Tuesday, November 12, 2024
Homeदेश-समाजउस महिला जज का 'डिमोशन' जिन्हें भेजा गया था कंडोम, जिन्हें कपड़ों के ऊपर...

उस महिला जज का ‘डिमोशन’ जिन्हें भेजा गया था कंडोम, जिन्हें कपड़ों के ऊपर से छूना-पैंट खोलना नहीं लगा था यौन अपराध

'स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट वाले फैसले ने हर किसी को हैरान कर दिया था। अहमदाबाद की रहने वाली देवश्री त्रिवेदी ने इसके विरोध में जस्टिस गनेदीवाला को 150 कंडोम भेजे थे।

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) की जज पुष्पा वीरेंद्र गनेदीवाला (Justice Pushpa Virendra Ganediwala) का डिमोशन तय हो गया है। सुप्रीम कोर्ट की कॉलोजियम ने उन्हें स्थायी जज बनाने की पुष्टि नहीं की है। फिलहाल वे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में अस्थायी जज हैं। फरवरी 2022 में उनका कार्यकाल खत्म होने जा रहा है। अतिरिक्त जज के तौर पर भी उनके कार्यकाल को विस्तार देने को लेकर फैसला नहीं किया गया है। ऐसे में माना जा रहा है कि उनका डिमोशन जिला जज के तौर पर होगा।

जस्टिस गनेदीवाला ने ही ‘स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट (Skin-to-Skin Contact)’ वाला विवादित फैसला दिया था, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने पलटा था। इस फैसले में उन्होंने कहा था, “12 वर्ष की लड़की का स्तन दबाया जाता है। लेकिन इसकी जानकारी नहीं है कि आरोपित ने उसका टॉप हटाया था या नहीं? ना ही यह पक्का है कि उसने टॉप के अंदर हाथ डाल कर स्तन दबाया था! ऐसी सूचनाओं के अभाव में इसे यौन शोषण नहीं माना जाएगा। यह आईपीसी की धारा 354 के दायरे में ज़रूर आएगा, जो स्त्रियों की लज्जा के साथ खिलवाड़ करने के आरोप में सज़ा की बात करता है।”

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के फैसले के बाद यदि अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में उनके कार्यकाल का विस्तार नहीं किया जाता है या उन्हें स्थायी जज बनाने की पुष्टि नहीं होती है तो वह फिर से जिला न्यायाधीश के पद पर आ जाएँगी। हाई कोर्ट में नियुक्तियों का निर्णय करने के लिए तीन सदस्यीय कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना, और जस्टिस यूयू ललित और एएम खानविलकर शामिल हैं। 

गौरतलब है कि ‘स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट वाले फैसले ने हर किसी को हैरान कर दिया था। अहमदाबाद की रहने वाली देवश्री त्रिवेदी ने इसके विरोध में जस्टिस गनेदीवाला को 150 कंडोम भेजे थे। देवश्री ने कहा था, “जस्टिस पुष्पा का मानना है कि अगर स्किन को नहीं छुआ है, तो फिर यौन शोषण नहीं है। मैंने उनको कंडोम भेज कर बताया है कि इसका इस्तेमाल करने पर भी स्किन टच नहीं होता है तो इसे क्या कहा जाएगा?”

इसके बाद जस्टिस गनेदीवाला का एक और फैसला आया था। उनकी अगुवाई वाली बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की एकल पीठ ने यह फैसला दिया था कि किसी लड़की का हाथ पकड़ना और आरोपित का पैंट की जिप खोलना प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज ऐक्ट, 2012 (POCSO) के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता। 

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

आदिवासी लड़कियों से निकाह करके जमीन नहीं हथिया पाएँगे ‘घुसपैठिए’, अमित शाह ने झारखंड में किया वादा: सरकार आने पर बनेगा कानून

गृह मंत्री अमित शाह ने यहाँ यह भी वादा किया कि जो जमीन पहले घुसपैठिए कब्जा चुके हैं, उसे भी कमिटी बनाकर खाली करवाया जाएगा और इन घुसपैठियों को बाहर भगाया जाएगा।

भूत-प्रेत का डर दिखाकर रफीक करता था महिलाओं का यौन शोषण, राजस्थान पुलिस ने पकड़ा: मीडिया ‘तांत्रिक’ लिख कर रहा हिंदुओं को बदनाम

बंगाल का रफीक राजस्थान में झाड़-फूँक के बहाने महिलाओं का उत्पीड़न करता था और मीडिया उसे 'तांत्रिक बाबा' बताकर दिखा रही है कि ये काम किसी हिंदू का है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -