लद्दाख क्षेत्र में उत्तर-पूर्वी इलाके को जोड़ने के लिए सामरिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण मार्ग लेह-काराकोरम रोड बनकर तैयार हो चुकी है। इसे वर्तमान मोदी सरकार की एक बहुत बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखी जा रहा है। इस रोड के बन जाने से साल में बारहों महीने ये इलाका बाकी क्षेत्र के संपर्क में रहेगा। अक्टूबर 2017 को रक्षामंत्री सीतारमण ने अपनी सियाचिन यात्रा के दौरान सीमावर्ती क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा की और लेह को कराकोरम से जोड़ने वाले इस पुल के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया था। यह पुल सामरिक रूप से महत्वपूर्ण दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी परिक्षेत्र में सैन्य परिवहन के लिए कनेक्टिविटी उपलब्ध कराएगा।
255 km लंबे दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी [Darbuk-Shayok-Daulat Beg Oldie (DS-DBO)] सेक्शन में 37 ब्रिज बनाए गए हैं। 20 अप्रैल को इस रोड पर पहली बार एक एक्पीडिशन मोटरसाइकिल काफिले ने लेह से सफर शुरू कर काराकोरम दर्रा पहुँचकर फिर लेह वापसी करते हुए अपना सफर पूरा किया। दारबुक से ऊपर काराकोरम पहाड़ी श्रंखला के बीच ये रोड 14,000 फीट की ऊँचाई का सफर तय करती है।
आजादी से पहले चीन और भारत के बीच महत्वपूर्ण ट्रेड रूट था ये मार्ग
इन दिनों ये मार्ग व्यावसायिक मामलों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लेकिन आजादी से दो दशक पहले तक इस रोड को लद्दाख और चीन के काशगर प्रांत के बीच ट्रेड के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसे ज्यादातर पंजाबी मर्चेंट्स इस्तेमाल करते थे।
कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान असफल हुआ था इस रोड-निर्माण का प्रयास
वर्ष 2000 से 2012 में कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान यहाँ पर ₹320 करोड़ की लागत से DS-DBO section पर रोड तैयार की गई थी। उस समय यह खराब डिज़ाइनिंग के चलते श्योक नदी के बहाव में बह गया था। लेकिन इस बार 160 km लंबा हिस्सा दोबारा बेहतर डिजाइन के साथ तैयार किया गया और सफलतापूर्वक तैयार कर लिया जा चुका है।
अब मिलिट्री रसद पहुँचाने में नहीं होगी मुश्किल
पास के आखिरी 235 km के हिस्से में श्योक से काराकोरम पास के बीच कोई आबादी नहीं बसती है। सिर्फ श्योक में करीब 25 परिवार रहते हैं। इससे आगे सिविलियन आबादी को रहने की इजाजत नहीं है। इस रोड के बनने से चीन अधिकृत जम्मू कश्मीर और भारत के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत का नियंत्रण और बेहतर हो पाएगा। इसी क्षेत्र में भारत और चीन की सेनाओं के बीच 2013 और 2014 में एलएसी के हद को लेकर आपस में तनाव हो चुका है। रोड बनने से पहले इस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना के लिए भारी रसद पहुँचाना संभव नहीं हो पाता था, लेकिन अब ये इलाका वर्षभर सम्पर्क में बना रहेगा। ऐसे में जाहिर है, ये भारत की सामरिक शक्ति के लिए बड़ी उपबल्धि है।