तमिलनाडु के कुन्नूर में हुए हेलीकॉप्टर हादसे से पूरा देश सकते में आ गया है। किसी को यकीन ही नहीं है कि भारत के चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ बिपिन रावत (CDS Bipin Rawat) समेत 14 लोगों को लेकर उड़ान भरने वाला Mi-17 सच में क्रैश हुआ और अब उन 14 लोगों में 13 लोग हमारे बीच नहीं हैं। इस दुर्घटना ने हर किसी को सन्न कर दिया है। पूरा देश शोक में है। अफसोस, इस दुख की घड़ी में भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें ये खुशी मनाने का समय लग रहा है। दुख की बात ये है कि इस सूची में पूर्व सैन्यकर्मियों से लेकर मीडियाकर्मी और सामान्य यूजर्स सभी शामिल हैं।
बुधवार (8 दिसंबर 2021) को जैसे ही हेलीकॉप्टर क्रैश की खबर आई, उसके बाद कई मामले ऐसे देखे गए, जब सीडीएस बिपिन रावत का नाम मृतकों की सूची में देख इन लोगों ने जमकर ठहाके लगाए। कुछ ने खबरों पर ‘हाहा’ रिएक्ट करके अपनी खुशी का प्रदर्शन किया तो किसी ने समय से पहले ही सीडीएस को ‘RIP’ लिख दिया। दुर्घटना का शिकार 14 लोगों के लिए दुआ करना तो दूर इस पूरी घटना को कॉन्ग्रेस की पत्रकार ने ‘डिवाइन इंटरवेंशन’ करार दिया।
अब यहाँ ये सोचने वाली बात है कि आखिर सैनिकों से नफरत करने वाले, उनकी मृत्यु पर खुशी मनाने वाले, नाचने-गाने वाले… ये सारे लोग कौन हैं? आखिर इन्हें उन लोगों से क्या समस्या है जो देश की सुरक्षा के लिए, यहाँ के नागरिकों के लिए अपनी जान देने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। समस्या की जड़ तक जाएँगे तो समझेंगे-जानेंगे कि भारत के ‘सीडीएस’ की मृत्यु देश के कट्टरपंथी और सेकुलरवादी लोगों के लिए जश्न मनाने का अवसर क्यों है और इससे ‘मोदी सरकार’ कैसे जुड़ी है।
आगे बढ़ने से पहले ये जानना जरूरी है कि साल 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद देश की सेना के लिए बनने वाली हर अच्छी-बुरी राय के पीछे कहीं न कहीं ‘मोदी’ शब्द काम कर रहा था और यही हाल अभी भी है। ऐसे में साल 2019 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ पद का ऐलान किया गया। घोषणा हुई कि पीएम मोदी की सरकार ने CDS का एक नया पद बनाने का फैसला किया है, जो भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना तीनों का प्रमुख होगा। अब जाहिर है ये सीडीएस का पद मोदी सरकार का ऐलान था तो इसका सीधा कनेक्शन ‘मोदी आर्मी’ से जोड़ा गया और यहीं से शुरू हुआ नफरत का सिलसिला… घृणा के इस पूरे क्रम में कई कारकों ने काम किया:
मोदी घृणा
साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सत्ता संभालने के बाद देश का सेकुलर और कट्टर धड़ा बिदक चुका था। जो छवि नरेंद्र मोदी की पीएम बनने पहले से थी, वही छवि पीएम बनने के बाद भी कायम रही। उनका हिंदू धर्म के प्रति झुकाव, संस्कृति और सभ्यता से लगाव, सबका साथ-सबका विकास का दृष्टिकोण कट्टरपंथियों को अखरने लगा। इस बीच कश्मीर को लेकर जो विचार मोदी सरकार लगातार कर रही थी उसने तो पड़ोसी मुल्क तक में हलचल मचा दी थी, तो देश में बैठे अलगाववादी कैसे न भड़कते।
साल 2016-17 के बाद से यदि याद करें को कश्मीर मामले पर सेना को नेगेटिव शेड में दिखाने का कार्य शुरू हो चुका था। सोशल मीडिया पर खून से लथपथ लोगों की तस्वीरें दिखाकर ये बातें फैलाई जा रही थीं कि कश्मीर में सेना की कार्रवाई अमानवीय है और बड़े ही चालाक ढंग से इस बात को छिपाया जा रहा था कि जिनके खिलाफ सेना सख्त हुई है, वो कोई ‘भटके हुए नौजवान’ नहीं बल्कि पत्थरबाज हैं। इतना ही नहीं विदेशी मीडिया ने भी सेना के खिलाफ लिखना शुरू कर दिया था।
‘भारत के विचार से नफरत’
किसी भी राष्ट्र की सीमा को सुरक्षित रखने का दारोमदार वहाँ की सेना पर होता है, लेकिन जब देश में रहने वाले कुछ लोग देश को बचाने के नाम पर ‘देश की सेना’ के विरोध में उतर आते हैं तो उनकी मंशा समझना ज्यादा मुश्किल भरा नहीं होता। आज समय-समय पर कुछ लोग ‘लोकतंत्र बचाने’ के नाम पर हल्ला करते हुए दिखते हैं। फिर चाहे वो जेएनयू की ‘आजादी’ वाली गैंग हो या फिर कश्मीर में आर्टिकल 370 बहाल करने की माँग करने वाले कट्टरपंथी… इन सबकी समस्या केंद्र सरकार से है, उनकी विचारधारा से है, उनके समर्थकों से है और देश की बहुसंख्यक आबादी यानी कि हिंदुओं से है।
सीडीएस बिपिन रावत के प्रति जो नफरत दुर्घटना के बाद देखने को मिली… वो भी इसी घृणा का एक विस्तृत रूप है। कई मौकों पर सीडीएस द्वारा दिए गए बयान इस बात को साबित करते हैं कि उनकी पहली प्राथमिकता अपना देश और देश के सैनिक थे। उन्होंने इस बात को साफ कहा हुआ था कि यदि कोई उनके जवानों पर पत्थर मारता है तो वह अपने सैनिकों से मरने को नहीं कह सकते। उनके इसी मुखर रवैये ने उन्हें सेकुलरों में ‘मोदी आर्मी का एक सिपाही’ बना दिया था और हिंदू धर्म के प्रति लगाव के कारण वो कट्टरपंथियों के निशाने पर थे।
भारत एक और विचारधारा अनेक
साल 2014 के बाद वाले भारत में विचारधाराओं का दबदबा देश में सबसे अधिक देखने को मिला। एक ओर मोदी सरकार थी, जिनके सत्ता में आने से हिंदुओं में ‘हिंदुत्व’ की भावना को प्रबल होते देखा जा रहा था और दूसरी ओर वामपंथ जमा कट्टरपंथ का झोल था, जो अपने आप को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के लिए और हिंदुओं को नीचा दिखाने के लिए ‘ह्यूमैनिटी फर्स्ट’ वाले फैक्टर पर काम कर रहा था।
सोशल मीडिया पर वामपंथी ये दर्शाने में आज तक लगे हैं कि जो कोई भी हिंदुत्व के समर्थन में आता है, उनका इंसानियत से कोई सरोकार नहीं है। उनकी यही कोशिशें उन्हें देश की सेना से नफरत करवाती हैं। उदाहरण के लिए जब कभी भी भारतीय सेना पड़ोसी मुल्क पर कोई कार्रवाई करती है तो उनसे सबूत माँगे जाते हैं, जब शांति बहाल करने के लिए सख्त कदम उठाती है तो उन्हें बर्बर कहा जाता है और अंत में जब सैनिक देश को बचाते-बचाते बलिदान हो जाते हैं तो उनकी मृत्यु का भी मखौल उड़ाया जाता है।
ये विचारधाराओं का ही खेल है, जो देश के वामपंथी विदेशों में देश की सेना को क्रूर दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और उनसे सवाल-जवाब करते हैं।
सबका अपना राष्ट्रवाद
मोदी सरकार के आने के बाद देश में एक शब्द जो बच्चे-बच्चे के मुँह से सुनने को मिलता है, वो शब्द ‘राष्ट्रवाद’ का है। नौजवानों के बीच देश और देश की राजनीति को लेकर जो रूचि जागी है, उसके पीछे का कारण यही है कि देश और देश की महत्ता को समझाने में मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जब बच्चा-बच्चा ‘देशप्रेम’ पर चर्चा करने लगा तो देश की अखंडता की बातें स्वभाविक तौर पर होने लगीं।
ऐसी स्थिति उन लोगों के लिए खतरनाक थी, जिन्होंने देश को तोड़ने के सपने देखे थे। जिनका मकसद सैनिकों को हमेशा नकारात्मक दिखाने का था। जिनकी कोशिश अराजकता फैलाने की थी। नतीजन ये सभी लोग आंदोलन के नाम पर सड़कों पर उतरे। शरजील इमाम जैसे लोग सीएए और एनआरसी के विरोध में सड़कों पर आए और ‘खालिस्तानी किसान’ आंदोलन के नाम पर खुलेआम अपना प्रोपगेंडा फैलाते दिखाई दिए। जब सुरक्षाबलों ने इन्हें रोकने का प्रयास किया तो अपने-अपने तरीके से उन्हें बर्बर दिखाने की कोशिश हुई।
चीन के साथ करीबी रिश्ते
साल 2020 में चीन के साथ LAC पर हुए विवाद के बाद सोशल मीडिया पर उन लोगों का ताँता लग गया, जिन्हें ये साबित करना था कि कैसे भारतीय सेना और चीनी फौज की झड़प में गलती भारत सरकार की है। इस लिस्ट में देश की सबसे पुरानी पार्टी कॉन्ग्रेस ने भी सरकार के विरोध में माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बाद में पता चला कि कैसे इन सब लोगों का कारोबार चीन के जरिए चल रहा था और कैसे मोदी सरकार के फैसले ने उस पर विराम लगा दिया। इसी बीच उस डील का खुलासा हुआ जो 2005-06 में राजीव गाँधी फाउंडेशन (Rajeev Gandhi Foundation) और चीन के बीच हुई थी। जहाँ इस फाउंडेशन को चीनी दूतावास और चीन की ओर से 3 लाख डॉलर बतौर चंदे के रूप में मिले थे।
मोदी से घृणा, हिंदुओं से घृणा, भारत के विकास से नफरत, भारतीयों के विचार तक से नफरत की सीमा तक असहमति… जो लॉबी इन चीजों में लिप्त है, सोचिए वो राष्ट्रवाद या भारत/इंडिया के आदर्श को कैसे फलता-फूलता देख सकता है? यह लॉबी कौन है, सोशल मीडिया के दौर में सबको स्पष्ट पता है। यह भी पता है सबको कि इस लॉबी के लिए पैसा ही भगवान है, सत्ता इनके लिए वंशवाद से बढ़ कर कुछ नहीं। देश इनके लिए वोटरों का एक झुंड है, जो जीता दे तो कुर्सी हथिया लीजिए… हरा दे तो लोकतंत्र की हत्या का राग छोड़िए।