Sunday, May 5, 2024
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मोदी के बीस साल: 2001 में पहली शपथ, तीन विधानसभा, दो लोकसभा चुनाव; 18 साल मीडिया का एजेंडा झेला

बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के मुखिया के रूप में अपने 20वें वर्ष में प्रवेश कर गए। सोशल मीडिया पर उनके पहले शपथग्रहण का वीडियो वायरल हो रहा है और लोग इसे खासा पसंद कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के अस्वस्थ होने और भाजपा में बगावत होने के बाद राज्य की कमान संभाली थी और उसके बाद से कभी हार का मुँह नहीं देखा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकारों का नेतृत्व करने के मामले में अपने 20वें वर्ष में प्रवेश कर गए हैं। इन 20 सालों में नरेंद्र मोदी ने पहले गुजरात में राज्य सरकार का नेतृत्व किया और 6 वर्षों से वो देश की केंद्र सरकार के मुखिया हैं। इस दौरान उन्होंने एक राजनेता, एक मुखिया और एक व्यक्ति के रूप में कई आदर्श स्थापित किए और दुनिया भर में पहले गुजरात और फिर भारत का डंका बजाया। नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 7, 2001 को बतौर गुजरात सीएम पहली बार शपथ ली थी

इस तरह से बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के मुखिया के रूप में अपने 20वें वर्ष में प्रवेश कर गए। सोशल मीडिया पर उनके पहले शपथग्रहण का वीडियो वायरल हो रहा है और लोग इसे खासा पसंद कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल के अस्वस्थ होने और भाजपा में बगावत होने के बाद राज्य की कमान संभाली थी और उसके बाद से कभी हार का मुँह नहीं देखा।

भूकंप और दंगों से जूझ रहे गुजरात को उन्होंने दुनिया भर में बिजनेस हब के रूप में स्थापित किया। नरेंद्र मोदी ने 2002 में समय पूर्व चुनाव कराने का निर्णय लिया और सोनिया गाँधी द्वारा उनके खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों के बावजूद पूर्ण बहुमत पाने में कामयाब रहे। इसके बाद 2007 और फिर 2012 में उन्होंने गुजरात विधानसभा का चुनाव जीता। 2014 में उनके नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। 2019 में वो और बड़े बहुमत से लौटे।

नरेंद्र मोदी ने जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तब वो विधायक भी नहीं थे। इसके कुछ ही महीनों बाद उन्होंने राजकोट वेस्ट से वजुभाई बाला द्वारा सीट खाली करने के बाद विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर जीते। इसी तरह प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने संसद का मुँह भी नहीं देखा था। वो पहली बार सांसद बने और फिर देश की कमान संभाली। नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री बनने से पहले कोई सार्वजनिक पद नहीं संभाला था।

हालाँकि, इस दौरान सोनिया गाँधी द्वारा उन्हें ‘खून का सौदागर’ कहे जाने से लेकर राहुल गाँधी द्वारा ‘नीच’ कहे जाने तक, उन्होंने कई विपक्षी नेताओं की आपत्तिजनक टिप्पणियों को काफी शालीनता से झेला। एक समय था जब अंग्रेजी अच्छी तरह न आने के कारण राजदीप सरदेसाई ने उन्हें अपने शो में नहीं बुलाया था और अख़बार उनके इंटरव्यू लेकर भी प्रकाशित नहीं करते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी ने इन चीजों से निपटने में कुशलता दिखाई और शालीन तरीके से सारी चीजों को बर्दाश्त किया।

आज वही मीडिया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोलते हैं तो उनके सम्बोधन का लाइव प्रसारण करने को मजबूर होता है, उनके भाषण को लगातार ट्वीट किया जाता है और उनके इंटरव्यू के लिए बेचैन रहता है। नरेंद्र मोदी मेनस्ट्रीम मीडिया नहीं, बल्कि सीधे जनता से संवाद करते हैं और रेडियो के माध्यम से अपनी ‘मन की बात’ रखते हैं। उनके सोशल मीडिया एकाउंट्स पर करोड़ों फॉलोवर्स हैं और वो दुनिया के सबसे ज्यादा फॉलोवर्स वाले नेताओं में से एक हैं।

नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में पहली बार गुजराती में शपथ ली थी। उन्होंने चुनावी घोषणापत्रों को सरकार के फैसलों का आधार बनाया। उन्होंने दशकों पुराने विवादों का निपटारा किया और साथ ही अनुच्छेद-370, तीन तलाक और राम मंदिर सहित कई मुद्दों पर जनता की माँगों को पूरा किया। कोरोना वायरस संक्रमण आपदा से जूझ रहे देश का वो कुशलता से नेतृत्व कर रहे हैं और हम सब आशा करते हैं कि उनके नेतृत्व में भारत इस महामारी को भी मात देगा।

किसी भी नेता के लिए उसकी छवि ही सबकुछ होती है। एक बार दाग लग गया तो उबरना मुश्किल होता है। मोदी पर, बिना किसी सबूत के, लगातार नकारात्मक प्रोपेगेंडा चलाया जाता रहा। जिस ट्रेन की बॉगी में 59 हिन्दू कारसेवकों को जिंदा जला दिया गया, उसके बाद के दंगों का आरोप भी हिन्दुओं पर ही लगा, और अंततः मुख्यमंत्री मोदी पर जा कर चिपक गया। इन सबके बावजूद, सारी एजेंसियों को मोदी के पीछे लगा देने के बाद भी साबित कुछ नहीं हुआ।

समानांतर तरीके से वामपंथी मीडिया गिरोह लगातार एक ही बात रट-रट कर मोदी के खिलाफ अपना एजेंडा चला कर उन्हें कभी हिटलर, कभी दरिंदा, कभी राक्षस कहा जाता रहा। मोदी का इस युद्ध से बाहर आना बताता है कि साँच को आँच नहीं। वरना कॉन्ग्रेस के पास दस साल सत्ता थी, और वो चाह कर भी कुछ साबित नहीं कर पाए। ऐसे में एक ही बात शाश्वत सत्य लगती है कि लोगों तक विकास पहुँचाने और उनके जीवन में परिवर्तन लाने का माध्यम बनना ही आपको सफल राजनेता बनाता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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