कॉन्ग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के नाते देश, समाज और राजनीतिक समीकरणों को बहुत अच्छे से पहचानती है। कब, कहाँ और कैसे कोई हलचल पैदा कर के राजनीतिक लाभ उठाया जाए, ये इस बजुर्ग दल को खूब आता है। अवार्ड वापसी हो, लोकतंत्र की हत्या जैसे शब्दों को जनमानस के बीच स्थापित करना हो, या फिर समाज की संरचना में उथल-पुथल पैदा करनी हो, कॉन्ग्रेस इन सभी मामलों में हर पार्टी से मीलों आगे है।
लेकिन इन सब होशियारी के बीच ये दल अक्सर भूल जाता है कि समय और समाज अपनी आवश्यकताओं के अनुसार करवट लेता है। सत्ता और राजनीति के नशे में डूबी कॉन्ग्रेस से इस तरह की गलती हो जाना पिछले कुछ समय में बहुत ही स्वाभाविक प्रक्रिया हो गया है।
हमारे सेक्युलर देश में हिन्दुओं की आस्था के प्रतीकों, विशेषकर गाय को लेकर वामपंथियों से लेकर कॉन्ग्रेस, आतंकवादी संगठन और तमाम अन्य राजनीतिक दल हमेशा ही हमलावर रहे हैं। पुलवामा हमले में भी हमने देखा कि जिहादी फिदायीन हमलावर अहमद डार ने भी हमले से पहले गोमूत्र पीने वाले हिन्दुओं के प्रति घृणा व्यक्त की थी।
विगत वर्ष मई की ही बात है जब केरल के कन्नूर में कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने हिन्दुओं की आस्था को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से आम सड़क पर ही गाय के बछड़े को काटकर ‘बीफ पार्टी’ का जश्न मनाया था। इस घटना के वीडियो बनाए गए, सोशल मीडिया पर लोगों को दिखाए गए और हिन्दुओं पर मानसिक बढ़त बनाने जैसी थीम रची गईं।
यह सब बहुत ही शानदार तरीके से और गौरव के साथ कॉन्ग्रेस कार्यकर्ताओं ने मीडिया में दिखाया। लेकिन तब शायद उन्हें आने वाले समय का आभास नहीं था। इस घटना को लगभग एक वर्ष होने वाला है और इस एक वर्ष के भीतर ही कॉन्ग्रेस के युवा अध्यक्ष राहुल गाँधी ने जनेऊ भी धारण किया, अमरनाथ यात्रा का भी फोटोशॉप किया, समय और परिस्थिति के अनुसार हिन्दू प्रतीकों के साथ खूब तस्वीरें खिंचवाते नजर आते हैं, उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक के मंदिर का भ्रमण और धोती पहनना सीखने तक के उपक्रम राहुल गाँधी को करने पड़े हैं।
लेकिन आज का वोटर बेहद जागरूक है। आज के वोटर के मस्तिष्क में यह बीजारोपण कर पाना कि इस देश में यदि राजीव गाँधी अपने कंधे पर ढोकर कम्प्यूटर ना लेकर आते तो हम आज कम्यूटर विहीन रहते, बहुत ही मुश्किल कार्य है। अब यह उतना आसान नहीं रह गया है जितना आजादी के बाद से ही कॉन्ग्रेस समझती आई है।
आज का वोटर जानता है कि दलित अगर आज भी दलित है तो उसके पीछे कॉन्ग्रेस की नीतियाँ ही जिम्मेदार हैं। वोटर जानता है कि जिन झुग्गी-झोंपड़ियों में वो आज जीवन बिताने के लिए मजबूर है, वो कॉन्ग्रेस का ही ‘आशीर्वाद’ और देन है। उसका दैनिक जीवन आज भी उसी स्तर का है, जो उनके 3 पीढ़ियों पहले के लोग जीने को मजबूर थे, शायद आजादी के बाद से ही।
नेहरू आए, लोकतंत्र और संस्थाओं का खुला मजाक बनाकर संविधान से हर संभव छेड़खानी कर के लोह महिला बनी इंदिरा गाँधी भी आई, बोफोर्स घोटाले के प्रमुख अभियुक्त भी आए और यहाँ तक कि अब इंदिरा गाँधी की तरह ही दिखने वाली एक और गाँधी भी अवतरित हो चुकी हैं, लेकिन उस वोटर का जन-जीवन आज भी वही है, जिसे कॉन्ग्रेस ने हमेशा वोट बैंक ही बने रहने पर मजबूर किया।
इस ‘बीफ पार्टी प्रकरण’ के बाद कॉन्ग्रेस तुरंत घबराहट में भी नजर आई थी। हालाँकि, पहले कॉन्ग्रेस ने आरोपितों के कॉन्ग्रेस से जुड़े होने की बात को खारिज कर दिया था, लेकिन बाद में पता चला कि मामले का मुख्य आरोपित न सिर्फ कॉन्ग्रेस का कार्यकर्ता था, बल्कि वो कॉन्ग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव भी लड़ चुका था। यही नहीं, इस बीफ पार्टी के मुख्य अभियुक्त भी कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के करीबी निकल आए।
दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता तजिंदर पाल बग्गा ने चुनाव आयोग की वेबसाइट से प्राप्त जानकारी के बाद बताया था कि गोहत्या करने वाला कॉन्ग्रेसी कार्यकर्ता रिजील मुकुत्टी केरल विधानसभा का चुनाव लड़ चुका था। सड़क पर बीफ पार्टी मनाने वाला कॉन्ग्रेस नेता मुकुट्टी साल 2011 के केरल विधानसभा चुनाव में थालेसरी सीट से चुनाव लड़ चुका था।
कॉन्ग्रेस लोकसभा चुनाव के लिए सर से पाँव तक का जोर लगाती नजर आ रही है। इस बुजुर्ग दल पर अपनी इमेज से लेकर अपने एकमात्र प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार यानी, अध्यक्ष राहुल गाँधी तक की इमेज का मेकओवर करने का बहुत बड़ा दबाव है।
विगत कुछ समय में देखा गया है कि ‘हिंदी’ और ‘हिंदुत्व’ को घृणा की दृष्टि से देखने वाले लोगों ने धर्म की शरण ली है। बॉलीवुड से लेकर राजनीतिक दल इस सनातन धर्म की छाया से जुड़ने का प्रयास करते नजर आने लगे हैं। यह बदलाव एक ढोंग ही सही, लेकिन देखने को मिला है। इसकी अच्छी बात यह है कि यह बिना किसी धमकी और प्रताड़ना के हुआ है।
लेकिन वोटर को समझना होगा कि वो महज एक वोट बैंक नहीं बल्कि समाज की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। उसे समझना होगा कि एक चिरयुवा अध्यक्ष की धोती को ढोती हुई तस्वीर उसका हित नहीं बल्कि उसे सिर्फ गुमराह कर के अपना उल्लू सीधा करना चाहती है। वोटर का मुद्दा हमेशा विकास और उसके स्वयं के सामाजिक जीवन में बदलाव पर आधारित होना चाहिए, इसके लिए कम से कम 3 पीढ़ियों की तुलना अवश्य करनी चाहिए, यानी जब नेहरू थे, जब इंदिरा थी, जब राजीव थे और जब मोदी है।
Another Video from Kerala :
— Chowkidar Tajinder Pal Singh Bagga (@TajinderBagga) May 29, 2017
Sidhikh Panthavoor,Secretary, Youth Congress Distribiting Cow meat after Killing Gau Mata pic.twitter.com/stIi3CJ625