उत्तर प्रदेश में कानपुर के कुख्यात अपराधी विकास दुबे (Vikas Dubey) के मरने के 6 महीने के बाद दिवंगत राज्य मंत्री संतोष शुक्ला (Santosh Shukla) के भाई ने अपनी पीड़ा व्यक्त की है। मनोज शुक्ला ने दैनिक भास्कर में अपने भाई की हत्या और वर्ष 2001 में गैंगस्टर विकास दुबे का प्रदेश में किस प्रकार आतंक था इस बारे में लिखा है।
उन्होंने लिखा, “उत्तर प्रदेश में वर्ष 2001 में गैंगस्टर विकास दुबे का बोलबाला था। उसे पुलिस और नेताओं की शह मिली हुई थी, जिसके चलते प्रदेश में उसका लूटपाट, हत्या और वसूली धंधा था। उस दिन दोपहर के करीब 2 बज रहे थे। मेरे पास किसी अंजान शख्स का फोन आया कि भैया की हत्या हो गई है। मैं भागते हुए शिवली थाने गया। वहाँ देखा कि भैया की खून से लथपथ लाश पड़ी है। विकास दुबे ने मेरे भैया की छाती में 5 गोलियाँ दागी थीं।” इस मामले में 25 पुलिसकर्मी गवाह थे, लेकिन सब के सब पलट गए।
मनोज शुक्ला बताते हैं कि भैया की लाश देखकर मैं बेहोश हो गया। मुझे 4 वर्षों तक तो नींद ही नहीं आई। रात भर जागता रहता था। मेरे भाई संतोष शुक्ला उस वक्त यूपी की राजनाथ सरकार में राज्यमंत्री थे। आजादी के बाद यह पहली बार था, जब पुलिस थाने में किसी राज्यमंत्री की हत्या हुई थी, लेकिन पुलिस और सरकार के लिए यह महज एक हत्या थी, जिसने मेरे परिवार की नींव को हिला दिया था। हम आज तक उनकी कमी महसूस करते हैं।
उन्होंने बताया कि वाजपेयी जी प्रेम से मेरे भैया को कालिया कहते थे, क्योंकि उनका रंग गहरा था। पार्टी में उनकी गहरी पैठ थी। प्रशासन भी उनकी बात को नहीं काटता था। भाई ने बताया कि 12 अक्टूबर 2001 की बात है भैया को शिवली नगर पंचायत से जीत दर्ज करने वाले लल्लन वाजपेयी का फोन आया कि उसका घर विकास दुबे ने चारों ओर से घेर रखा है और वह उसे मार देगा। भैया ने न आव देखा न ताव और अपनी गाड़ी उठाकर चल दिए। वे सीधा शिवली थाने पहुँचे। वहाँ विकास दुबे भी पहुँच गया और पुलिस वालों की मौजूदगी में उसने भैया की छाती में 5 गोलियाँ दाग दी। मौके पर ही भैया की मौत हो गई। उसके बाद वहाँ भगदड़ मच गई और पुलिस वाले भी भाग गए।
भैया मेरे लिए माँ-बाप भाई सब थे, उनके जाने के बाद सब खत्म हो गया। मैं बीमार रहने लगा था। कई बार शादियों या दूसरे कार्यक्रमों में विकास दुबे से मेरा सामना हुआ। मुझे उसे देखकर घृणा होती थी, नफरत होती थी। उसकी वजह से मेरे परिवार का काफी नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई आज तक नहीं हो सकी है। जी करता था उसे गोलियों से भून दूँ। फिर एक दिन विकास दुबे के एनकाउंटर की खबर आई, उस दिन मुझे चैन मिला, सुकून आया, शांति आई।