स्किन टू स्किन टच मामले (skin to skin touch) में विवादित फैसला देकर चर्चा में आईं एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला (pushpa ganediwala) ने इस्तीफा दे दिया है। जस्टिस गनेडीवाला ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (President Ramnath Kovind) को अपना इस्तीफा सौंप दिया और इसी के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (CJI N V Ramana) और बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता (Bombay HC Chief Justice Dipankar Datta) को भी एक-एक प्रति भेजा है।
खास बात यह है कि उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने से एक दिन पहले ही इस्तीफा दे दिया। हाईकोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर 12 फरवरी को उनके सेवाकाल का अंतिम दिन है, लेकिन इससे पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया है। पुष्पा गनेडीवाला 11 फरवरी को आखिरी दिन हाईकोर्ट आएँगी। बताया जा रहा है कि एडिशनल जज के रूप में सेवा विस्तार नहीं मिलने और सर्वोच्च न्यायालय के कोलेजियम में स्थान नहीं मिल पाने की वजह से यह इस्तीफा आया है। उम्मीद जताई जा रही है कि अब वह उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में प्रैक्टिस करेंगी।
गौरतलब है कि पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम (Supreme Court Collegium) ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की महिला अतिरिक्त जज जस्टिस पुष्पा वी गनेडीवाला (Justice Pushpa V Ganediwala) को स्थायी जज के रूप में सिफारिश नहीं करने का फैसला किया था। हालाँकि इसके पहले भी, केंद्र सरकार ने अतिरिक्त जज के रूप में उन्हें दो साल का विस्तार देने के कॉलेजियम के फैसले को लेकर असहमति जताई थी। इसने यौन शोषण का सामना करने वाले बच्चों के प्रति उनकी असंवेदनशीलता के आधार पर केवल एक साल का विस्तार दिया था।
जस्टिस गनेडीवाला ने ही ‘स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट (Skin-to-Skin Contact)’ वाला विवादित फैसला दिया था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पलटा था। इस फैसले में उन्होंने कहा था, “12 वर्ष की लड़की का स्तन दबाया जाता है। लेकिन इसकी जानकारी नहीं है कि आरोपित ने उसका टॉप हटाया था या नहीं? ना ही यह पक्का है कि उसने टॉप के अंदर हाथ डाल कर स्तन दबाया था! ऐसी सूचनाओं के अभाव में इसे यौन शोषण नहीं माना जाएगा। यह आईपीसी की धारा 354 के दायरे में ज़रूर आएगा, जो स्त्रियों की लज्जा के साथ खिलवाड़ करने के आरोप में सज़ा की बात करता है।”
इसके बाद जस्टिस गनेडीवाला का एक और फैसला आया था। उनकी अगुवाई वाली बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की एकल पीठ ने यह फैसला दिया था कि किसी लड़की का हाथ पकड़ना और आरोपित का पैंट की जिप खोलना प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज ऐक्ट, 2012 (POCSO) के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता।
मुँह दबाना, कपड़े खोलना, फिर रेप करना… अकेला युवक नहीं कर सकता
इसके अलावा जस्टिस का एक और फैसला सामने आया। ये भी रेप से जुड़ा मामला था। इस मामले में भी निचली अदालत ने 26 साल के आरोपित को रेप का दोषी पाया था, लेकिन जस्टिस पुष्पा ने उसे बरी कर दिया। जस्टिस पुष्पा ने तर्क दिया, “बिना हाथापाई किए युवती का मुँह दबाना, कपड़े उतारना और फिर रेप करना एक अकेले आदमी के लिए बेहद असंभव लगता है।”
2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनीं
1969 में महाराष्ट्र के अमरावती जिले में जन्मीं पुष्पा गनेडीवाला ने बीकॉम, एलएलबी और फिर एलएलएम की पढ़ाई की है। वो 2007 में डिस्ट्रिक्ट जज अपॉइंट हुई थीं। वो मुंबई सिविल कोर्ट और नागपुर की डिस्ट्रिक्ट और फैमिली कोर्ट में रहीं। फिर बाद में वो बॉम्बे हाईकोर्ट की रजिस्ट्रार जनरल रहीं। 2019 में वो बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज बनीं।