Monday, November 25, 2024
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महाराष्ट्र में कोरोना मरीजों की ‘सेवा’ करने वाले कर्मी वेतन को तरसे, राज्य की ठाकरे सरकार पर है करोड़ों का बकाया

एक अधिकारी ने बताया, “हमें विक्रेताओं के कॉल आते हैं। उन्हें उस खाने के बदले पैसे ही नहीं मिले जो उन्होंने मरीजों को दिया। दवाइयों का भी बकाया अब तक नहीं दिया गया।”

देश में कोविड-19 ने जब से दस्तक दी है, तभी से सबसे प्रभावित राज्यों की सूची में सबसे ऊपर नाम महाराष्ट्र का ही रहा। सबसे अधिक केस जब आए दिन महाराष्ट्र से आ रहे थे उस समय केवल मेडिकल स्टाफ ही था जो हर मोर्चे पर अपनी जान को दांव पर लगाकर मरीजों की देखरेख में जुटा था। लेकिन, अब यही मेडिकल स्टाफ है जो अपने मेहनताने के लिए महीनों से गुहार लगा रहा है और किसी के कान पर जूँ नहीं रेंग रही। वहीं मरीजों की बुनियादी जरूरत को पूरा करने वाले विक्रेता हैं जिन्हें उनके माल का पैसा अब तक नहीं मिला।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर, सूत्रों के हवाले से यह दावा करती है कि कोरोना के समय में जिन डॉक्टर, नर्स और वार्ड कर्मचारियों ने कोविड केंद्रों में काम किया उन्हें जुलाई-अगस्त से वेतन नहीं मिला है। हैरानी की बात ये है कि ऐसी लापरवाही उस समय की जा रही है जब तीसरी लहर का खतरा सिर पर मंडरा रहा है और ओम्रिकॉन केसों की संख्या भी 8 हो गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान जिस स्टाफ ने अपनी सेवा दी, उनके पैसे कई महीने से उन्हें नहीं मिले। सूत्रों के हवाले से कहा गया कि बिजली बिल से लेकर मरीजों को दिए जाने वाले खाने का पैसा और अस्थायी कोविड केंद्रों पर रखे गए कर्मियों का वेतन अभी बकाया है। कुछ राज्यों में तो जहाँ ऑक्सीजन के लिए पीएसए प्लांट लगाए गए हैं वहाँ भी पेमेंट क्लियर नहीं की गई है। हर बिल लाख से करोड़ तक का है। सतारा जैसे छोटे जिले में 4 करोड़ रुपए बकाया है।

एक अधिकारी ने बताया, “हमें विक्रेताओं के कॉल आते हैं। उन्हें उस खाने के बदले पैसे ही नहीं मिले जो उन्होंने मरीजों को दिया। दवाइयों का भी बकाया अब तक नहीं दिया गया।” उन्होंने कहा कि अगर रातोंरात तीसरी लहर की तैयारी करना हो तो चंद ही लोग मदद के लिए आगे आएँगे।

सिविल सर्जन ने बताया कि एक जिले में को 300-400 स्वास्थ्यकर्मी हैं जिन्हे उनका वेतन नहीं दिया गया। इस सूची में डॉक्टर, नर्स और वार्ड ब्वॉय तक आते हैं जिन्हें दूसरी लहर के दौरान नियुक्त तो किया गया लेकिन उनको वेतन नहीं दिया गया। सर्जन ने इस बात की पुष्टि की कि अभी हर जिले पर करोड़ों रुपए बकाया है। उनके खुद के जिले को ‘कुछ करोड़’ देने हैं।

इस मामले में एक राज्य सरकार अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि कोविड संबंधी बिलों के भुगतान के लिए कई बजट हेड बनाए हैं ताकि डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर सारे बिल चुका सकें। कलेक्टरों को अनुमति दी गई है कि वो राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष, जिला विकास निधि, और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन वाले फंड का इस्तेमाल कर सकते हैं।

अधिकारी ने कहा राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष से 550 करोड़ रुपए मंजूर किए गए थे ताकि संबंधित खरीद और सेवाओं के लिए भुगतान हो। अब इसमें फंड 700 करोड़ रुपए से कम बचा है। अधिकारी का कहना है कि ये फंड भी कोविड पीड़ितों के परिवारों को 50 हजार रुपए का मुआवजा देने में खत्म हो जाएगा। योजना पूरी करने के लिए राज्य को 800 करोड़ रुपए की जरूरत है

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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