांझ हैं, मराठी में रितेश देशमुख और स्वप्निल जोशी हैं, तेलुगु में महेश बाबू, पवन कल्याण और एनटीआर हैं, कन्नड़ में सुदीप और उपेंद्र हैं, तो भोजपुरी इंडस्ट्री में भी मनोज तिवारी और रवि किशन के बाद निरहुआ ही निरहुआ हैं।

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भोजपुरी फ़िल्मों की एक ख़ासियत रही है कि यहाँ आमतौर पर वही बड़ा अभिनेता बनता है, जिसकी आवाज़ अच्छी हो और जो अच्छा गा सकता हो। मनोज तिवारी ने भी छठ के गीतों के साथ अपना सफ़र शुरू करते हुए ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’ के रूप में पहली ब्लॉकबस्टर भोजपुरी फ़िल्म दी। काफ़ी तेज़ी से सीढियाँ चढ़ते हुए तिवारी ने अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों तक से भी भोजपुरी सिनेमा में पदार्पण करवाया। रवि किशन ने अपनी दमदार आवाज़ के कारण मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई। पवन सिंह भी गायक से अभिनेता बने। निरहुआ को जानने जानना होगा कि ‘बिरहा’ क्या होता है?

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बिरहा यूपी-बिहार के गाँवों में मनोरंजन का एक माध्यम है जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। बिरहा भोजपुरी ‘Folk Music’ है, जिसे गानेवाले लोग पीढ़ियों से इसी से अपना व्यवसाय चलाते आ रहे हैं। वैसे तो गाँवों में बिरहा ज्यादा प्रसिद्ध है और शादी-विवाह के मौसमों में आज भी इसका प्रयोग होता है लेकिन शहरों में अब यह मंदिरों में होने वाले पूजा-पाठ कार्यक्रम तक ही सीमित है। ऐसे ही एक बिरहा खानदान गाज़ीपुर में था। इसे बिरहा घराना कह लीजिए। नहीं, निरहुआ के पिता बिरहा गाकर गुज़र-बसर नहीं करते थे। लेकिन हाँ, इसका खानदान ज़रूर बिरहा परिवार से था। निरहुआ का बचपन तो कोलकाता की झुग्गियों में ही बीता।

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कोलकाता की गलियों में बड़े हो रहे निरहुआ के पिता उधर ही एक फैक्ट्री में काम करते थे। यूपी-बिहार का ये वो दौर था, जब हर घर से किसी न किसी को कमाने के लिए पंजाब, गुजरात, बंगाल और दिल्ली जाना ही जाना पड़ता था। बेरोज़गारी की चरम सीमा यूपी-बिहार ने देखी है। शिक्षा से वंचित लोगों को कोई इज़्ज़त वाली नौकरी भी नहीं मिलती थी। इन राज्यों के कॉलेजों की डिग्रियों की बात ही छोड़ दीजिए। उनका मोल किसी काग़ज़ के टुकड़े से ज़्यादा नहीं था। संघर्ष के उस दौर में निरहुआ के पिता भी बंगाल में थे। कोलकाता के उन्हीं कस्बों में स्थित विद्यालय में निरहुआ की शिक्षा-दीक्षा भी पूरी हुई। अब आपको बताते हैं कि हमने बिरहा का ज़िक्र क्यों किया?

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विजय लाल यादव अपने इलाक़े में लोकप्रिय बिरहा गायक हुआ करते थे। उनके भाई प्यारे लाल यादव गाने लिखकर उनका साथ दिया करते थे। ये दोनों अभी भी हैं, लेकिन फ़िल्मों में ज़्यादा सक्रिय हैं। ये दोनों ही निरहुआ के चचेरे भाई हैं। विजय लाल को ‘बिरहा सम्राट’ भी कहा जाता था। विजय-प्यारे की केमिस्ट्री से लोगों का ख़ूब मनोरंजन होता था। निरहुआ की अधिकतर फ़िल्मों की सफलता में इन दोनों की म्यूजिकल जुगलबंदी का हाथ हुआ करता है, आज भी। जब भोजपुरी सिनेमा से मनोज तिवारी युग जा रहा था और वो अलग अलग प्रोजेक्ट्स में व्यस्त हो रहे थे, ऐसे में भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में एक शून्य पैदा हुआ, जिसे भर पाना सबके बूते की बात नहीं थी।

बिहार में आज भी वो कहानी चलती है कि कैसे ‘ससुरा बड़ा पइसा वाला’ के समय 21वीं सदी के शुरुआती दौर में गाँव के घर-घर से औरतें झोला भर-भर कर दूर कस्बों और शहरों में स्थित सिनेमाघरों में मनोज तिवारी को देखने गई थीं। भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री में ऐसा क्रेज फिर कभी देखने को नहीं मिला। लेकिन, 2008 में ऐसा कुछ हुआ, जिस से भोजपुरी फ़िल्म इंडस्ट्री की दशा एवं दिशा बदल गई। हालाँकि, बॉक्स ऑफिस और कंटेंट के मामले में भोजपुरी सिनेमा आज कन्नड़ वालों से भी काफ़ी पीछे है लेकिन इसमें भोजपुरी सिनेमा में कई गायकों व अभिनेताओं द्वारा द्विअर्थी अश्लील गानों और डायलॉग्स का योगदान था।

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2008 में एक ऐसा गाना आया, जिसने भोजपुरी बोलने वालों को फिर से अपनी पहचान पर घमंड खाने का मौक़ा दिया। इसके बोल कुछ इस तरह थे:

“भोजपुरिया जवान, नाही सहेला गुमान…
बा ई बात के चारु ओरी हाला…
निरहुआ रिक्शावाला… निरहुआ रिक्शावाला…”

इसका अर्थ हुआ कि भोजपुरी बोलने वाले लोग किसी की गीदड़-भभकी को बर्दाश्त नहीं करते और इस बात की चारो तरफ चर्चा है। इसके बाद उस फ़िल्म का टाइटल- निरहुआ रिक्शावाला। जैसे आज नरेंद्र मोदी के अभियान से चौकीदारों की एकाएक चर्चा बढ़ गई है और उन्हें अपने अस्तित्व को नए सिरे से गढ़ने और अपनी महत्ता का एहसास हो रहा है, थी वैसा ही कुछ आज से एक दशक पहले हुई था। बॉलीवुड से लेकर भोजपुरी तक बड़े अभिनेताओं ने ऑटो ड्राइवर के रोल तो किए थे लेकिन रिक्शा वाला का रोल शायद ही किसीने इस तरह मुख्य रूप से किया हो। कहते हैं, इस फ़िल्म के रिलीज की ख़बर सुनते ही रिक्शा वालों ने इसे थिएटर में देखने के लिए पैसे बचाने शुरू कर दिए थे।

यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ दिनेश लाल यादव निरहुआ

इसके बाद निरहुआ की एक से एक फ़िल्म आई। उन्होंने भोजपुरी बोलने वाले दर्शकों के एक ऐसे वर्ग को आकर्षित किया जो डाली था, ग़रीब था, माध्यम वर्ग का युवा था, यूपी-बिहार से बाहर नौकरी कर रहा समूह था। मनोज तिवारी के गाँव वाले इमेज को एक क़दम आगे ले जाते हुए निरहुआ ने अपनी फ़िल्मों को उन्हें विलेन दर्शाया जो विधायक थे, मुखिया थे, दबंग थे, औरतों से अच्छा व्यवहार नहीं करते थे और ग़रीबों का शोषण करते थे। विलेन का एक भरा-पूरा खानदान होता था, जिसके क्रूर सदस्यों को एक-एक कर निरहुआ द्वारा ‘सैंत’ दिया जाता था। उनकी प्रेमिका किसी दबंग की बहन-बेटी ही होती थी, जिसके लिए वो कुछ भी कर गुज़रते थे।

कपिल शर्मा के शो में निरहुआ, आम्रपाली और खेसारी लाल

भोजपुरी सिनेमा बॉलीवुड के 80 के दशक को फिर से जी रहा था और दर्शक उसमे पूरी रुचि ले रहे थे। अगर औरतें मनोज तिवारी की ‘मंगलसूत्र’ देखने जा रही थी तो बच्चे-बूढ़े ‘निरहुआ हिन्दुस्तानी’ देख कर तालियाँ पीट रहे थे। ये फ़िल्म सीरीज आज भी चल रही है। अब निरहुआ का अपना अलग प्रोडक्शन हाउस है, उनकी फ़िल्म ‘बॉर्डर’ को बॉक्स ऑफिस पर अच्छी सफलता मिली है और आगे भी वो फ़िल्म निर्माण में और सक्रिय होने वाले हैं। निरहुआ अपनी फ़िल्मों के प्रोमोशन के लिए भी अलग-अलग तरीके आज़माते हैं कभी वो मोतिहारी में क्रिकेट मैच खेलने निकल जाते हैं तो कभी साइकल से सैर पर निकल लेते हैं। बिहार के इन इलाक़ों में उनके पहुँचने की ख़बर सुनते ही हज़ारों की भीड़ जुटती हैं, जिनमे युवतियाँ भी होती हैं।

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निरहुआ को अपनी माँ से ख़ास लगाव है। एक बार जब एक फ़िल्म की शूटिंग कर के घर पहुँचे तो उनकी माँ से उनसे कहा ‘ऐ बबुआ, तू हेतना ज्यादा पैसा कमालिस लेकिन अभियो फाटल जीन्स काहे पेन्हले बारे?‘ अर्थात, तुम इतना ज्यादा रुपया कमाते हो, फिर भी तुमने ये फ़टी हुई जींस क्यों पहन रखी है? दरअसल, आजकल ‘Ripped Jeans’ का चलन है और निरहुआ इसे ही पहने हुए थे, जिसे उनकी माँ से फटा कपड़ा समझ लिया। इस वाकये से आप समझ सकते हैं कि आज के दौर में भोजपुरी के जुबली स्टार कहा जाने वाला व्यक्ति कितनी सीधी और ज़मीन से जुड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि से आता है। 2007 में निरहुआ ही थे, जिन्होंने अंतरर्राष्ट्रीय स्तर पर शो और कार्यक्रम कर के विदेश में रह रहे उत्तर भारतीयों को भोजपुरी सिनेमा के नए उत्थान से रूबरू करवाया था।

निरहुआ के पुराने दिन, बिरहा स्टाइल के गाने

अपनी फ़िल्मों को लोकप्रियता मिलते देख निरहुआ ने कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम किए, विदेशी डिस्ट्रीब्यूटर्स से बात कर अपने गानों को विदेशों में भी रिलीज करवाया। ये सब आज से एक दशक से भी पहले की बात है। अब निरहुआ भोजपुरी की पहली वेब सीरीज ‘हीरो वर्दी वाला’ की रिलीज के लिए तैयार हैं और जल्द ही एकता कपूर के साथ ये उनका पहला कोलैबोरेशन है। आज प्रति फ़िल्म 40 लाख रुपया लेने वाला कभी पाँच भाई-बहनों के साथ एक छोटे से घर में रहा करता था। निरहुआ भोजपुरी स्टार हैं, आप उनका मज़ाक बना सकते हैं लेकिन आपको पता होना चाहिए कि वो भोजपुरी दर्शकों को वो देते हैं, जो उन्हें चाहिए। अब निरहुआ ने भोजपुरी से अश्लीलता मिटाने का संकल्प लिया है और उन्होंने इसके लिए सभी अभिनेताओं-गायकों सहित ख़ुद को भी दोष दिया।

मोतिहारी में बॉर्डर के प्रमोशन के लिए क्रिकेट मैच खेलने पहुँचे निरहुआ, भीड़ के कारण मैच पूरा नहीं हो सका

असल ज़िन्दगी में निरहुआ कितने सीधे-सादे हैं, ये देखने के लिए कपिल शर्मा के वो एपिसोड्स देखें, जिनमें भोजपुरी कलाकारों का जमावड़ा लगा था। जहाँ एक तरफ मनोज तिवारी वक्ता हैं, विचारों को आवाज़ देना जानते हैं, निरहुआ आज भी एक बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं, उन्हें तुरंत प्रतिक्रया देना नहीं आता, वो कई स्टारों की तरह बड़बोले नहीं हैं और वाद-विवाद में उतनी रूचि नहीं रखतेव् हालाँकि, समय और स्टारडम बढ़ने के साथ उन्होंने सार्वजनिक मंचों पर खुल कर बोलने की कला धीरे-धीरे विकसित कर ली है। वो बिग बॉस का भी हिस्सा रह चुके हैं, उसमे उनपर ज्यादा ड्रामेटिक होने के आरोप लगे थे। उन्होंने बताया था कि वो बिग बॉस में इसीलिए गए थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उनके बारे में जान सकें।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विश्वास जताने वाले निरहुआ को आजमगढ़ से उतारा है। अब देखना यह है कि भोजपुरी सिनेमा के फलक पर चमक रहे निरहुआ राजनीति में कहाँ तक पहुँचते हैं। आजमगढ़ से उनका मुक़ाबला यूपी के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से है। अखिलेश से उनके अच्छे रिश्ते हुआ करते थे, ऐसे में ये मुक़ाबला देखने दिलचस्प होगा।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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